सिल्ली
(बाल कविता)
झुण्डक - झुण्ड
आबै छै, उतरए पोखरि - डबरा - खत्ता ।
सर्वेक्षण
कऽ पहिने
देखैछ, कत्तऽ मनुक्ख
निपत्ता ।।*१
जाहि ठाम मनुखक सञ्चर,
ने उतड़ए ओ ताहि ठाम ।
आबादीसँ दूर
जलाशय, ठण्ढी - सिल्ली - धाम ।।
उतड़ए शान्त जलाशय, खेलए - कूदए - भूख मेटाबए ।
कनिञे कालमे उड़ए झुण्ड, ताकए फेर नऽव जलाशय ।।
बत्तख सनि लागए धरती पर, दूर - गगन पानिकौआ ।
सिल्ली हेंजक-हेंज आबैछ, एकसरि प्रायः पानिकौआ ।।*२
मिथिलामे बुझले अछि सभकेँ, जीहक
बड़ चटकार ।
मांसु लेल सिल्ली केर होइतछि, गामे - गाम शिकार ।।
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - पानिकौआ आ
सिल्ली दुहु चिड़ै पानिमे उतड़बासँ पहिने पूरा क्षेत्र केर आकाशीय सर्वेक्षण करैत
अछि आ मनुक्खसँ सुरक्षित दूरी देखलाक बादे पानिमे उतरैत अछि । ई सर्वेक्षण एक वा
एकाधिक बेर ताहि क्षेत्रविशेषक चक्कर काटि कऽ कएल जाइत अछि । पानिकौआ ई सर्वेक्षण
प्रायः एकल स्वरूपमे करैत अछि जखनि कि सिल्ली सामुहिक रूपसँ ।
*२ - पानिमे हेलैत
काल सिल्ली बत्तख सनि लागैत अछि जखनि कि आकाशमे उड़ैत काल पानिकौआ सनि । पर बत्तख
एतेक ऊँच कखनहु नञि उड़ैत अछि आ पानिकौआ एतेक पैघ झुण्डमे कहियो नञि देखाई दैत अछि
।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 195म अंक (01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक 154) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
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