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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Sunday, 19 February 2012

पद्य - ३९ - जयति जय श्री त्रिपुरारी केर


जयति जय श्री त्रिपुरारी केर
(शिवराति पर विशेष)



कार्तिक आओर गणेशक तात,  रुद्र - असुरारि केर ।
                   बसहा बरद सवारी केर ना ।।



गौरीकान्त,  गिरीश, उमापति,  जय ऋतुध्वंशी केर ।
                उगना मिथिलाविहारी केर ना ।।






बम - बम भोलेनाथ, जयति - जय श्री त्रिपुरारी केर ।
                   त्रिलोचन, चन्द्रधारी केर ना ।।

कर मे त्रिशूल आ डमरू विराजन्हि,
जनिकर  अम्बर  छन्हि बघछाल ।
गरा मे  लटकनि  साँप  अहर्निश,
संगहि  रुद्राक्षक   छन्हि   माल ।
शम्भू – गिरिजापति, जय नीलकण्ठ, जटाधारी  केर ।
                     गंगा मस्तकधारी केर ना ।।

श्मशान मे राज जनिक छन्हि,
भूत – प्रेत    केर     संग ।
कान मे कुण्डल, हाथ कमण्डल,
सौंसे   देह  रमओने   भस्म ।
गौरीकान्त,  गिरीश, उमापति,  जय ऋतुध्वंशी केर ।
                 उगना मिथिलाविहारी केर ना ।।

वास जनिक कैलाशक ऊपर,
हिमगिरि  जनिक तपोवन ।
त्रिपुरासुर केँ मारि खसाओल,
कएल   जलन्धर  भञ्जन ।
कार्तिक आओर गणेशक तात,  रुद्र - असुरारि केर ।
                   बसहा बरद सवारी केर ना ।।

हिनक भक्त रावण छल रक्तप,
तइयो  मान  ओकर राखल ।
कयल  तपस्या घोर भगीरथि,
मनवाञ्छित फल ओ पाओल।
भोला - भंगिया – शिव - शंकर;  भक्तक हितकारी जे ।
                   विष्णु - चरण पुजारी जे ना ।।
विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५० , अंक ‍१०० , ‍१५ फरबरी २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।


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