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Thursday 15 December 2011

पद्य - ३२ - नवकी कनिञा



नवकी कनिञा
(गीत)



मोबाइल  पर  बतियाए हमेशा, जीन्स   पैण्ट   पहिरए  छै ।
ब्युटी  पार्लर  जाय  दड़िभंगा, केश    सेट   करबए    छै ।।



हरिहर झा*  केर    आङ्गन  मे,
अएलखिन्ह आइ नवकी कनिञा ।
जनिका  कारण चुटकी लै छन्हि,
हुनिकर     सगरो     दुनिञा ।
ठोकि बैसल छथि अपन कपार, सोचैत किछु अङ्गना मे ।
हरिहर झा केर आङ्गन मे ............................................... ।।

कोन जन्म केर पाप हमर छल,
भाग्य   हमर   एहेन   भेल ।
कुल  खानदानक  मान मर्यादा,
माटि  मे  सभ  मीलि  गेल ।
हाय रेऽ जऽरल हमर कपार, सोचै छथि बैसि अङ्गना मे ।
हरिहर झा केर आङ्गन मे ................................................ ।।

मोबाइल  पर  बतियाए हमेशा,
जीन्स   पैण्ट   पहिरए  छै ।
ब्युटी  पार्लर  जाय  दड़िभंगा,
केश    सेट   करबए    छै ।
पहीरि कऽ पएर मे सैण्डिल लाल, घुमै छै कोना अङ्गना मे ।
हरिहर झा केर आङ्गन मे .................................................... ।।

आठ  बजे ओ सूति कऽ उठती,
काज   ने  किछुओ   करती ।
लाज शर्म केर छुति ने कनिञो,
भरि  दिन  सिनेमा   देखती ।
कोना चलतै एहि घऽरक काज, सोचै छति बैसि अङ्गना मे ।
हरिहर  झा केर  आङ्गन मे ................................................ ।।



* हरिहर झा नामक व्यक्ति काल्पनिक छथि ।
वास्तविक दुनिञाक कोनो हरिहर झा सँ एहि गीतक कोनो सम्बन्ध नञि थिक ।
विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४८, अंक ९६, ‍दिनांक - १५ दिसम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।


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