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Friday, 16 October 2015

पद्य - ‍१‍१८ - बनल मधेश मसान छै (गीत)

बनल मधेश मसान छै (गीत)

छायाचित्र सौजन्य - श्री पशुपतिनाथ मधेशीजीक वॉलसँ साभार
मारल  गेलै  लोक  कतेको,  बनल मधेश मसान छै ।

मारल  गेलै  लोक  कतेको,  बनल मधेश मसान छै ।
केहेन  छै    प्रजातन्त्र    केहेन  संविधान  छै !!

राजतन्त्रमे  भेदभाव - ओहि ठामक लोक  कहए छल ।
सम अधिकारक लेल प्रजातन्त्रक ओ बाट ताकए छल ।
आइ दिवस ओ एलै मुदा, बखड़ा नञि एक समान छै ।
केहेन  छै    प्रजातन्त्र    केहेन  संविधान  छै !!

अधिकारक जे माँग कएलक,  से गोलीक भेल शिकार ।
शोणितमय शुरुआत जकर, तक्कर भविष्य की आश ?
दूमेसँ हर एक व्यक्ति, जक्कर दहीन नञि - बाम छै ।
केहेन  छै    प्रजातन्त्र    केहेन  संविधान  छै !!

देश स्वतन्त्र ओ भिन्न  मुदा  भारतक सहोदर भाए ।
सएह सोचि  भारत कहलक,  करू संकट केर उपाए ।
भारत केर हित वचनकेँ उनटे, बूझए ओ अपमान छै ।
केहेन  छै    प्रजातन्त्र    केहेन  संविधान  छै !!

एक  देशमे  दू - नागरिकता,  जखन - जतए भेलैए ।
साक्षी अछि इतिहासे - ओक्कर  अप्पन अहित भेलैए ।
देश माए आ माएक लेल तँऽ सुन्नर सभ सन्तान छै ।
केहेन  छै    प्रजातन्त्र    केहेन  संविधान  छै !!


16 अक्टूबर 2015  कऽ प्रकाशनार्थ विदेह - पाक्षिक मैथिली ई पत्रिका केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।



मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍190म अंक (‍15 नवम्बर 2015) (वर्ष 8, मास 95, अंक ‍190) मे प्रकाशित । 

28 नवम्बर 2015 कऽ श्रीमति प्रेमलता मिश्र 'प्रेम'जीक पटना आवास पर आयोजित "सान्ध्य गोष्ठी"मे प्रस्तुति । 



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