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Sunday, 11 December 2011

पद्य - ३० - नोर बहओने किछु नञि होयत (बालगीत)


नोर बहओने किछु नञि होयत
(बालगीत)

निज अधिकार ओ प्राणक रक्षा, सभहक    अछि    कर्त्तव्य ।
श्रेष्ठ परम  जननी  केर  सेवा, एतबा      हो     ज्ञातव्य ।
परमश्रेष्ठ ई  कर्म मनुक्खक, कहलन्हि श्री भगवान
 पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए, करए पड़त संग्राम ।।


नोर बहओने किछु नञि होयत, भेटत नञि सन्मान ।
पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए,  करए पड़त संग्राम ।।

भलहि  सिंह हो वीर कतेको,
पर   रहतइ  जँ   सूतल ।
मृगा ने कहतै खा ले हमरा,
मरि  जायत  ओ  भूखल ।
करब परिश्रम, तखनहि जिउब, बाँचत तखनहि प्राण ।
पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए,  करए पड़त संग्राम ।।

निज अधिकार ओ प्राणक रक्षा,
सभहक    अछि    कर्त्तव्य ।
श्रेष्ठ परम  जननी  केर  सेवा,
एतबा      हो     ज्ञातव्य ।
परमश्रेष्ठ ई  कर्म मनुक्खक, कहलन्हि श्री भगवान*
पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए,  करए पड़त संग्राम ।।

स्मरणीय  शोणित  केर  बदला,
जतऽ  नोर   बहइत   अछि ।
ओहिठाँ  जनता शोषित, पीड़ित,
पराधीन    रहइत     अछि ।
हर क्षण मरबा सँ उत्तम अछि,  देशक लए बलिदान ।
पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए,  करए पड़त संग्राम ।।


* श्री भगवान = श्री कृष्णक गीताक उपदेश

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४८, अंक , ‍दिनांक - १५ दिसम्बर २०११, “बालानां कृतेमे प्रकाशित ।

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