समाज आ
विरोधाभास (कविता)
अप्पन बेटी डान्स करैए,
ई छी गर्वक बात ।
अनकर बेटी गीत गबैए,
धुर पीटता ओ माथ !!
अप्पन बेटी मॉडेल छी तँऽ,
मिथिलानी केर भाग
।
पढ़बा लए हॉस्टल
दोसर जँऽ,
उचित ने कनिञो
बात ।।
अप्पन बौआ उड़बए कौआ,
शार्प माइण्ड अछि
रखने ।
दोसर पोथी बाँचि
रहल जञो,
सुग्गा सनि की
रटने ??
टू-पीस, थ्री-पीस
अपना घरमे,
बड़-बड़ नबका फैशन
।
ओकर पुतोहु केर
पहिरन देखल,
मुशहरीक किछु कतड़न ।।१
इएह समाज छी
कमोबेश,
आ इएह एकर छी ढर्रा ।
अपने ओकैजनल
कहियो कऽ,
आन पिबैत’छि ठर्रा ।।२
अपना घर जेकिछु
ऊकड़ू अछि,
परिवर्तन छी बौआ ।
अनका घर किछु नऽव
भेल तँऽ,
बाजि रहल अछि ढौआ
।।
अपन बेढब जँ चालि
– चलन,
नव क्रान्तिक शंख
बजैए ।
आनक गति जँ रुचल-पचल
नञि,
संस्कृति नाश करैए
।।
अपने कनिञा
धिया-पुता लग,
आने बोल बजै
छी ।
तखन कोना
मिथिलाभाषामे,
अनका बाध्य करै
छी ।।
अप्पन टल्हा,
सोना सिक्का,
अनकर हीरा
- सीसा ।
अनकर कएल कर्मसभ
अनुचित,
जीबितहि अपन
चलीसा ।।३
अपने तालेँ नाचि
रहल सभ,
अपनहि–अपनहि बात ।
ककरो आन केओ नञि
सूनए,
ई छी केहेन
समाज ।।
१. मुशहरी = सुपर नेट या नेट बला साड़ी लेल गामक किछु वृद्ध
वा वृद्धालोकनि द्वारा प्रयुक्त कटाक्ष भरल शब्द ।
२. हम व्यक्तिगत रूपेण मदिरापानक प्रचारक नञि छी आ नहिञे
स्वयं पिबैत छी । पर जे करैत छथि तनिकहि शब्द अक्षरशः अछि ।
३. चलीसा = अप्पन सवयं केर प्रशंसाक अतिशय प्रचारार्थ कएल गेल
कोनहु प्रकारक कृत्य ।
४. हम व्यक्तिगत रूपेण ऊपर वर्णित कोनहु फैशन वा
जीवनशैलीक विरोध नञि करैत छी पर समाजमे पसरल किछु विरोधाभाषकेँ उजागर करबाक लेल
ओकर चर्च एहि कवितामे कएल गेल अछि ।
मैथिली पाक्षिक
इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 190म अंक (15 नवम्बर 2015) (वर्ष 8, मास 95, अंक 190) मे प्रकाशित ।
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