( वि दे ह - प्रथम मैथिली पाक्षिक ई - पत्रिका (ISSN 2229-547X VIDEHA) , अंक - ८८, ८९, ९०  (अगस्त - सितम्बर २०११)  सँ साभार ) 
मेघ
हम मेघ थिकहुँ, धरतीवासी ! ई  जीवन  हमरहि आनल  अछि ।
नञि गोर जदपि हम छी कारी, पर स्नेह सुधा संग आनल अछि ।।
जखन – जखन  एहि भूतल पर,
रविकिरणक साहस  बढ़ैत गेल ।
सभ जीव जन्तु , गाछी  बिरछी,
जल विन्दु-विन्दु ले तरसि गेल ।
एहि दारुण दुःख मे संग तोहर, हर बेर हृदय मोर कानल अछि ।
हम मेघ थिकहुँ, धरतीवासी ! ई  जीवन हमरहि  आनल अछि ।।
हर आह  हमर  शीतल बसात,
नोरक हर बुन्न  बनल अमृत।
लहलहा  उठल खेतक  जजाति,
हर जीव  तृप्त,  धरती संसृत ।
स्वागत मे सदिखन आदिकाल सँ मोर मुदित मन नाचल अछि ।
हम मेघ थिकहुँ, धरतीवासी ! ई  जीवन हमरहि  आनल अछि ।।
हर सड़सि  ताल सरिता निर्झर,
वन उपवन हमरहि सँ शोभित ।
हर जड़ि चेतन केर प्राण हमहि,
छी रग मे हमहीं बनि शोणित ।
हमरहि निर्मित ई सकल स्वर्ग , हमरहि वसन्त ई आनल अछि ।
हम मेघ थिकहुँ, धरतीवासी ! ई  जीवन हमरहि  आनल अछि ।।
नञि दोष हमर, जँ हो अनिष्ट,
आ नाचथि ताण्डव  महाकाल ।
जलमग्न धरा,  बाढ़िक  कारण,
आ देखि पड़य  कत्तहु अकाल ।
सोचू एहि मे अछि दोष ककर ? की नियम अहाँ सभ मानल अछि ?
हम मेघ थिकहुँ, धरतीवासी !  ई  जीवन   हमरहि  आनल अछि ।।
 हम मैथिल ! मिथिला केर सन्तान  
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की होयत सोचि भविष्य विषय, हम तऽ अतीत केर करी गान । | 
हम मैथिल !  मिथिला केर सन्तान ।
नञि  दुनिञा  केर  कनिञो  ध्यान ।
की होयत सोचि  भविष्य विषय,  हम तऽ अतीत  केर करी गान ।
                        हम  मैथिल ! मिथिला केर सन्तान ।।
नञि  दुनिञा  सँ, कनिञो घबड़ायब ।
नञि प्रगति देखि कऽ हम ललचायब ।
छल  हमर  अतीत   बहुत   सुन्नर,
तेँ   रहत   भविष्यहु  नीक  हमर ।
की अजगर  करइत अछि चिन्ता ? अरे  सबहक दाता , अपनहि राम ।
                            हम  मैथिल ! मिथिला केर सन्तान ।।
विज्ञानक द्वारि,  अशान्तिक द्वारि ।
एहि  सँ  नीक,  बैसी   चौपाड़ि ।
करी   अराड़ि  आ  पढ़ी   गारि ।
नञि  ताहि  सँ जीती, करी मारि ।
अछि  फॉर्मूला - परिभाषा  व्यर्थ ।
चान – विजय  अभिलाषा  व्यर्थ ।
की धरती’क चान  अलोपित अछि , जे करी गगन  चानक अभियान ?
                           हम  मैथिल ! मिथिला केर सन्तान ।।
हम  मानि लेल  अहँ  सर्वश्रेष्ठ ।
लाठी  भाँजए  मे  छी  यथेष्ठ ।
अहँ  शूरवीर,  अहँ  परम वीर ।
अहँ   कर्मवीर,  अहँ  धर्मवीर ।
अहँ माए  मैथिलीक पुत्र  धीर,  जे सहि सकलहुँ  माएक अपमान ।
                         अहँ मैथिल , मिथिला केर सन्तान ।।
      बरसातक एक राति
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| बहय माटि – पानि दुहु एक साथ । 
(छायाकार :- डॉ॰ शशिधर कुमर) | 
असित  अन्हार  डेराओनि  राति ।
                             झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।
अछि अस्त सूर्य आ धुमिल चान ।
घूमय नभ मे  चहुदिशि  जलधर ।
करय गरजि गरजि कऽ मेघ नाद ।
रहि रहि चमकए  चपला चञ्चल ।
बहए सुरभित शीतल रम्य बसात ।
                            झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।
प्रेमीक विछोह,  प्रेमिकाक  क्षोभ ।
मयूरक खुशी  अह्वलादित  नर्तन ।
गर्मी  सँ त्रस्त – पाओल  राहत ।
करय  जीव पावसक अभिनन्दन ।
पाओल राहत सभ कृषक समाज ।
                            झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।
उमड़ल पोखड़ि, नदी, ताल,सड़सि ।
हर्षित ओ जन्तु जे जल सञ्चारी ।
करए  दादुर, जोंक, साँप, सहसह ।
पसरल  सौंसे  धरती  पर चाली ।
बहए माटि – पानि दुहु एक साथ ।
                            झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।
पावस    राति - ई   कारी   घोर ।
पुरिबा – पछबा    से    बड़   जोड़ ।
भेल   भोर,   पर   रौद   मलीन ।
सूर्य  जेना  निज   शक्ति  विहीन ।
कहुँ – कहुँ  हंसक   उनमुक्त पसार ।
                           झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।
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भेल   भोर,   पर   रौद   मलीन । 
सूर्य  जेना  निज  शक्ति   विहीन । 
कहुँ – कहुँ  हंसक  उनमुक्त पसार । | 
 नभ श्याम,  धरा श्याम,  सभ श्यामल श्यामल
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| नभ श्याम, धरा श्याम, सभ श्यामल - श्यामल  । आइ लगइछ प्रकृति श्याम रंग मे रँगल ।। (छायाकार :- डॉ॰ शशिधर कुमर) | 
नभ श्याम, धरा श्याम, सभ श्यामल  श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।
सुनि   मुरलीक  तान ।
एलीह राधा ओहि ठाम ।
प्रीति  सरिता  मे  डूबि,  भेलीह  राधहु श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।
श्याम  श्यामक शरीर ।
श्याम यमुनाक  नीर ।
पहीरि साँझक कलेवर , भेलीह  वसुधहु  श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।
छवि सुन्नर  सहज ।
मूँह  रक्तिम जलज ।
रक्त कंज  बीच खिलल  युगल  श्यामल  कमल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।
श्याम अलकक  कुञ्ज ।
जेना भ्रमरक हो पुञ्ज ।
भासि राहु कोर,  चान  सेहो  श्यामल  श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।
घीरि आयल  पयोद ।
देखू नचइ’छ कामोद ।
छूबि श्याम, श्याम, श्याम भेल अनिलहु श्यामल ।
नभ श्याम,  धरा श्याम,  सभ श्यामल श्यामल ।।
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    लागय आजु धरा मनभाओन, कि चलु सखि, चऽलू ने सखी । 
(छायाकार :- डॉ॰ शशिधर कुमर)  | 
आयल साओन मास सोहाओन, 
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।
लागय आजु  धरा मनभाओन,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।।
छल छल बहइ’छ श्यामा सरिता ।
भेल मलिन मुख देखि ई सविता ।
बहु विधि सजल धजल वृंदावन,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।
आयल साओन मास सोहाओन, 
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।।
मन्द पवन सखी वसन हिलावय ।
मन मानस  मोर मदन जगावय ।
बाजय छमकि छमकि पायलिया,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।
लागय आजु  धरा मनभाओन,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।।
सभ सखि मीलि चलू रास रचायब ।
कदमक डाड़ि मे  हिरला  लगायब ।
बजओता माधव मधुर मुरलिया,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।
आयल साओन मास सोहाओन, 
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।।
 




 
 
नीक संकलन अछि । शुभकामनानीक संकलन अछि । शुभकामना
ReplyDeleteधन्यवाद राखी जी ।
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