की  इएह   कहाबैछ   सुन्नरता ??
(कविता)
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हर  अलंकरण   सज्जित  तन  पर, 
हर  चालि - चलन  मे  अल्हरता । 
की  एतबहि  सँ ओ सुन्नर अछि ? 
की  इएह   कहाबैछ   सुन्नरता ?? | 
तन गोर, नयन हिरणी सनि हो,
हो  अंग   अंग  मे  चञ्चलता ।
दुहु  ठोर  पात तिलकोरहि  सनि,
पातर  कटि  मे  हो  लोचकता ।।
हो पीनि पयोधर  शिरिफल  सनि,
मुस्कान  भरल   हो   मादकता ।
दाड़िम  दाना  सनि  दाँत  जकर,
हो  केश   मे  मेघक  पाण्डरता ।।
हर  अलंकरण   सज्जित  तन  पर,
हर  चालि - चलन  मे  अल्हरता ।
की  एतबहि  सँ ओ सुन्नर अछि ?
की  इएह   कहाबैछ   सुन्नरता ??
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४८, अंक – ९५, दिनांक - १ दिसम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।
 


 
 
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