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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday 15 December 2015

पद्य - ‍१‍३‍२ - ई की भेल !?! (कविता)



ई की भेल !?!?!
(कविता)



अहँ कहैत छी,   की  भेल !? !
हम कहैत छी, किछु नञि भेल ।।

फलना   जीतल,
चिलना  हारल ।
अपन अपन सभ,
दुःख केर मारल ।
अपन    बेगरतेँ,
सभकेओ भागल ।
दिन  सूतल 
रातिमे  जागल ।
अहँकेँ अचरज लागि रहल अछि ।
हमरा लए किछु नव नहि भेल ।।

ओएह   दिन  छै,
ओएह  राति  छै ।
ओएह    लोकसभ,
ओएह जजाति छै ।
देखले       पाथर,
चिन्हले  खाधि छै ।
ओएह   हवा    छै,
ओएह   आगि  छै ।
जन्मौटी बच्चा  भौंचक अछि ।
हम कहैत छी,  देखले  खेल ।।

ओएह  सृष्टि छै,
ओएह प्रलय छै ।
एक्कहि  गति छै,
एक्कहि लय छै ।
ओएह  भाव  छै,
ओएह हृदय छै ।
नीक−बेजाए, फेर
ओएह समय छै ।
पहिल दृष्टिमे सभ किछु नूतन ।
दोसर  सभटा   खेलले  खेल ।।

कतऽसँ   अयलहुँ,
कतऽ कऽ जायब ।
तकनहुँ      पर
उत्तर नहि पायब ।
भरि     जिनगी,
कतबहु बौआएब ।
घुरि - फीरि  पुनि,
एहि ठामे आएब ।
परमेश्वर केर सभ “खेला” छी ।
“शतक” अपन बूझी बकलेल ।।


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