सहनशीलता
(कविता)
सहबाक गुण छी पुज्य,
जा धरि पार ने
सीमा करए ।
तकर बादो जे
सहए से,
कायरक उपमा पाबए
।।
सहनशील मनुक्ख बढ़िञा,
जा उचित कारण
रहए ।
जँऽ अकारण आ हो अनुचित,
सहल तँऽ पामर बनए ।।
ओ युधिष्ठिर आ कि रघुवर,
शास्त्रमे सुन्नर
लागथि ।
हर धिया केर माए चाहथि,
जमाए शिवशंकर बनथि ।।
मिथिलाक बेटी छथि सिया,
तेँ पुज्य भरि
मिथिलामे ओ ।
भाग सीता सनि कहए सब,
ने हमर ललनाक हो ।।
देखि रहलहुँ मूक
- चुप,
मिथिलाक वैभव
लुटि रहल ।
सहन करबा केर
हद,
कखन धरि सभ चुप
रहब ??
मैथिली पाक्षिक
इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 193म अंक (01 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक 193) मे प्रकाशित ।
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