उठाऊ
लेखनी लीखू अहाँ
(कविता)
उठाऊ लेखनी, लीखू अहाँ,
जे किछु नञि लीखल गेल ।
नञि लीखब तँऽ ढोल ने पीटू
- किछु नञि लीखल गेल ।।
गीत - गजल, सभ किछु लीखू ।
नञि लीखलन्हि ओ, अपने
लीखू ।
गीता - गुरुग्रण्थ - कुरान
लीखू ।
बाइबल - जातक वा आन लीखू ।
ओ सभ लीखू, जे अछि इच्छा,
लीखल - ने लीखल गेल ।
नञि लीखब तँऽ ढोल ने पीटू
- किछु नञि लीखल गेल ।।
इतिहास लीखू, भूगोल लीखू ।
विज्ञान लीखू, खगोल लीखू ।
अनुवाद लीखू वा मूल लीखू
।
अपना भाषा लए खूब लीखू ।
अहँक हाथ के अछि धएने - नञि हुनिका लीखल भेल ।
नञि लीखब तँऽ ढोल ने पीटू
- किछु नञि लीखल गेल ।।
अहँ नञि लीखबै आ नञि
पढ़बै ।
अनका फेर दोष किएक
मढ़बै ।
पोथी आ पत्रिका नञि कीनबै
।
तँऽ अपने
मूँह कोना बजबै ।
की भेल ? अहाँ की सोचै छी ? ई दुविधा केहेन भेल ?
नञि लीखब तँऽ ढोल ने पीटू
- किछु नञि लीखल गेल ।।
ओतबहि करियौ सामर्थ्य जतेक ।
जुनि सोचू अहँ कऽ सकब
कतेक ।
घएला भरबा लए बुन्न जतेक ।
हर एक प्रयास केर मोल
ओतेक ।
जुनि किछु सोचू, झट लऽ बैसू,
लीखू जे मनमे भेल ।
नञि लीखब तँऽ ढोल ने पीटू
- किछु नञि लीखल गेल ।।
अहँक कथा केओ नञि लीखत ।
अहँक व्यथा केओ नञि लीखत
।
जञो लीखत तँऽ तुक्का लीखत
।
अपनहि लीखब, पक्का लीखब ।
अहँकेर अधिकार अहँक लीखब,
से छीनि कोना केओ लेत ।
नञि लीखब तँऽ ढोल ने पीटू
- किछु नञि लीखल गेल ।।
साहित्य - मैथिली सभकेर
अछि ।
हर जाति - धरमसँ ऊपर अछि ।
आनहु भाषी केर स्वागत अछि ।
हमरहु साहित्यमे
सागर अछि ।
हम अहँक पढ़ी, अहँ हमर पढ़ी,
इएह सुसम्बन्ध आ मेल ।
नञि लीखब तँऽ ढोल ने पीटू
- किछु नञि लीखल गेल ।।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट
पत्रिका “विदेह” केर 190म अंक (15 नवम्बर 2015) (वर्ष 8, मास 95, अंक 190) मे प्रकाशित ।
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