( वि दे ह - प्रथम मैथिली पाक्षिक ई - पत्रिका ( ISSN 2229-547X VIDEHA), अंक - ९१,९२ (१ आ १५ अक्टूबर २०११) सँ साभार )
सभ सँ रसगर माएक भाषा (गीत)
सभ सँ रसगर माएक भाषा,
भाषा सँ मीठ नञि हो मिसरी ।
करी ज्ञानार्जन पढ़ि बहुत विधा,
पर निज भाषा केँ जुनि बिसरी ।।
भाषा जे पशु सँ भिन्न केलक,
भावाभिव्यक्ति केर चिन्ह देलक ।
रटि दोसर बोली, बनि सुग्गा,
अहँ ओहि भाषा केँ जुनि बिसरी ।
सभ सँ रसगर माएक भाषा,
भाषा सँ मीठ नञि हो मिसरी ।।
हो सारि प्रिय, सरहोजि प्रिय,
पत्नी केँ राखी सटा हृदय ।
पर अछि अस्तित्व जनिक कारण,
अहँ ओहि माता केँ जुनि बिसरी ।
सभ सँ रसगर माएक भाषा,
भाषा सँ मीठ नञि हो मिसरी ।।
माएक भाषा , अप्पन भाषा ।
मिथिला – भाषा, अप्पन भाषा ।
परहेज किए एहि भाषा सँ ?
आउ एहि पर हम सभ गर्व करी ।
सभ सँ रसगर माएक भाषा,
भाषा सँ मीठ नञि हो मिसरी ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४६, अंक – ९१, दिनांक - ०१ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।
गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर (गीत)
कमल नयन लखि,
मधुर वयन सुनि,
हुलसित मन ई चकोर ।
गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर ।।
हमरा एते तोँ जुनि तरसा गे ।
अपन अधर मधु रस बरिसा दे ।
जुनि बन तोँ एतेक कठोर ।
गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर ।।
बोल - सुबोल हृदय उद्बेधल ।
तोहर सरिस दोसर नञि देखल ।
उर – अन्तर उठय हिलोर ।
गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर ।।
कोयली जदपि सातहु सुर सीखल ।
तदपि सखी , तोहरा नहि जीतल ।
मधु भरल छौ पोरे पोर ।
गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४६, अंक – ९१, दिनांक - ०१ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।
हम नञि कहब कि ......... (गीत)
हम नञि कहब कि “सुष्मिता” सँ नीक छी अहाँ,
“ऐश्वर्या” केर जेरॉक्स प्रतीप छी अहाँ ।
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हम नञि कहब कि फूल मे गुलाब छी अहाँ,
हमर जिनगी केर स्वप्न ओ “ताज” छी अहाँ ।
मुदा जिनगीक एकसरि अन्हरिया मे विकसित,
सुन्नर ओ सुमधुर प्रभात छी अहाँ ।।
हम नञि कहब कि “सुष्मिता” सँ नीक छी अहाँ,
“ऐश्वर्या” केर जेरॉक्स प्रतीप छी अहाँ ।
अहाँ नञि चाही हमरा, ई इच्छा अहँक,
मुदा अहीं हमर अन्तरा , ओ गीत छी अहाँ ।।
किछु अन्यथा ने सोचब, से आग्रह हमर,
एक कवि केर दुस्साहस केँ कऽ देब क्षमा ।
अहाँ अँऽही रहब, हऽम हमही रहब,
अहँक चाहत रखबाक हमर हस्ती कहाँ !!
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४६, अंक – ९१, दिनांक - ०१ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।
धिया – पुता जनकक वंशज हम
(बालगीत)
(बालगीत)
चलितहि रहब अछि काज हमर, लगातार अविराम ।
जा धरि भेटय ने लक्ष्य जीवनक, चाही ने विश्राम ।।
प्रगतिक पथ पर बढ़ैत रहब हम, हरैत विघ्न - बाधा सभ केँ ।
चलितहि रहब जीवनक पथ पर, नाँघैत सरिता गिरि गह्वर केँ ।
सहैत चलब हम सुख – दुःख सभटा, कनिञो नञि घबड़ायब ।
माए मैथिलीक आँचर पर नहि, कोनहु कलंक लगायब ।
कनक रेख सञो लिखब भारतक विश्व पटल पर नाँव ।
जा धरि भेटय ने लक्ष्य जीवनक, चाही ने विश्राम ।।
चलैत रहब हम अडिग सुपथ पर, नव - नव लय जिज्ञासा ।
प्रेम – स्वतंत्रता - ज्ञानक भूखल, रत्नक नञि अभिलाषा ।
धिया – पुता जनकक वंशज हम, स्वर्णिम भविष्य केर आशा ।
अथक परिश्रम काज हमर, बिनु स्वार्थक कोनहु पिपासा।
विश्व पटल पर फेर बनायब मिथिला केर नव पहिचान ।
जा धरि भेटय ने लक्ष्य जीवनक, चाही ने विश्राम ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४६, अंक – ९१, दिनांक - ०१ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।
बनि जयतहुँ हम बच्चा (गीत)
आइ अनायस, हमर मोन मे, सुन्नर सनि एक इच्छा ।
ओ बीतल दिन आपिस चलि अबितय, बनि जयतहुँ हम बच्चा ।।
सरस बसन्तक अबितहि भोरे, बीछय जयतहुँ टिकुला ।
बिनु मजड़ल, आमक झाँखुड़ तर, टाँगि लगबितहुँ हिड़ला ।
दैत्यक पहड़ा, जेठ - दुपहरिया, पर लोभेँ बम्बईय्या ।
बौअइतहुँ गाछी – कलमेँ, पाबितहुँ मालदह – कलकतिया ।
पाकल पीयर – लाल बैड़ हम, जेबी भरि – भरि अनितहुँ ।
लिच्ची जामुन आओर जिलेबी, किछु खयतहुँ, संग लबितहुँ ।
भूत – पड़ेतक डऽर तऽ, चलि जयतय पड़ाय कलकत्ता ।
ओ बीतल दिन आपिस चलि अबितय, बनि जयतहुँ हम बच्चा ।।
साओन मास - पहिल वर्खा , बम्मा सँ खसइत झड़ – झड़ ।
जाय नहयतहुँ, जेना पहाड़क, कल - कल सुन्नर – निर्झर ।
सण्ठी केँ धुधुआय बनबितहुँ, सिगरेटक हम नाना ।
घूर मे दऽ अधखिज्जू आलू , तकर बनबितहुँ साना ।
चोड़ा – नुका, निज माए – बाप सँ, जयतहुँ दौड़ल भोड़हा ।
कोमल - हरियर - कञ्च – बदाम, उखाड़ि बनबितहुँ ओड़हा ।
फलना केँ रखबाड़ पकड़लक, भेल गाम भरि चर्चा ।
ओ बीतल दिन आपिस चलि अबितय, बनि जयतहुँ हम बच्चा ।।
दुर्गापूजा – छठि - दिवाली, पावनि तीन सहोदरि ।
मास दिवस इस्कूल दरस नञि, पावनि सम नञि दोसर ।
की भसान केर छल उमंग, की सुन्नर हुक्का – लोली ।
खेल कबड्डी – किरकेट - गोली, खेली नुक्का – चोरी ।
चौठ – चन्द्र, मिथिलाक विशेषीकृत पावनि अति अनुपम ।
भाँति – भाँति पकवान देखि, बढ़ि जाय हृदय स्पन्दन ।
घण्टा – घण्टा बन्शी पाथितहुँ, रोहुक आश लगओने ।
रोहु – बोआरि ने, पोठी दू टा, अबितहुँ हाथ डोलओने ।
बन्शी लऽ घुमितहुँ भरि दिन, पोखड़ि – डाबर ओ खत्ता ।
ओ बीतल दिन आपिस चलि अबितय, बनि जयतहुँ हम बच्चा ।।
आबहु मीता छोड़ू (गीत)
गोल – गोलैसी, पर – पञ्चैती ।
गप्प अनेरोक, कानाफुसकी ।
आबहु मीता छोड़ू ।
दुनिञा देखू दौड़ि रहल अछि, अपने घसड़ब छोड़ू ।
हे यौ , अपने घसड़ब छोड़ू ।।
कमजोरहा पर देखबी धाही ।
पुस्त - पुस्त केर करी उखाही ।
बात – बात पर लट्ठ - लठैती ।
घऽरे फनफन, बाहर लाही ।
बड़ बुत्ता जँ, अहँक देह मे, नूतन सर्जन कऽरू ।
हे यौ , नूतन सर्जन कऽरू ।।
ओ केलन्हि, से नीक ने कएलन्हि ।
फलना जिनगी व्यर्थ गमओलन्हि ।
मुइलहा सारा कोरि भर्त्सना ।
सकल अकारथ हुनक सर्जना ।
आनक कृत्य अकृत्य अतीते, अहीं नीक नव गऽढ़ू ।
हे यौ , अहीं नीक नव गऽढ़ू ।।
ओ जिनगी भरि कयल ऊकाठी ।
आम खेलक आ देलक आँठी ।
आब नरक सँ देखथु टकटक ।
हम्मर बोझा , हुनिकर आँटी ।
रोपल आन बबूड़, गलत छल, अहीँ काँट जुनि रोपू ।
हे यौ , अहीँ काँट जुनि रोपू ।।
दऽड़ दड़बज्जा, चौक चौबटिया ।
व्यर्थक गप्प, अनर्गल चर्चा ।
एकर फूसि, ओकरा केँ लाड़णि ।
अपन मजा लेऽ अनका चाड़णि ।
अपन समय बहुमुल्य नाश कय, अनका दोष ने मऽढ़ू ।
हे यौ , अनका दोष ने मऽढ़ू ।।
अरिकोंच (कविता)
हरियर बड़का – बड़का पात, देखू कत्तेक सुन्नर लाग ।
ऊगय अपनहि – आप, पनिगर खत्ता - बाड़ी - झाड़ी ।।
केओ “अरिकञ्चन” कहय, हऽम कही “अरिकोंच” ।
अहाँ “अरकान्चू” बुझू, स्वाद एक्कहि मनोहारी ।।
पात पिठार संग बान्हल, सरिसो तेल चक्का छानल ।
नेबो खूब दए झोड़ाओल, पड़िसल तीमन सोझाँ थारी ।।
संगहि भात वा सोहारी, झँसगर अरिकोंचक तरकारी ।
लागय भकभक तइयो नीक, एकर महिमा छी भारी ।।
गामक बच्चा – बच्चा जान, शहरक अलखक चान ।
जे अछि खएने - सएह बूझय, आन तीमन पर भारी ।।
लागय किनको जँ फूसि, वा हो मन मे जँ झूसि ।
चीखि देखू एक बेर , लागत मन मे पसारी ।।
चन्ना मामा (बालगीत)
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४६, अंक – ९२, दिनांक - १५ अक्टूबर २०११ मे “बालानां कृते” स्तंभ मे प्रकाशित ।
दियाबातीक समय थिक । किछु छोट – क्षिण धिया – पुता केर मित्र मण्डली जमा अछि । ओ सभ एतबहु छोट नहि कि किछु नञि बुझल होइ । ओकरा सभ केँ ई तऽ बुझल छै कि रॉकेट नामक कोनो चीज़ होइत छै जे चान पर जा सकैत अछि आ मनुक्खो केँ लऽ जा सकैत अछि । ओकरा सभ केँ ईहो बुझल छै कि फटक्का मे रॉकेट नामक एकटा फटक्का होइत छै जे अकाश मे उड़ैत छै । पर ओ सभ एतबो पैघ नञि कि सभटा बात बुझले होइ । ओकरा सभ केँ ई नञि बूझल जे फटक्का वला रॉकेट नञि तऽ अपनहि चान पर जा सकैत अछि आ नहिञे ककरो चान धरि लऽ जा सकैत अछि । अपन घऽरक पैघ सदस्य द्वारा आनल फटक्का वला रॉकेट केँ देखि कऽ ई अबोध धिया – पुता सभ की की कल्पनाक उड़ान भरैत अछि से एहि बाल – गीत मे वर्णित अछि । देखल जाए :-
चल रॉकेट ! उड़ान भर ।
लऽ चल हमरा चान पर ।
चन्ना मामा शोर करै छथि, बैसल आसमान पर ।।
मामा भेटथिन्ह, मामी भेटथिन्ह ।
नाना भेटथिन्ह, नानी भेटथिन्ह ।
नाना सँ खूब खिस्सा सुनबै, सूतए काल दलान पर ।।
मामा संगे सौंसे घुमबै ।
दुर्गा - पूजा मेला देखबै ।
नटुआ नाच, सिनेमा, नाटक, देखबै दुर्गा – थान तर ।।
कचड़ी खएबै, मुरही खएबै ।
रसगुल्ला बलुसाही खएबै ।
चूड़ा – दऽही – गरम जिलेबी, नथुनी साव दोकान पर ।।
ओहि ठाँ माएक दूध भात नञि ।
ओहि ठाँ बाबू, बहिन, भाए नञि ।
ओहि ठाँ हम ने रहबै हरदम, घुरि फेर अएबै गाम पर ।।
[ उपरोक्त सभ रचनाक प्रकाशन हेतु हम सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुरजी आ समस्त विदेह परिवारक आभारी छी ]
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