मातृभूमि निज मिथिला अछि,
छी वासी हिन्दुस्तान
के
(मातृ भू वन्दन गीत)
(मातृ भू वन्दन गीत)
फहराय हमेशा मुक्त
व्योम मे,
विजयी - विश्व - तिरंगा
।
रहय विश्व मे
सभसँ आगाँ,
हमर देश केर झण्डा ।। |
मातृभूमि निज मिथिला अछि,
छी वासी हिन्दुस्तान के (केर)।*
पुण्यभूमि, रणभूमि, तपो - भू,
धरती स्वर्ग समान जे
।।
युग - युग सँ अछि ठाढ़ जतऽ,
गर्वोन्नत दिव्य हिमालय
।
गूँजय वेद - पुराण जतऽ,
अछि सदाचार केर आलय ।
बहय जतऽ गोदावरी,
गंगा,
कोशी, कमला आ कृष्णा ।
विभिन्न धर्म, भाषा भाषी जतऽ,
रहय निडर भऽ, क्लेश विना ।
शत कोटि करय छी नमण आइ हम,
धरती कनक समान
जे ।
पुण्यभूमि, रणभूमि, तपोभू,
धरती स्वर्ग समान जे
।।
भारत केर सन्तान
छी हम,
आ भारत माँ केर
प्रहरी ।
धर्म हमर अछि देशक
रक्षा,
देशक उन्नति – प्रगती (ति) ।**
देत कुदृष्टि जे एहि धरती
पर,
करब तकर सन्धान ।
मारि भगायब हर एक केँ,
जे होयत खल शैतान ।
इएह धरती थिक मण्डन गौतम,
औलिया, नानक राम के (केर) ।*
पुण्यभूमि, रणभूमि, तपो - भू,
धरती स्वर्ग समान जे
।।
फहराय हमेशा मुक्त
व्योम मे,
विजयी - विश्व - तिरंगा
।
रहय विश्व मे
सभसँ आगाँ,
हमर देश केर झण्डा ।
अमर रहय ई देश, जतऽ
अछि धीर – वीर सन्तान ।
मातृभूमि केर रक्षा लेऽ
जे,
करय निछाउर प्राण ।
नञि बिसरि सकब गान्धी - सुभाष,
आ
अगनित कत’ बलिदान केँ ।
पुण्यभूमि, रणभूमि, तपो - भू,
धरती स्वर्ग समान जे
।।
गीतकार – डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”
* मैथिली काव्य रूप मे बहुधा “केर” आ “केँ” केर उच्चारण द्विमात्रिक “के” सन
होइत अछि । यद्यपि गद्य मैथिली मे एहि प्रकारेँ लिखब गलत अछि पर पद्य मैथिली मे पद्यक
लय – ताल केर अनुसारेँ आवश्यकता पड़ला पर लिखल जा सकैत अछि ।
- केर = ह्रस्व उच्चारण = ।। = २ मात्रा
- केँ = दिर्घ उच्चारण = ऽ = २ मात्रा
- के = दिर्घ उच्चारण = ऽ = २ मात्रा
** पद्य मैथिलीक एकटा आओर विशेषता । पद्य
मैथिली मे पद्यक लय – ताल केर अनुसारेँ आवश्यकता पड़ला पर मूल “ह्रस्व उच्चारण”
केँ “दिर्घ” आ “दिर्घ उच्चारण” केँ “ह्रस्व” रूप मे उच्चारित कयल जा सकैत अछि ।
“विदेह” मैथिली पाक्षिक इ –
पत्रिका, अंक ९९, वर्ष ५, मास ५० मे प्रकाशनार्थ प्रेषित ।
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