ओ अहाँ
लिखू जे नञि लिखलन्हि
(कविता)
ई नञि लिखलन्हि
।
ओ नञि लिखलन्हि
।
की नञि लिखलन्हि ?
के नञि लिखलन्हि
?
एहि पर विचार तखनहि
सार्थक, ओ अहाँ लिखू जे नञि लिखलन्हि ।।
ई बड़ अनुचित ।
अतिशय अनुचित ।
ई उचित रहैत ।
ओ उचित रहैत ।
एहि पर मण्थन तखनहि
फलप्रद, ओ अहाँ करू जे नञि कएलन्हि ।।
मैथिलीक साहित्य एना ।
मैथिलीक साहित्य ओना ।
ओहि भाषामे एना - ओना ।
एहि भाषामे किदन - कहाँ ।
ई वक्तव्य कोना हुनिकर,
जे मैथिली ने पढ़लन्हि - लिखलन्हि ।।
मैथिलीमे ई बात रहैत ।
मैथिलीमे ओ बात रहैत ।
विज्ञान खगोल भूगोल रहैत
।
मैथिलीमे इतिहास रहैत ।
की एहेन हो इच्छा रखने
जँ, अपने ओ किछु नञि लिखलन्हि ।।
बुन्न - बुन्नसँ घैल भरैछ ।
बेसी नञि किछुओ मँगैछ ।
जतबा होइए ततबा लीखू ।
अपना संगहि आनोकेँ पढ़ू ।
बकथोथी - पाण्डित्य विफल,
जञो से कागत पर नञि लीखलन्हि ।।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट
पत्रिका “विदेह” केर 190म अंक (15 नवम्बर 2015) (वर्ष 8, मास 95, अंक 190) मे प्रकाशित ।
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