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Saturday 5 December 2015

गामक शकल सूरत – पोथी समीक्षा

गामक शकल सूरत – पोथी समीक्षा




  
                                              “गामक जिनगीक बाद गामक शकल सूरत .......... नञि ....... नञि ....... तकर बाद नञि, तकर बहुते बाद । पर जे हो, गामक परिवेश आ गामक विषय वस्तु तँऽ अछिए । बदलल की ? ....... बदलल बस कथावस्तु वा सम्पुर्ण कथा । हमरासभक लेल जे एक गोट मामूली दैनन्दिनक घटना थिक से एक गोट सुविज्ञ लेखकक लेल कथा - पिहानीक विषय वस्तु । आ सएह योग्यता श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक लेखनी मे छन्हि । लेखकक एहि लघुकथा संग्रहमे हुनिका द्वारा रचित आठ गोट लघुकथा संकलित अछि ।  कथासभक परिवेश पोथीक नामानुरूपेँ अवश्य ग्रामिण अछि पर पढ़बाक लाभ हरेक पाठकवर्गक लोक उठाए सकैत छथि । परिवेश ग्रामिण रहितहुँ कथावस्तु अत्यन्त सम-सामयिक अछि । जे पाठकवृन्द गामहिमे रहैत छथि हुनिका लेल तँऽ ई रोजक गप्प पर जे बाहरो रहैत छथि आ कहियो-कहियो गाम अबैत छथि हुनिका सेहो एहि कथाक प्रसंगसभसँ जिनगीमे जरूर साक्षात्कार भेल होएतन्हि ।

                             साहित्यमे कएक बेर जिनगीक कटु सत्यक चित्रण प्रत्यक्ष व्यक्ति विशेषकेँ पात्र बना कऽ नञि कएल जाइत अछि अपितु ओहि पात्र विशेषसँ मिलैत जुलैत गुणबला आन सांसारिक वस्तुसभकेँ पात्र बना कहाओल जाइत अछि । साहित्यमे ई विधा बहुत पुराण अछि पर मैथिलीमे एहि विधाक उपयोग अत्यल्प भेल अछि । एहि विधाक उपयोगसँ कथाक विषय वस्तुक रोचकता बढ़ैत अछि, कथामे उल्लिखित कोनहु अप्रिय प्रसंग कोनहु विशेष पाठकवर्ग दिशि प्रक्षेपित नञि बुझाइत अछि आ कथा सुग्राह्य भऽ जाइत अछि । एतबहि नञि तखनि कथाक विषय बस्तु हर-पाठकवर्गकेँ अपनासँ मिलैत-जुलैत बुझना पड़ैत छन्हि आ तेँ कृति सर्वपाठकग्राह्य बनि जाइत अछि । वास्तवमे एहि तरहक प्रस्तुति एकटा कला थिक जे हर लेखकमे नञि विकसित होइछ । वास्तवमे, एहि तरहक प्रस्तुति अप्पन सभ बात पाठकक सोझाँ राखि जाइत अछि आ साहित्यक मर्यादा सेहो बनल रहैत अछि । एहने प्रयोग एहि बेर पाठकलोकनिकेँ श्री मण्डलजीक कलमसँ देखबाक लेल भेंटत; यथा :-

रीशसँ रीशिया ठकुआ बाजल -
केतबो बानर जकाँ नांगरि पटैक कऽ रहि गेलेँ, कहाँ एको धूर जमीन-जत्था अपनो पएर रोपैले भेलौ; जहिना बाप-दादा गुड़कैत एलौ तहिना गुड़कैत रहमेँ । .......................
फेर ठोर पटपटबैत भुसवा बाजल -
कहू ! जे आगूक जनमल ठकुआ छी, तखन केहेन कड़ुआएल बात छै जे जहिना सभ दिन गुड़कैत रहलेँ तहिना गुड़कैत रहमेँ । हमरा जेकाँ की तोरा आसन बासन हेतौ ?

                     छठि पावनिक डालाक विभिन्न बस्तु सभकेँ पात्र बना बहुत सुन्नर रूपसँ अपना समाजक एहि तरहक प्रसंगकेँ चित्रित कएल गेल अछि । एहि तरहक प्रसंग कोनहु वर्गविशेषक नञि अपितु अपना समाजक हरेक वर्गक पिहानी अछि ।  किछ-किछु एहने प्रयोग संस्कृत साहित्यक पञ्चतन्त्र, हितोपदेश, सिंहासन बत्तिसी आ वैताल पच्चीसी आदिमे देखबामे आबैछ; हलाँकि ई बात अलग जे ओ सभ प्रायः बाल साहित्यक रूपमे लीखल गेल अछि ।

                कतहु शिवचरण बाबू आ कालीचरण बाबूक यारी भेटत तँऽ कतहु भैयारी हक फरिछबैत सदानन कक्काक संग मनमोही काकी भेटतीह । कहुखन पोताक संग जितिया पावनिक करैत जीतलाल बाबा भेटताह तँऽ कहुखन अपन पुर्वकृत्य पर पश्चाताप करैत देवानन्द भेटताह । आ बीचमे चटकार लैत भेटताह सोने कक्का आ सुचितलाल ।

काका, अहाँ ते तेहेन शिकारी जेकाँ बजलौं जे बुइझे ने पेलौं जे खिखिरक बोली देलिऐ कि हरिणक आकि कोइलीक । ……………..
…………… बौआ, तोहूँ कोनो आन थोड़े छह, समाजेक ने बेटा-भातिज छिअ । जेहने अपन बेटा-भातिज तेहने समाजक । बतीस दाँतक तरमे पड़ल छी, तँए जी-जाँति कऽ रखने छी । मुड़ी सुढ़िया कऽ बजैमे उकड़ू होइए । मुदा ऐठाम दुइए गोरे छह तँए जी खोलि बाजब ।

                         गाम - ई शब्द प्रायः हर नऽव पीढ़ीक लेल एकटा सुन्नर, शान्त आ उन्मुक्त सनि स्थान होइत अछि । हर पुरान पीढ़ी किछु बयस बीतलाक बात कहैत अछि जे गाम आब ओहेन नञि रहल (जेहेन ओ अपन नेनपनमे देखने रहथि) - गाम बदलि गेल अछि । एहि तरहक विचारभिन्नताक प्रक्रिया निरन्तर चलैत रहल अछि आ चलैत रहत; पर गाम तँऽ गामहि थिक । अन्तर अछि मात्र दृष्टिकोण (VIEW / ANGLE OF PERCEPTION / REFERENCE FRAME) केर - गाम तँऽ गामहि अछि । कतबहु बदलैत अछि तइयो हर पीढ़ीविशेषक लेल गाम ओ शहरक अन्तर ओतबहि अछि, हर व्यक्तिविशेषक नेनपन ओ वयस्क वा वृद्धावस्थाक लेल गामक परिवर्तन ओतबहि अछि आ से नियत (CONSTANT) अछि । नेना - भुटकाक आँखिमे बसल गामक चित्र अनुभवक आगिमे पाकल वयस्कक चित्रसँ प्रायः हमेशा भिन्न होइत अछि आ होइत रहत । ओकर बनाओल चित्रकेँ बुझबाक हेतु ओकरहि भावक संसारमे डुम्मी काटए पड़त । तेँ मास्टर साहेब (मास्सैव - श्यामलाल) गिरधरक बनाओल समाजक चित्रकेँ नञि बुझि पाबैत छथि जखनिकि सुबललाल ओकर अर्थ पढ़ि लैत छथि । मास्टर साहेब अनुभवक चश्मासँ चित्रकेँ देखबाक प्रयत्न करैत छथि । जखनिकि सुबललाल पोताक (गिरधरक) बालस्वभावमे उतरि चित्रक अर्थ पढ़ैत छथि -

मास्सैव, केहेन बढ़ियाँ तँ सचित्र बनले अछि तखनि विचित्र की ? ……………… पहाड़, समुद्र धरती, पताल, अकास सभ मिलि जे एकटा विराट सूरत बनल अछि, सएह तँऽ अछि।
…………………. ई समुद्र भेल, समाजरुपी समुद्र । अथाह जलराशिक भण्डार । अहूमे जुआर उठै छै, जे हवा, पानिकेँ अपना पेटसँ निकालि अकासमे पसारैए, बर्खाक संग तूफानो उठै छै । जइसँ पानि, हवासँ धरती भरि जाइ छै ।
आगूक बात सुबललालक पेटमे रहनि आकि बिच्चेमे श्यामलाल बाबू दोसर रेखा पर आँगुर रखैत बजलाह - ई ?
ई धार भेल । जेकरा जीवनो-धार कहि सकै छिऐ, जे वैदिक धार कहियो कल-कल हँसैत, प्रवाहित होइ छल ओ आब मरण भऽ गेल । तँए पानिक जगह बालु उड़ैए ।

                         हर प्रसंगक प्रायः एकाधिक पक्ष होइत अछि । किछु पक्ष नीको होइत अछि आ किछु अधलाहो । कएक बेर कोनहु प्रसंगक पक्ष व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर निर्भर करैत अछि । जे जाहि दृष्टिकोणसँ देखैत अछि ओहि प्रसंगक पक्ष ओकरा ओहने नीक वा अधलाह बुझि पड़ैत अछि । प्रवास एकटा एहने प्रसंग थिक । प्रवास जे कि एक समय मिथिलासँ बाहर जायब आ तकर बाद देशसँ बाहर जायब केर अर्थ रखैत अछि ।  प्रवासकेँ — खास कऽ विदेशमे रहबाक प्रवासकेँ — मैथिली साहित्य हमेशा किछु तेसरे दृष्टि वा अधलाहे दृष्टिसँ देखलक अछि । किछु एहने सनि पिहानीक मजा भेटत मनोहर कक्का आ श्यामक संग । हाँ, संगमे सजमनि, कदीमा, रामझिमनी, झिमनी, करैल, पालक, ठरिया — आ पता नञि आओर की-की भेटत । आ अन्तमे भेटत

बौआ, कियो केतौ रहह मुदा रहत एही दुनियाँमे । जीब-मरब, अही दू शब्दमे दुनियाँ रचल-बसल अछि । .............................. बड़ बढ़ियाँ बड़ीटा दुनियाँ छै, जेतए मन फूड़ऽ तेतए रहऽ । धारक बीच जिनगी अछि तँए ओतए जा अपन धाराकेँ नञि तोड़ब ।

                     विदेशक चर्च भेल तँऽ किछु बात हमरहु याद आयल । इङ्गलैण्डक अंग्रेजीमे (BRITISH ENGLISH) मुंगेर, रंग, बाघ, श्वेत रक्त कोशिका / कण, रक्त वर्णक आदिक लेल प्रयुक्त शब्दक स्पेलिङ्ग क्रमशः MONGHYER, COLOUR, TIGRE, LEUCOCYTE, HAEMOGLOBIN लिखल जाइत छल आ एखनहु लीखल जाइत अछि । ई सामान्य अंग्रेजी जननिहारक लेल किछु कठिनाह छल । तेँ अमेरिकामे एकर सरलीकरणक प्रयास कएल गेल । उपरोक्त शब्दसभ अमेरिकी अंग्रेजीमे (AMERICAN / SAM ENGLISH) क्रमशः - MUNGER, COLOR, TIGER, LEUKOCYTE , HEMOGLOBIN - एहि प्रकारेँ लिखल जाए लागल । एहि प्रकारक स्पेलिङ्ग सर्वसामान्य द्वारा कएल जा रहल उच्चारणक बेस नजदीक छल आ तेँ सुग्राह्य सेहो । प्रारम्भमे अंग्रेजीक विद्वान ओ साहित्यकार लोकनिक दिशिसँ एहि प्रयासकेँ अतिशय दमण ओ असहयोगक सामना करए पड़ल । एहि नऽव लेखनशैलीकेँ साहित्यिक मञ्चसभ पर हीन दृष्टिसँ देखल जाइत छल । बादमे दुहु देशक सरकार दिशिसँ समन्वयक प्रयास भेल । अंग्रेजी साहित्यक विभिन्न देशक नियामक संस्थासभक बैसार भेल आ निर्णय लेल गेल जे दुहु प्रकारक अंग्रेजी लेखनशैलीक मान्यता एक समान होयत तथा कोनहु लेखन शैलीकेँ आगाँसँ उत्कृष्ट वा कनिष्ठ नञि कहल जाएत । आइ दुहु लेखनशैली समान रूपेँ प्रतिष्ठित अछि । दुहु लेखन-पद्धति प्रचलनमे अछि पर नऽव शैली उच्चारणानुरूप होयबाक कारण बेसी सुविधाजनक अछि आ ग्रेट-ब्रिटेन छाड़ि विश्व भरिमे तेजीसँ पसरि चुकल अछि । 

                  मुख्य विषयसँ थोड़ेक कात-करओट भागि गेलहुँ, पर भोतिआएल नञि छी, कात-करओट भागब सर्वथा आवश्यक बुझना गेल तेँ गेलहुँ । जहिना अंग्रेजीक नऽव शैली छल तहिना मैथिलीमे सेहो नऽव शैली स्वतः आयल जे उच्चारणानुरूप लीखल जाइत अछि । मैथिलीक एहि नऽव शैलीक अन्तर्गत बहुत रास नऽव रचनाकार (अपन रचनाकालक अनुसार नऽव नञि कि वयसक अनुसार) आबैत छथि, जाहिमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजी सेहो छथि । अंग्रेजी जेकाँ मैथिलीमे कोनहु उच्च सर्वमान्य नियामक संस्था नञि होयबाक कारणेँ बहुधा एहि नऽव लेखन-शैलीकेँ हीन बुझल जाइत अछि जे कि हमरा नजरिमे सर्वथा अनर्गल थिक । मैथिली साहित्यिक संस्थासभकेँ अंग्रेजी जेकाँ समन्वयात्मक रस्ता अपनेबाक चाही । मैथिलीक प्राचीन आ नऽव दुनु शैली समान रूपेँ प्रतिष्ठित होयबाक चाही । रचनाक स्तरीयता देखल जयबाक चाही नञि कि शैलीक आधार पर स्तर गढ़ल जयबाक चाही ।

                    मैथिलीक नऽव लेखन पद्धति - जे कि उच्चारणानुरूप अछि - ताहिमे रचना होयबाक कारणेँ सामान्य वा सामान्यसँ कम मैथिलि जननिहारकेँ सेहो कोनहु असुविधा नञि होयतन्हि । गामक शकल सूरत नामक एहि लघुकथा संग्रहमे सर्वत्र सरल मैथिलीक प्रयोग भेल अछि । यथा - पावनि केर बदला पावैन, पएने केर बदला पेने, कहलन्हि केर बदला कहलैन, बजलहुँ केर स्थान पर बजलौं, फोलब केर स्थान पर खोलब, जिउब केर स्थान पर जीब, आदि । एहि प्रकारेँ ई लघुकथा संग्रह अपन कथावस्तु आ लेखनशैलीक बल पर पाठकलोकनिक बीच अपन उत्कृष्ट स्थान सुनिश्चित करत से आशा , बाकी पाठकवृन्द पढ़लाक बादे बतओताह ।

पोथीक नाँव गामक शकल सूरत
लेखक श्री जगदीश प्रसाद मण्डल
प्रकाशक श्रीमति प्रेमकला देवी, ग्राम व पो॰-बेरमा (मधुबनी)
प्राप्ति स्थान - पल्लवी डिस्ट्रिब्युटर, वार्ड नं॰-06, निर्मली (सुपौल), पिन कोड - 847452
दाम (अजिल्द / साधारण संस्करण‍)   -  भारतीय रु॰ 151/ मात्र,





मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍190म अंक (15 नवम्बर 2015) (वर्ष 8, मास 95, अंक 190) मे प्रकाशित ।



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