जयति जय श्री त्रिपुरारी केर
(शिवराति पर विशेष)
कार्तिक आओर गणेशक
तात, रुद्र - असुरारि केर ।
बसहा बरद सवारी केर ना ।। |
बम - बम भोलेनाथ, जयति - जय
श्री त्रिपुरारी केर ।
त्रिलोचन, चन्द्रधारी केर ना
।।
कर मे त्रिशूल आ डमरू
विराजन्हि,
जनिकर अम्बर
छन्हि बघछाल ।
गरा मे लटकनि
साँप अहर्निश,
संगहि रुद्राक्षक
छन्हि माल ।
शम्भू – गिरिजापति, जय
नीलकण्ठ, जटाधारी केर ।
गंगा
मस्तकधारी केर ना ।।
श्मशान मे राज जनिक छन्हि,
भूत – प्रेत केर
संग ।
कान मे कुण्डल, हाथ कमण्डल,
सौंसे देह
रमओने भस्म ।
गौरीकान्त, गिरीश, उमापति, जय ऋतुध्वंशी केर ।
उगना मिथिलाविहारी केर ना ।।
वास जनिक कैलाशक ऊपर,
हिमगिरि जनिक तपोवन ।
त्रिपुरासुर केँ मारि
खसाओल,
कएल जलन्धर भञ्जन ।
कार्तिक आओर गणेशक
तात, रुद्र - असुरारि केर ।
बसहा बरद सवारी केर ना ।।
हिनक भक्त रावण छल रक्तप,
तइयो मान
ओकर राखल ।
कयल तपस्या घोर भगीरथि,
मनवाञ्छित फल ओ पाओल।
भोला - भंगिया – शिव -
शंकर; भक्तक हितकारी जे ।
विष्णु - चरण पुजारी जे ना ।।
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