हंस
(बाल कविता)
हंसक बीच ने बगुला
शोभए,
बड़ पुरान ई
कहबी छी ।*१
बगुला खेत -
पथार भेटैतछि,
हंस केहेन − नञि देखने छी ।।*२
सरस्वती
माएक वाहन अछि,
चित्रमे हम से देखने छी ।*३
अंग्रेजी केर
‘एस’ सनि गर्दनि,
बस किताबमे
पढ़ने छी ।।*४
सुनै जो बौआ ! सुनै गे बुच्ची !
एहि ठाँ हंस प्रवासी
छी ।
उत्तर दिशि अतिशीत
क्षेत्र जे,
ताहि ठामक ओ
वासी छी ।।*५
एहि ठाँ जे आबैत हंस
छल,
देह - पाँखि
उज्जर होइ छल ।
लोलक उद्गम - स्थल कारी,
लोल गाढ़ - पीयर
होइ छल ।।*६
शीत समयमे छल आबैत,
कहियो ओ उड़ैत हिमालयसँ ।
अपनहुँ ठाँ देखना जाइत छल,
सटल जे क्षेत्र
हिमालयसँ ।।*७
चर्चा अछि साहित्यमे
सौंसे,
मानसरोवर - श्वेत
हंस केर ।
करैछ ईशारा टपि
हिमगिरि,
ने बेसी काल रहैछ
हंस फेर ।।*८
विश्वक छै मौसिम
बदलि गेल,
पहिनुक सभटा छै
उनटि गेल ।*९
बीतल कए बरख,
कतेक पुस्त,
ने हंसक छी आगमण भेल ।।*१०
सए बरख - हजार
पता नञि से,
कहियासँ हंस निपत्ता
अछि ।
साहित्यमे सौंसे धवल
- हंस,
पर दर्शन हएब
सिहन्ता अछि ।।*१०
हंसक ई अर्थ विशिष्ट भेल,
सामान्य अर्थ बड़
व्यापक अछि ।
बहुविध जलीय पक्षी शामिल,
कलहंस, राज आ
जलपद अछि ।।*११
ओना तँऽ अप्पन
शास्त्र कहैतछि,
हंस होइत
अछि उज्जर ।
मुदा हंस
किछु कारी सेहो,
भेटैछ एहि
धरती पर ।।
किछु एहनो छी हंस
जकर बस,
गर्दनि टा कारी होइए ।
जँ बूझी अहँ
हंस धवल बस,
तँऽ विश्मयकारी
होइए ।।*१२
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - ‘न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये वको यथा’ - संस्कृतहि युगक कहबी
छै ।
*२ - छोटकी बगुला सभ तँऽ बहुतायतमे पानि लागल खेत -
पथारसभमे देखबामे आबैत अछि । पर हंस अपना दिशि केओ नञ देखने अछि । जँ केओ देखने
अछि तँऽ मात्र चित्रमे वा प्राणी उद्यानमे अथवा जँ केओ कीनि कऽ पोषने हो ।
*३ - धवल-श्वेत
होयबाक कारण हिन्दू धर्म शास्त्रक अनुसार हंसकेँ माए
सरस्वतीक वाहन मानल गेल अछि । देवी सरस्वतीक चित्र वा प्रतिमाक संग
प्रायः हंसक चित्र वा प्रतिमा सेहो रहैत अछि । यद्यपि ओ चित्र वा प्रतिमा काल्पनिक
होइत अछि पर परम्पराक आधारेँ बनैछ तथा ओ परम्परा अति प्राचीन अछि - हजारों वर्ष
पुरान ।
*४ - किताबसभमे
वर्णन रहैछ कि हंसक गर्दनि अंग्रेजी वर्णमालाक “एस” (S) आखर सनि होइत अछि ।
*५ *७ - अतिप्राचीन कालहिसँ भारतीय साहित्यमे हंसक प्रवासी होयबाक
बात कहल गेल अछि जे कि हिमालयसँ सटल भू-भागमे हिमालय शिखरसँ उतरि मात्र शीतऋतुमे
आबैत छल ।
*६ - पारम्परिक जनश्रुति ओ संस्कृत आ आन संस्कृतेतर साहित्यसभसँ
ज्ञात होइत अछि कि हंसक धऽर आ गर्दनि धवल श्वेत वर्णक होइत छल जखनि कि लोल गाढ़
पीयर रंगक । लोल जाहि ठाम मूरीसँ जुड़ल रहैत छल ओहि ठामसँ आँखि धरिक स्थान कारी
होइत छल ।
*८ - कैलास पर्वत पर मानसरोवरमे
हंस रहैत अछि, ओतहिसँ ठण्ढीमे आबैत अछि आ फेर ओतहि चलि जाइत अछि । ई एकटा ईशारा
थिक कि हिमालय वा हिमालयसँ आओरो आगाँ (उत्तर वा उत्तर-पच्छिम दिशि) हंस सभक मूल
निवास स्थान अछि ।
*९ - विश्वक जलवायू
आ मौसिम निरन्तर बदलैत रहैत अछि । केवल आजुक ‘हरित गृह प्रभाव’ तथा ‘वैश्विक
गर्मी’ केर बात नञि अछि । किछु हजार वर्ष पहिनहु मौसिमक बदलावक संकेत आयुर्वेदक
महान कृति “सुश्रुत
संहिता”मे भेटैछ । जखनि
कि हंसक प्रथमोल्लेख ऋग्वेदमे भेटैछ । आयुर्वेद अथर्ववेदक उपांग मानल जाइत अछि जे
कि निश्चित रूपेँ ऋग्वेदसँ नऽव अछि ।
*१० - विगत कतेको सए
अथवा हजार वर्षसँ हिमालयक दच्छिनमे आ खास कऽ दच्छिन-पूबमे हंसक प्राकृतिक रूपसँ
आगमण नञि भेल अछि । ओहिसँ पहिने सम्भवतः “मूक
हंस / म्यूट स्वान” (MUTE SWAN) ठण्ढीमे भारतक हिमालयसँ सटल क्षेत्रसभमे आबैत
छल किएक तँऽ भारतीय वाङ्गमयमे वर्णित हंस केर विवरण ओकरहिसँ मेल खाइत अछि । ई हंस
विश्व केर आन हंस आ जलपदक अपेक्षा कम हल्ला मचबैत अछि तेँ ओकरा अंग्रेजीमे “म्यूट स्वान” (MUTE SWAN) कहल जाइत अछि जकर मैथिली
अनुवाद भेल “मूक हंस” । ई हंस पुर्ण रूपसँ बौक नञि होइत अछि अपितु अपेक्षाकृत कम
बजैत अछि ।
*११ - “हंस” शब्द जखन अगबे प्रयुक्त
होइत अछि तँऽ ओहि शब्दसँ जाहि विशिष्ट चिड़ै केर बोध होइत अछि से अंग्रेजीमे “स्वान” (SWAN) कहबैत अछि जकर
गर्दनि अंग्रेजीक “एस” आखर सनि होइत अछि
। ई “हंस” शब्दक विशिष्ट अर्थ
भेल । “हंस” शब्द जखन हंस सदृश
समस्त जलीय पक्षीक बोध करबैत अछि तखन ओहि मे हंस केर अलावे आन जलीय पक्षी (जेना कि
- हंसक वा जलपद) सेहो आबैत अछि । ई “हंस” शब्दक सामान्य
अर्थ भेल । जखन हंस शब्द आन
कोनहु विशेषण या उपसर्गक संग (यथा - कलहंस, राजहंस आदि) आबैत अछि तँऽ ओहिसँ
तदनुरूप आन कोनहु जलीय पक्षीक बोध होइत अछि ।
*१२ - भारतीय वाङ्गमयमे यद्यपि मात्र धवल-श्वेत हंस केर चर्च भेटैत अछि पर पृथिवीक
दच्छिनी गोलार्ध केर महाद्वीप सभमे कारी हंस
सेहो भेटैत अछि । दच्छिनी अमेरिका महाद्वीपमे हंसक जे प्रजाति भेटैछ तकर गर्दनि आ
मूरी कारी तथा धऽर उज्जर होइत अछि । ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपमे भेटए बला हंस केर
मूरी, गर्दनि आ धऽर पूरा कारी होइत अछि ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 195म अंक (01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक 154) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
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