Pages

मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

Powered By Blogger

Tuesday, 26 January 2016

पद्य - ‍१५० - कोइली (बाल कविता)

कोइली (बाल कविता)






कोइली कोइली सभ बजैत छी, पर के - के छी देखने ? *
एक्कहि संगे बाजि उठल सभ, कोइली हम छी देखने ।।

जोतला खेतमे  वा  पड़तीमे,  पानि जतए छै लागल ।
कारी - कारी  बहुते कोइली,  नाङ्गरि बीचसँ काटल ।।*

नञि बौआसभ आ बुच्चीसभ,  ओ तँऽ छी  धनछुआ ।
कारी - कोइली, कारी - कौआ आ करिया - धनछुआ ।।

कोइली  चिड़ै  प्रवासी  छै  ओ  दूर  देशसँ  आबए ।
भरि बसंत रहि, बरखा बादहिं, पुरना देश ओ भागए ।।*

अबितहिं एहिठाँ गाछीमे  ओ  कू - कू राग अलापए ।
मज्जर, टिकला, आमक संग-संग ई आबाज हर्षाबए ।।

ऊँच गाछ पर  घनगर पातक  बीच नुका कऽ बैसए ।
तेँ मनुक्ख आबाज सुनए बस, कोकिल-छवि ने देखए।।

कोइली  खोंता नञि बनबए,  कौआ बनबैतछि खोंता ।
कोइली  ताहिमे अण्डा पाड़ए,  कौआ संग छै धोखा ।।*

कौआ फरक ने बूझि पाबए, अपना - आनक अण्डामे ।
अण्डे नञि,  ओ पोषए - पालए कोइलीयोक बच्चाकेँ ।।

पाँखि उगल बच्चा उड़ि भागल,  अपना झुण्डक संगे ।
कौआ मूर्ख बनल कानैत अछि, दुनिञा रंग - बिरंगे ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

*मैथिलीमे,
·        कोइली - कारी रंगक चिड़ैविशेष जे कि भारतीय ओ आन वाङ्गमयसभमे अपन मधुर आबाजक लेल प्रशिद्ध अछि । हिन्दीमे एकरा कोयल आ अंग्रजीमे कुक्कू (CUCKOO) कहल जाइत अछि ।
·        कोयली - आमक आँठीक भीतरमे उज्जर रंगक कोमल संरचनाविशेष ।
·        मैथिलीमे कोइलीकोयली श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द भेल । मतलब कि एहेन शब्दसभ जे सुनबामे एकरँगाह लगैत अछि पर ओकर अर्थ अलग−अलग होइत अछि ।




* - धियपुता सभ (आ किछु पैघ लोक सभ सेहो) कारी रंगक कारण भ्रमवश करिया धनछुआकेँ (BLACK DRONGO) कोइली कहि दैत छथि ।

* - देश = राजनैतिक सीमासँ अलग देश होयब जरूरी नञि = दूरस्थ स्थान वा भिन्न जलवायुबला क्षेत्रक द्योतक

* - सभ प्रकारक कोइली आ पपीहा शिशु-भरण परजीवी (BROODING PARASITE) होइत अछि । ओ अपन अण्डा कौआ, करिया धनछुआ, धनछुआ या एहि तरहक आन चिड़ैसभक खोंतामे दैत अछि जे कि शिशु-भरण पोषक (BROODING HOST) केर भूमिका निमाहैत अछि । शिशु-भरण परजीवी अपन अण्डा चोड़ा-नुका कऽ शिशु-भरण पोषकक खोंतामे दऽ दैत अछि आ शिशु-भरण पोषक अपन अण्डाक संग-संग परजीवीक अण्डाकेँ सेहो सऐत अछि, अण्डासँ बच्चाकेँ निखालेत अछि आ खोअबैत-पिउपैत अछि । उड़बा जोकर भेलापर परजीवी कोइली या पपीहाहक बच्चा अपना-अपना झुण्डमे भागि जाति अछि आ ताहि बच्चाकेँ भागि गेला पर स्त्री/मादा कौआकेँ उदास होइत सेहो देखल गेल अछि ।

अंग्रेजीक CUCKOO शब्द बहुत व्यापक अछि । एहि अन्तर्गत कोइली, पपीहा आदि बहुत रास गाबय बला चिड़ै सभ अबैत अछि । एकरा अन्तर्गत अंग्रेजीक KOEL / TRUE CUCKOOINDIAN CUCKOO शब्दसभसँ बोध होइबला चिड़ैसभकेँ राखब बेशी उचित होयत जे जीव-विज्ञानमे क्रमशः EudynamysCuculus वंशसभक (GENERA) सदस्य पक्षी अछि । ई दुनु तरहक चिड़ै भारतमे सेहो प्रायः हर भागमे पाओल जाइत अछि । ऊपरुका चित्रमे देखाओल कोइली Eudynamys वंशक अछि । सभ प्रकारक कोइली मे मात्र नर कोइलीये टा गबैत अछि संगहि पुरुष/नर-कोइलीक रंग कारी या अपेक्षाकृत गाढ़ रंगक होइत अछि तथा मादा/स्त्री-कोइली अपेक्षाकृत हल्लुक या कम गाढ़ रंगक होइत अछि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍194म अंक (‍15 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍194) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।




Monday, 25 January 2016

पद्य - ‍१४९ - पोरकी या पौड़की (बाल कविता)

पोरकी या पौड़की (बाल कविता)





कहियो ने कहियो तोँ सुनने तँऽ हेबही ।
मारए गेलै परबा, मारि लेलकै पोरकी ।।

इएह छियै  पोरकी,  चिन्हीन्ह  बौआ ।
दूरसँ कखनो कऽ, लागै  जेना  परबा ।।*

शान्त स्वभाव  छै  जेना  लजबिज्जी ।
घोल - अनघोलसँ  होइ   कछमच्छी ।।

ऊँचका  गाछ  पर,  खोंता ओ लगबए ।
दुहु - प्राणी शान्तसँ,  खोंतामे विचरए ।।*

खेत - खरिहानमे   दाना  लेल उतरए ।
मनुक्खक आहटि  पबितहिं  उड़ि जाए ।।

परबाक  स्त्रीलिङ्ग  बूझू जुनि  पोरकी ।
परबा  फराक  आ  फराके छै  पोरकी ।।

परबा आ पोरकी − दुहुमे  दू लिङ्ग छै ।
भ्रम दूर भेल, दुहु शब्द उभयलिङ्ग छै ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - दूरसँ देखला पर परबा (परेबा) आ पोरकी (पौड़की) एकरंगाह लगैत अछि पर दुनु अलग - अलग चिड़ै अछि ।

* - ई चिड़ै प्रायः जोड़ामे अपन खोंतामे या कोनहु गाछक डाढ़ि पर बैसल भेटैछ ।

* - पोरकी शब्द परबाक स्त्रीलिङ्ग नञि अछि । एहिसँ नर पोरकी आ मादा पोरकी दुनुक बोध होइत अछि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍194म अंक (‍15 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍194) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।



पद्य - ‍१४८ - मोहखा या मोखा (बाल कविता)

मोहखा या मोखा (बाल कविता)





खेतमे  आ  बाड़ी - झाड़ीमे ।
पड़ती - गाछी - बँसबिट्टीमे ।
कूदए - फानए एक चिड़ै ।।

बेशी ओकरा उड़ल ने होइछ ।
कूदए - फानए - कने उड़ैछ ।
लाल आँखिबाला  ओ  चिड़ै ।।

देह आ नाङ्गरि कारी - कारी ।
कौआ सनि  केर  बूझू  कारी ।
लाल पाँखिबाला  ई  चिड़ै ।।

कीड़ा - मकोड़ा डोका गिरगिट ।
बेङ्ग साँप भूआ आ की - की !
खा कऽ  पेट भरैछ ओ चिड़ै ।।

एतबहिसँ  ने  पेट  भरैत  छै ।
अण्डा - चुज्जा फऽड़ ठुसैत छै ।
ताड़ - खजूरक   शत्रु   चिड़ै ।।

सौंसे भारतमे  भेटैत  अछि ।
पर्वत पठार मैदान फिरैतछि ।
मोहखा या मोखा जे चिड़ै ।।


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

कुक्कू (CUCKOO) गण आ परिवार (Order - Cuculiformes & Family - Cuculidae) केर सदस्य होइतहुँ मोहखा एहि परिवारक आन सदस्यसभ सनि शिशुभरण-परजीवी (BROOD PARASITE) नञि अछि । ओ अपन खोंता बनबैत अछि, अपन अण्डाकेँ अपने सेअइत अछि आ बच्चाक देखभाल सेहो अपनहि करैत अछि । एहि परिवारक आन बहुत रास सदस्य जेना कि कोइली, पपीहा, चातक आदि शिशुभरण-परजीवी (BROOD PARASITE) होइत अछि ।

मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍194म अंक (‍15 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍194) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


पद्य - ‍१४७ - सिरौली या नकली नीलकण्ठ (बाल कविता)

सिरौली या नकली नीलकण्ठ

(बाल कविता)




हे नकली नीलकण्ठ !  तोहर छह  गजब पिहानी ।
असली  भेल   अलोपित,  तोँही   राजा - रानी ।।*

नील-हरित तोर पाँखि,  तोँहूँ बैसए छऽ ताड़ पर ।*
गर्दनि  छह ने नील  तोहर,  मटियाही - पीयर ।।*

नकली अशोक जे, दुनिञा  तकरा असली बूझए ।
सीता-अशोक जे छी असली, से केओ ने चीन्हए ।।*

तहिना तोहर साम्राज्य बहुत,  पसरल छह सौंसे ।
असली  दुर्लभ,  नकली  सर्वसुलभ,  सब लोके ।।

नाम सिरौली तोहर छियऽह,  बूझल से हमरा ।
अलग सिरोली मएना से जानए भरि मिथिला ।।*



संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - असली नीलकण्ठ नञि देखाइ देबाक कारण लोक एकरे नीलकण्ठ मानि बैसल अछि । भ्रमक आओरो बहुत रास कारण अछि ।

* - एकर पाँखि नील रंगक होइत अछि जे उड़बा काल चमकैत हरिताभ-नील रंगक बुझि पड़ैछ । मिथिलामे पहिने असली नीलकण्ठ सेहो बिजलीक ताड़ पर बैसल भेटैत छल तहिना ईहो चिड़ै भेटैत अछि ।

* - एकर गर्दनि नील नञि भऽ कऽ पीयर सनि होइत अछि । एहि चिड़ैकेर बिदेशी किछु प्रजातिसभमे (SUB-SPECIES) पीयर गर्दनि पर नील आभा रहैत अछि पर ओ सभ उत्तर भारतमे नञि पाओल जाइछ आ नहिञे कहियो पहिने पाओल जाइत छल । तेँ ओ नीलकण्ठ नञि भऽ सकैछ । तेलुगू भाषामे एकर नाम पलपित्त अछि जखनि कि कन्नर भाषामे नीलकण्ठी कहबैछ । सम्भवतः कन्नर भाषाक नीलकण्ठीसँ ई भ्रम उपजल कि इएह संस्कृतक नीलकण्ठ अछि । पर जे हो, मैथिलीक नीलकण्ठ ई नञि अछि ।

* - आइ - काल्हि जाहि शोभा वृक्षकेँ अशोक नामसँ जानल जाइत अछि से वस्तुतः नकली अशोक छी । रावणक अशोक वाटिकाक अशोक जकर कि चिकित्सकीय प्रयोग आयुर्वेदमे बताओल गेल अछि, से अलग अछि । ओकरा आइ - काल्हि सीता अशोक कहल जाइत अछि आ इएह असली अशोक अछि जकर प्रयोग अशोकारिष्ट आदि बनएबामे होइत अछि ।

*- मिथिलामे एकरा सिरौली नामसँ जानल जाइत अछि (सिरोली नञि) । सिरोली एकटा अलग चिड़ै अछि, ओ एक तरहक मएना अछि ।





मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍194म अंक (‍15 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍194) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।