लेखन कमजोर नञि जँ मैथिली लिखैत छी
(कविता)
हऽम !
हँऽ यौ बाबू - हऽम !!
मैथिली बजैत छी,
मैथिली लिखैत छी ।
मैथिली पढ़ैत छी,
मैथिली बुझैत छी ।
मैथिली गबैत छी,
मैथिली नचैत छी ।
मैथिली सुनैत छी,
मैथिली गुनैत छी ।
ककरा सनि भूकए छी, से नञि जनैत छी ।
मैथिली बजैत छी, मैथिली लिखैत छी ।।
नीक बोल लागइए,
तेँ हम बजैत छी ।
कर्णप्रिय जेँ हमरा,
तेँ हम सुनैत छी ।
माएक सुबोल बोल,
तेँ हम गबैत छी ।
सुन्नर सुगन्धि एकर,
जग भरि बँटैत छी ।
लेखन कमजोर नञि, जँ मैथिली लिखैत छी ।
सोच एहेन जनिकर, से गलती करैत छी ।।
कोन - कोन खेमा छै,
कोन - कोन वाद छै ।
की - की नियम छै,
आ की अपवाद छै ।
ककर कोन की प्रपञ्च,
ककर की विवाद छै ।
हम तँऽ बुझैत छी,
मैथिलीक नाद छै ।
एतबे बस बूझै छी, मैथिली बजैत छी ।
मैथिली बजैत छी, मैथिली लिखैत छी ।।
ककर छी हकार, आ
ककर छी निमण्त्रण ।
के उड़बए गुड्डी, आ
ककर छी नियण्त्रण ।
हमरा लए सभटा बस,
मैथिलीक गर्जन ।
मैथिलीक तर्जन,
ओ मैथिलीक वर्षण ।।
प्यासल छी मैथिलीक, घाट ने देखैत छी ।
मैथिलीक अमृतसँ, प्यास मेटबैत छी ।।
हम नञि जनैत छी,
की अहँ सोचैत छी ।
कोन पक्ष-संघ-गुटमे,
हमरा रखैत छी ।
कोन बाद – पन्थसँ,
हमरा जोड़ैत छी ।
हमर लिखल शब्द,
कोन धारेँ बहबैत छी ।
अर्थ अहाँ की बूझल, अँहीं जनैत छी ।
हम तँऽ बस बूझल जे, मैथिली लिखैत छी ।।
लिखबाक मोन अछि,
तेँ हम लिखैत छी ।
मैथिलीक रंग प्रिय,
ताहिमे रंगैत छी ।
हिन्दी आ अंग्रेजी,
सेहो प्रशस्त छी ।
मोन मुदा मैथिलीक,
नेहेँ आशक्त छी ।
हाथ हमर लेखनी, मैथिली लिखैत छी ।
सभकिछु पढ़ैत छी, मैथिली लिखैत छी ।।
मैथिली पाक्षिक
इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 190म अंक (15 नवम्बर 2015) (वर्ष 8, मास 95, अंक 190) मे प्रकाशित ।
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