ककरा दृष्टि मे नीक, के कह ?
(कविता)
तन सुन्नरि हम देखि रहल छी,
मन सुन्नर - से कोना कहू ।
तन केर सुन्नरता घातक थिक,
जँ सुन्नर मन केर बिना रहू ।।
अहँ सुन्नरि छी, बड़ सुन्नरि छी,
चर्चा पसरल सौंसे जग मे ।
पर सुन्नरता की थिक - के कह ?
के एकरा फरिछाओत जग मे ??
नञि ठोस तरल वा गैस ई थिक,
हो मानक परिभाषा जकरा ।
ककरा दृष्टि मे नीक के कह ?
थिक कक्कर अभिलाषा ककरा ।।
तन केर सुन्नरता चञ्चल थिक,
मन केर सुन्नरता रहए थीर ।
मन सिन्धु समान अथाह, स्वच्छ,
तन बरसाती धाराक नीर ।।
तन भ्रामक थिक, तन नश्वर थिक,
नहि प्रेमक थिक ओ परिचायक ।
नञि तऽ, श्रीकृष्णक की हस्ती ,
जे बनितथि ओ सभहक नायक ।।
सुनइत छी लैला कारी छलि,
कोयली कारी से जनितहि छी ।
आँखिक पुतरी होइत’छि कारी,
गुण एकर विश्व भरि मनितहि छी ।।
हो तन सुन्नर, हो मन सुन्नर,
तऽ एहि सँ बढ़ि कऽ की होयत ?
नहि चरम मेल दुहु केर सम्भव,
जँ होयत, तऽ बढ़ि की होयत ??
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४८, अंक – ९५, दिनांक - १ दिसम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।
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