वसन्तक आगमण पर
भेल पुलकित दिग - दिगन्त,
आ खीलि उठल हर अन्तरा१ ।
स्वागतहि
आगत वसन्तक,
सजि रहल
ई वसुन्धरा ।।
कास
केर तजि श्वेत अभरण,
पहीरि
कुसुमक ललित पहिरन,
कऽ सकल
सिंगार हर्षित,
कर प्रतिक्षा वसुन्धरा ।
भेल
पुलकित दिग दिगन्त, आ खीलि उठल हर अन्तरा ।।
चानने मलयक सुवासित,
सौरभेँ पुष्पक
प्रभावित,
करय
गमगम, मुदित हर कण,
हर दिशा,
हर अन्तरा२ ।
भेल
पुलकित दिग दिगन्त, आ खीलि उठल हर अन्तरा
।।
हँसि रहल निमिलित कमलदल,
मुद मनेँ
अलिदलक सञ्चर,
मुदित, हर्षित, लसित कोकिल,
गाबय स्वागत
अन्तरा३ ।
भेल
पुलकित दिग दिगन्त, आ खीलि उठल हर अन्तरा ।।
अर्थ निर्देश :-
१)
अन्तरा = कोण / कोणा – दोगा
२)
अन्तरा = दू (दिशाक) बीच मे स्थित (जगह या स्थान)
३)
अन्तरा = गीतक आखर (सामान्य
शब्देँ)
No comments:
Post a Comment