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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Thursday, 1 September 2011

पद्य - ४ - नभ श्याम, धरा श्याम, सभ श्यामल श्यामल

नभ श्याम,  धरा श्याम,  सभ श्यामल श्यामल

भ श्याम, धरा श्याम, सभ श्यामल  श्यामल

भ श्याम, धरा श्याम, सभ श्यामल  श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।

सुनि   मुरलीक  तान ।
एलीह राधा ओहि ठाम ।
प्रीति  सरिता  मे  डूबि,  भेलीह  राधहु श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।

श्याम  श्यामक शरीर ।
श्याम यमुनाक  नीर ।
पहीरि साँझक कलेवर , भेलीह  वसुधहु  श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।

छवि सुन्नर  सहज ।
मूँह  रक्तिम जलज ।
रक्त कंज  बीच खिलल  युगल  श्यामल  कमल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।

श्याम अलकक  कुञ्ज ।
जेना भ्रमरक हो पुञ्ज ।
भासि राहु कोर,  चान  सेहो  श्यामल  श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।।

घीरि आयल  पयोद ।
देखू नचइ’छ कामोद ।
छूबि श्याम, श्याम, श्याम भेल अनिलहु श्यामल ।
नभ श्याम,  धरा श्याम,  सभ श्यामल श्यामल ।।

"विदेह पाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४५ , अंक ८९, दिनांक – ०१।०९।२०११ मे प्रकाशित । 

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