नोर बहओने किछु नञि होयत
(बालगीत)
निज अधिकार ओ प्राणक रक्षा, सभहक अछि कर्त्तव्य ।
श्रेष्ठ परम जननी केर सेवा, एतबा हो ज्ञातव्य ।
परमश्रेष्ठ ई कर्म मनुक्खक, कहलन्हि श्री भगवान ।
पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए, करए पड़त संग्राम ।। |
नोर बहओने किछु नञि होयत, भेटत नञि सन्मान ।
पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए, करए पड़त संग्राम ।।
भलहि सिंह हो वीर कतेको,
पर रहतइ जँ सूतल ।
मृगा ने कहतै खा ले हमरा,
मरि जायत ओ भूखल ।
करब परिश्रम, तखनहि जिउब, बाँचत तखनहि प्राण ।
पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए, करए पड़त संग्राम ।।
निज अधिकार ओ प्राणक रक्षा,
सभहक अछि कर्त्तव्य ।
श्रेष्ठ परम जननी केर सेवा,
एतबा हो ज्ञातव्य ।
परमश्रेष्ठ ई कर्म मनुक्खक, कहलन्हि श्री भगवान* ।
पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए, करए पड़त संग्राम ।।
स्मरणीय शोणित केर बदला,
जतऽ नोर बहइत अछि ।
ओहिठाँ जनता शोषित, पीड़ित,
पराधीन रहइत अछि ।
हर क्षण मरबा सँ उत्तम अछि, देशक लए बलिदान ।
पएबा लेऽ किछु पड़त गमाबए, करए पड़त संग्राम ।।
* श्री भगवान = श्री कृष्णक गीताक उपदेश
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४८, अंक – ९६, दिनांक - १५ दिसम्बर २०११, “बालानां कृते” मे प्रकाशित ।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४८, अंक – ९६, दिनांक - १५ दिसम्बर २०११, “बालानां कृते” मे प्रकाशित ।
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