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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Friday, 27 January 2012

पद्य - ३७ - माँ शारदे वन्दना - ‍१


माँ शारदे वन्दना - ‍१
(गीत)





जय  अम्बे,  जय  माँ शारदे,
विनय  हमर  स्वीकार करू ।
सभहक अहाँ सुनै छी हे माता,
हमरो   बेड़ा   पार    करू ।
क्षमा करू  अपराध हमर सभ,
हमरो  अहाँ   उद्धार   करू ।
जय  अम्बे,  जय  माँ शारदे,
विनय  हमर  स्वीकार करू ।।

नञि जानी पूजा केर विधि  माँ,
हम धिया - पुता अज्ञानी छी ।
दिशाहीन  संसार  बीच    हम,
अहींक  चरण - अनुगामी छी ।
हमहूँ अहींक सन्तान छी  माता,
हमरो निज करुणा  दान करू ।
पथ - प्रशस्त, शुभ - दिशाबोध,
सद्ज्ञान  दियऽ, अभिमान हरू।
जय   अम्बे,  जय  माँ शारदे,
विनय   हमर  स्वीकार करू ।।


नञि बालक प्रह्लाद छी हम माँ,
नञि ध्रुव सन हम ज्ञानी छी ।
आयल छी माँ अहींक शरण मे,
कृपा  दृष्टि  केर  कामी  छी ।
अज्ञानक  अन्हार   हरू   माँ,
ज्ञानक  ज्योति  प्रदान  करू ।
नहि हमरहि, सम्पुर्ण जगत भरि,
सभ – जन केर कल्याण करू ।
जय   अम्बे,  जय  माँ शारदे,
विनय   हमर  स्वीकार करू ।।


लेखकः- डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”

“विदेह” मैथिली पाक्षिक इ – पत्रिका, अंक ९९, वर्ष ५, मास ५० मे,  ‍१ फरवरी २०१२ कऽ, स्तम्भ “बालानां कृते” मे प्रकाशनार्थ प्रेषित ।

पद्य - ३७ - माँ शारदे वन्दना - ‍२


माँ शारदे वन्दना - ‍२
(गीत)





जय  माँ   शारदे,  विद्यादायिनी,
अज्ञानस्य    तिमिर    हरणम् ।
तन शुभ्र प्रकाशित, पंकज राजित,
शोभित  चारु   कमल  नयनम् ।।
जय  माँ   शारदे,  विद्यादायिनी, अज्ञानस्य   तिमिर    हरणम् ।।

भामिनी  चतुरानन,  हंसहि वाहन,
शान्त  स्वभाव,  वाणि  मधुरम् ।
वीणा कर शोभित, सभजन पूजित,
सकल  कला – कौशल  कुशलम् ।।
जय  माँ   शारदे,  विद्यादायिनी, अज्ञानस्य   तिमिर    हरणम् ।।


मम्  जहि  निर्बुद्धि,  देहि  सुबुद्धि,
विद्या  सम   वारिधि   सलिलम् ।
छल लोभ च कामम्, तम अज्ञानम्,
हरिअ  सकल  मम्  दोष अयम् ।।
जय  माँ   शारदे,  विद्यादायिनी, अज्ञानस्य   तिमिर    हरणम् ।।


लेखकः- डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”

“विदेह” मैथिली पाक्षिक इ – पत्रिका, अंक ९९, वर्ष ५, मास ५० मे,  ‍१ फरवरी २०१२ कऽ, स्तम्भ “बालानां कृते” मे प्रकाशनार्थ प्रेषित ।

Thursday, 26 January 2012

पद्य - ३६ - मातृभूमि निज मिथिला अछि, छी वासी हिन्दुस्तान के


मातृभूमि निज  मिथिला  अछि,  छी  वासी  हिन्दुस्तान  के
(मातृ भू वन्दन गीत)


 

फहराय  हमेशा  मुक्त व्योम मे,
                     विजयी   -  विश्व   -  तिरंगा ।
रहय  विश्व  मे  सभसँ  आगाँ,
                      हमर   देश    केर    झण्डा ।।



मातृभूमि निज  मिथिला  अछि,
                       छी  वासी  हिन्दुस्तान  के (केर)।*
पुण्यभूमि,  रणभूमि,  तपो - भू,
                         धरती   स्वर्ग   समान   जे ।।

युग - युग सँ अछि ठाढ़ जतऽ,
                      गर्वोन्नत  दिव्य  हिमालय ।
गूँजय  वेद - पुराण  जतऽ,
                       अछि सदाचार केर आलय ।
बहय  जतऽ  गोदावरी,  गंगा,
                       कोशी, कमला  आ कृष्णा ।
विभिन्न धर्म, भाषा भाषी जतऽ,
                     रहय निडर भऽ, क्लेश विना ।
शत कोटि करय छी नमण आइ हम,
                            धरती  कनक  समान  जे ।
पुण्यभूमि,  रणभूमि,  तपोभू,
                         धरती   स्वर्ग   समान   जे ।।

भारत  केर  सन्तान  छी हम,
                      आ  भारत  माँ  केर  प्रहरी ।
धर्म हमर  अछि  देशक  रक्षा,
                      देशक उन्नति – प्रगती (ति) ।**
देत कुदृष्टि जे एहि धरती पर,
                       करब   तकर     सन्धान ।
मारि भगायब हर एक केँ,
                       जे    होयत   खल   शैतान ।
इएह धरती थिक मण्डन गौतम,
                         औलिया, नानक राम के (केर) ।*
पुण्यभूमि,  रणभूमि,  तपो - भू,
                         धरती   स्वर्ग   समान   जे ।।

फहराय  हमेशा  मुक्त व्योम मे,
                     विजयी   -  विश्व   -  तिरंगा ।
रहय  विश्व  मे  सभसँ  आगाँ,
                      हमर   देश    केर    झण्डा ।
अमर  रहय  ई  देश,   जतऽ
                      अछि   धीर – वीर   सन्तान ।
मातृभूमि  केर  रक्षा  लेऽ जे,
                      करय     निछाउर     प्राण ।
नञि बिसरि सकब गान्धी - सुभाष,
                         आ अगनित कत’ बलिदान केँ ।
पुण्यभूमि,  रणभूमि,  तपो - भू,
                         धरती   स्वर्ग   समान   जे ।।



गीतकार – डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”



* मैथिली काव्य रूप मे बहुधा “केर” आ “केँ” केर उच्चारण द्विमात्रिक “के” सन होइत अछि । यद्यपि गद्य मैथिली मे एहि प्रकारेँ लिखब गलत अछि पर पद्य मैथिली मे पद्यक लय – ताल केर अनुसारेँ आवश्यकता पड़ला पर लिखल जा सकैत अछि ।

  •  केर = ह्रस्व उच्चारण = ।। = २ मात्रा
  •  केँ = दिर्घ उच्चारण = ऽ = २ मात्रा
  •  के = दिर्घ उच्चारण = ऽ = २ मात्रा

**  पद्य मैथिलीक एकटा आओर विशेषता । पद्य मैथिली मे पद्यक लय – ताल केर अनुसारेँ आवश्यकता पड़ला पर मूल “ह्रस्व उच्चारण” केँ “दिर्घ” आ “दिर्घ उच्चारण” केँ “ह्रस्व” रूप मे उच्चारित कयल जा सकैत अछि ।


“विदेह” मैथिली पाक्षिक इ – पत्रिका, अंक ९९, वर्ष ५, मास ५० मे प्रकाशनार्थ प्रेषित ।

Tuesday, 17 January 2012

उड़ि ने सकी पर चिड़ै छी हम (भाग - ‍१)




विज्ञान विषयक लेख सभक लेल नित नऽव पारिभाषिक शब्द सभक आवश्यकता पड़ैछ । एहि प्रकारक पारिभाषिक शब्द सभ कोनहु भाषा मे ओकर मातृक मूल भाषा (Parent / Source language) सँ बनाओल जाइछ, यथा अंग्रेजी मे लैटिन सँ  मैथिली मे संस्कृत सँ 

 
उड़ि ने सकी पर चिड़ै छी हम
(भाग-१)


किछु दिन पहिने गाम गेल रही । साँझ खन धिया पुता सभ घेर लेलक । सभहक एक्कहिटा जिद्द जे खिस्सा सुनाउ । 
हम कहल – हमरा किस्सा तिस्सा नञि आबैत अछि । जो दादी सँ सुन गऽ ।
प्रिया – नञि यौ अहाँ झूठ बजैत छी । हम अहाँक खिस्सा सभ पढ़ने रही विदेह मे ।
ई सुनितहि बाकी धिया – पुता सेहो जोर सँ चिचिआए उठल – हमहूँ पढ़ने रही । बड्ड नीक लागल छल ।
हम – ओ तऽ इण्टरनेट पर आबै छै, तोँ सभ कोना पढ़लह ।
नन्दू बाजल – हमरा सभ केँ इस्कूल मे कम्प्यूटर देलकैए । मास्टर साहेब देखओलन्हि अहाँक लिखल खिस्सा आ पढ़ि कऽ सेहो सुनओलन्हि ।

विकास – हाँ यौ, हऽम एक जनवरी कऽ पटना मे मामा लग रही । हुनिका लऽग मे लैपटॉप छन्हि, ओत्तहि अहाँक लीखल खिस्सा पढ़लहुँ , बहुत नीक लागल ।
सोनी – हाँ चित्र सभ सेहो बहुते नीक रहए ।
एतबहि मे बब्बन सेहो तपाक सँ बाजि उठल – हाँ हमरा ओहने खिस्सा सुनइ के हए । हमनी के परी आर केर खिस्सा नञि सुनै के हए ।

हम – तऽ अहीं सभ बताउ - आइ की कएल जाए ? कतऽ चलल जाए ? कोन खिस्सा सुनाओल जाए ?
बब्बन – हमनी के जे अहाँ सुनेबै से सुनबै ।
प्रिया – हाँ, अहाँ अपने मोन सँ किछु सुनाउ ने । जएह अहाँ केँ नीक लागए सएह सुनाउ ।

हम – तऽ चलू आइ किछु एहेन चिड़ै सभक बारे मे सुनबैत छी जे चिड़ै रहितो चिड़ै नञि आ चिड़ै सनि नहिञो लगैत चिड़ैअहि थिक ।
नन्दू – माने ?
सोनी – बुझौअलि नञि बुझाऊ, साफ – साफ कहू ने !
प्रिया – हाँ, खिस्सा सुनबाक अछि बुझौअलि नञि ।

हम – अरे, धैर्य राखू
! कहै छी सभटा । आइ हम सभ ओहि चिड़ै सभक खिस्सा सुनए जा रहल छी जे उड़ि नञि सकैत अछि – तेँ पहिल नजरि मे ओ सभ चिड़ै नञि बुझि पड़ैत अछि । 
सोनी – मतलब की चिड़ै रहितहु ओ चिड़ै नहि ।

हम – एकदम सही । पर ओकर सभक पुरखा लोकनि उड़ैत छलाह । वातावरणक प्रभाव आ आवश्यकता केर अनुसार धीरे – धीरे ओ सभ उड़नाइ छोड़ि देलन्हि आ तेँ आब ओ सभ नञि उड़ि सकैत छथि ।
नन्दू – मतलब कि, चिड़ै सनि नहिञो लगैत, चिड़ैअहि छथि ।
बब्बन – (कने दिमाग पर जोर दैत बाजल)  – ........वा....ता......रणक.........प्रभाव ? नञि बुझली हम ।
हम – ठीक छै, एना बुझह । हम सभ गोटे मिथिला मे रहैत छी, तेँ मैथिल छी । हमर सभ गोटाक मातृभाषा मैथिली थिक । छै ने ?

बब्बन – हाँ से तऽ छै ।
हम – हम सभ गोटे मैथिली बजैत छी पर तइयो बजबा मे थोड़ेक – थोड़ेक अन्तर थिक । जे पच्छिमी मिथिला मे रहैत छथि तनिका मैथिली मे भोजपूरीक किछु बेशिअहि शब्द मिलल रहैत अछि , तनिकर बजबाक अन्दाज सेहो कने कड़गर रहैत अछि । तहिना जे दक्षिण मिथिला मे रहैत छथि तनिका मे बाङ्गला, उड़िया आ सन्थाली आदि भाषाक कतिपय शब्द सभ मिलल रहैत अछि । जे केन्द्रिय मिथिला (बीच केर मिथिला) मे रहैत छथि तनिकर चारू कात मैथिलीए भाषा – भाषी छथि तेँ हुनिकर मैथिली मे आन भाषाक मिलावट अपेक्षाकृत बहुत कम रहैत अछि । 
नन्दू - मतलब कि, जे मैथिली भाषा – भाषी मिथिलाक सीमा भाग मे रहैत छथि हुनिकर भाषा मे आन भाषा सभक कारणेँ किछु आनो शब्द वा गुण आबि जाइत अछि जे मूलतः ओहि भाषा केर शब्द वा गुण नहि थिक । 
हम – एकदम सही । ई भेल सीमापरक मैथिली भाषा पर ओतुक्का वातावरणक प्रभाव ।
बब्बन – हूँ ऽऽऽ । नम्हर साँस लैत गम्भीरता सँ बाजल ।
हम – पर एहि तरहक वातावरणक प्रभाव सँ की भाषा बदलि जाइत छै ? नञि ने ? तहिना किछु चिड़ै सभ उड़नाइ बिसरि गेल अछि - पर ओकर पंख एखनो छै । किछु चिड़ै सभक पंख उड़बाक जगह वातावरणक माँग केर अनुरूप पानि मे हेलबाक काज अबैत अछि – पर मूलतः ओ पंखहि थिक । तेँ ओकरा सभ केँ चिड़ै नञि मानब मूर्खता अछि ।

बब्बन – हँ हमरो बगल मे कुछ लोक सभ कहय छलथिन जे रौआ के भाषा बज्जिका हए ?  पर बाबूजी कहै छथिन कि हमनी के भाषा मैथिलीए हए । बस बजै मे दड़िभंगा सँ कनेक अन्तर हए ।


हम – हँ सही कहय छथि अहाँक बाबूजी । मिथिला, विदेह, वज्जी, बज्जी, तिरहुत आ तिरभुक्ति एक्कहि भू – भाग केर पर्यायी नाँव अछि । तेँ मैथिली, बज्जिका आ तिरहुतिया सेहो एक्कहि भाषा केर नाँव भेल, अलग – अलग भाषा केर नञि । प्राचीन काल मे एकरा “मिथिला भाषा” कहल जाइत छल ।
बब्बन – हँ अब बुझली ।
सोनी – मतलब कि मैथिलिअहि केर दोसर नाँव बज्जिका आ तिरहुतिया अछि । कने - मोने जे अन्तर अछि से ओतुक्का वातावरणक असरि थिक । एहि छोट – मोट अन्तर केर आधार पर एकरा सभ केँ अलग अलग भाषा माननाइ ओहने मूर्खता भेल जेना कि एहि विशिष्ट चिड़ै सभ केँ चिड़ै नञि माननाइ ।
हम – हँ , एकदम सौ प्रतिशत सही बुझलहुँ अहाँ । खैर हम सभ मुख्य खिस्सा पर चली ।
प्रिया – हँ ।
हम – शुतुर्मुर्गक नाँव सुनने छह की ?
सब धिया – पुता एक्कहि संग बाजि उठल – हँ । अफ्रिका मे होइत छै ।
बब्बन – हँ , सहाराक मरूस्थल मे होइ हए ।
हम – बेस । पर सहारा मरूभूमिक अतिरिक्त अफ्रिका महादेशक आनहु भाग – जेना कि सवाना घासभूमि आ दक्षिण अफ्रिकाक कालाहारी मरूभूमि – आदि स्थान सभ मे ओ भैटैत अछि । शुतुर्मुर्ग केँ अंग्रेजी मे  ऑस्ट्रिच (Ostrich) कहल जाइत छै । धरती पर एखन पाओल जाएवला चिड़ै सभ मे ई सभ सँ पैघ आ भाड़ी होइत अछि । एक पुर्ण वयस्क पुरुख शुतुर्मुर्गक लम्बाई प्रायः 1.7 सँ  2 मीटर ( 5 फीट 7 इंच सँ  6 फीट  7 इंच) धरि, जखन कि पुर्ण वयस्क स्त्री शुतुर्मुर्गक लम्बाई 1.8 सँ  2.75 मीटर ( 6 सँ  9 फिट)  धरि भऽ सकैत अछि । साधारणतः एकर ओजन 60 कि॰ ग्रा॰ सँ  130 कि॰ ग्रा॰ धरि होइत अछि पर कखनो – कखनो 157 कि॰ ग्रा॰ धरि सेहो देखल गेल अछि । एकर टाँग आ गर्दनि नाम – नाम, धऽर भाग पैघ आ भारी पर मूरी बहुत छोट होइत अछि । जमीन सँ मूरी धरिक एकर उँचाई करीब 2  मीटर (6.6 फीट) तक होइत अछि ।  मूरीक आकार छोट रहितहु आँखि बहुत पैघ – पैघ होइत अछि । एकर आँखिक आकार समस्त रीढ़युक्त प्राणी (Vertebrates; जाहि प्राणी सभ मे रीढ़क हड्डी या ओकर समान कोनो संरचना होइत अछि) सभ मे सभसँ पैघ होइत अछि – एकर आँखिक व्यास  (diameter) लगभग 50 मिली मीटर आर्थात्  2 इंच धरि होइत अछि । बहुतहि तीक्ष्ण देखबाक आ सुँघबाक शक्तिक कारण ओ दूरहि सँ अपन दुश्मन प्राणी सभक आहटि बूझि सकैत अछि आ सचेत भऽ सकैत अछि । 



पवन – अपना सभ मैथिल जेकाँ नञि, कि लऽग मे बैसलो दुश्मन केँ नञि चीन्हि सकी । अपन घऽर धू – धू कऽ जड़ैत रहय आ दोसराक संग बैसि कऽ थोपड़ी बजबैत रही ।
हम -  हूँऽऽ । बड्ड फुराए छऽ तोरो । खैर, जीव विज्ञान वा प्राणीशास्त्रक (Life Science / Biology / Zoology)   भाषा मे एकर नाँव स्ट्रुथिओ कैमेलस् (Struthio camelus)  थिक । 
नन्दू – कैमेल माने ऊँट ।
हम – हाँ, कैमेल माने ऊँट । ऊँटहि सन शुतुर्मुर्गक पीठ पर सेहो कुब्बर होइत अछि आ रहितो अछि ऊँटहि जेना मरूस्थलहि मे - तेँ कैमेलस् । एकर पएरक हड्डी आ मांसपेशी बहुत मजबूत होइत अछि आ तेँ विपत्तिक समय मे ओ 70 कि॰ मि॰ प्रति घण्टाक गति सँ प्रायः आधा घण्टा धरि दौड़ि सकैत अछि । ओ सभ झुण्ड मे रहैत अछि जकर नेतृत्व कोनो ने कोनो पुरुख शुतुर्मुर्ग करैत अछि । एक झुण्डक सभ स्त्री सदस्य लोकनि माटिक तऽर मे बनल एक्कहि घोसला मे अण्डा दैत छथि । आ ई अण्डा सभ देखै मे भलेहि हमरा सब केँ एकरँगाह लागय पर सभ स्त्री शुतुर्मुर्ग अपन अपन अण्डा केँ चीन्हि सकैत छथि - छै ने आश्चर्यक गप्प ! आ एतबहि नञि स्त्री शुतुर्मुर्गक एक अण्डाक व्यास (diameter) 30 सँ  60 सेण्टी मीटर ( 12 सँ  24 इंच) धरि भऽ सकैत अछि ।
बब्बन – अरे ! ई तऽ फूटबॉल सऽ सेहो पैघ होइ हए ।



हम – हाँ । शुतुर्मुर्गक अण्डा संसार मे सभसँ पैघ होइत अछि ।  शुतुर्मुर्ग  ओना तऽ शाकाहारी होइत अछि पर भोजनक अभाव मे छोट – मोट कीड़ा मकोड़ा खा कऽ सेहो गुजर करैत अछि । माँसु, चमड़ा आ पंखक लेल पिछला 200 वर्ष मे एकर अत्यधिक शिकार होयबाक कारणेँ आइ ई विलुप्त होयबाक स्थिति मे आबि गेल अछि आ सम्प्रति संरक्षित वन्य प्राणी अछि । 
प्रिया – ई तऽ बहुत दुखक गप्प थिक ।
हम – हाँ से तऽ छै । शुतुर्मुर्गक बाद उँचाई मे दुनिञाक सभसँ पैघ चिड़ै अछि – एमू (Emu) । एकर अधिकतम् ऊँचाई 1.5  सँ 1.9 मीटर (5 फीट सँ  6 फीट  3 इंच धरि) होइत अछि । ओ ऑस्ट्रेलिया केर मूल निवासी अछि आ ओतहि पाओल जाइत अछि । ओकर जैववैज्ञानिक नाँव थिक ड्रोमैअस नॉवीहॉल्लैण्डी (Dromaius novaehollandiae) । एमू प्रायः समस्त ऑस्ट्रेलिया मे विचरण करैछ । आ ताहि कारणेँ ......................
................... आ ताहि कारणेँ ओ ऑस्ट्रेलिया केर राष्ट्रिय चिड़ै थिक विकास बीच्चहि मे बाजि उठल ।



हम – अरे वाह अहाँ केँ तऽ बूझल अछि । 
विकास – हाँ G.K. केर किताब मे पढ़ने छलियै ।
हम - एमू ओना तऽ शाकाहरी होइत अछि पर विपत्तिक समय मे सर्वाहारी (Omnivorous)  भऽ जाइत अछि आ अपन भूख मेटाबय लेल चमगादर आ छोट – छोट कीड़ा मकोड़ा केँ सेहो खा जाइत अछि । एकर पएर बहुत मजबूत आ तीनू औंठाक नऽह तिक्ष्ण नोक वाला भाला सन चांगुर (पञ्जा) मे परिवर्तित भऽ गेल अछि । ई चांगुर एतेक मजबूत होइत अछि कि लोहाक ताड़क सामान्य छहड़देवाली केँ तोड़ि सकैत अछि आ शिकारी शत्रु सभ सँ अपन रक्षा करबाक हेतु प्रयुक्त होइछ । 
सोनी – ई तऽ शुतुर्मुर्गे जेकाँ अछि ।



हम – हाँ किछु – किछु पर ओहि सँ अलग विशेषता सेहो रखैत अछि । जेना कि जरूरत पड़ला पर ओ पानि मे हेल सकैत अछि । एमू राति मे लगातार नञि सूति सकैत अछि । ओ ओना तऽ करीब  7  घण्टा सुतैत अछि पर हरेक 90-120 मिनट पर किछु खएबाक लेल वा मल विसर्जनक लेल उठैत अछि । एहि प्रकारेँ एक राति मे ओ निन्न सँ चारि सँ छौ बेर उठैत अछि । शुतुर्मुर्ग बेशी समय झुण्ड मे रहैत अछि आ यथासम्भव मनुक्ख सँ दूर रहए चाहैत अछि जखन कि एमू बेशी समय एकसरि रहैत अछि पर ओकरा मनुक्खक  उपस्थिति सँ परहेज नञि छै ।  उनटहि ओ उत्सुकतावश मनुक्खक घऽरक नजदीक सेहो अबैत अछि आ मनुक्ख तथा आन जीवक चेष्टा वा नकल सेहो करैत अछि ।  
प्रिया – तखन तऽ ओहो एहि मामिला मे नकलची बानर आ सुग्गा सनि भेल ।
हम – एकदम्महि की । स्त्री एमू बहुत बेर दोसर एमू केर घोसला मे अपन अण्डा दैत अछि । एहि तरहक घटना केँ जीवविज्ञान मे पोषक परजीविता (Brood parasitism) कहल जाइत अछि ।
पवन – यौ एहने काज कोयली सेहो करैत अछि । ओ कौआ केर घोसला मे चुपचाप अण्डा दैत अछि आ अपने भागि जाइत अछि । कौअहि कोयलियोक अण्डाक केँ अप्पन अण्डा बुझि देख - रेख करैत रहैत अछि ।
हम – ठीक बुझल अछि पवन बाबू । बस थोड़ेक अन्तर छै, कौआ आ कोयली दूनू अलग अलग तरहक चिड़ै अछि पर एहि ठाम एक एमू दोसर एमूक घोसला मे अण्डा दैत अछि । एमू केर सम्पुर्ण आयु 10 सँ 20 वर्षक होइत छैक । 1788  ई॰ मे जखन यूरोपवासी पहिल बेर ऑस्ट्रेलिया मे बसय गेलाह तऽ ओ खएबाक लेल एमू केर मांसु आ डिबिया जड़यबाक लेल एमू केर चर्बी प्रयोग करैत छलाह । एखनहु बहुत जगह मुर्गी आ बत्तख जेकाँ मांसु, चमड़ा आ चर्बी केर लेल एकरा पोषल जाइत अछि । 

विकास – ई तऽ पटना केर चिड़ियाखाना मे सेहो छै । ओतऽ एहने सनि एकटा आओरो चिड़ै छै जकर माथ पर कलगी रहैत छै गर्दनि नीला रंगक रहैत छै आ गर्दनि केर आगाँ भाग मे लाल रंगक भालरि लटकैत रहैत छै ।
प्रिया – से कोन ?
विकास – ओकर नाम छै ........... क् ........ क् ...... केशो...... अरे याद नञि आबि रहल अछि ठीक सऽ । पर ओहो ऑस्ट्रेलिया केर मूल निवासी अछि ।
हम – विकास सही कहि रहल अछि । चलू नाँव हऽम बताए दैत छी । ओकर नाँव अछि कैसोवरी (Cassowary) । ई उत्तरपुर्वी ऑस्ट्रेलिया, न्यु गिनी (New Guinea) आ आस पड़ोसक द्वीप सभक आर्द्र वर्षावन (Humid Rainforest) केर मूल निवासी अछि । सम्प्रति एकर तीनि टा जाति जिबैत अछि – दक्षिणी कैसोवरी / कैजुएरिअस् कैजुएरिअस् (Casuarius casuarius), उत्तरी कैसोवरी / कैजुएरिअस् अनअपेण्डिकुलेटस् (Casuarius unappendiculatus) आ वामन या छोटका कैसोवरी / कैजुएरिअस् बेन्नेट्टाई (Casuarius bennetti) । एहि मे सँ दक्षिणी कैसोवरी विश्वक सभसँ भारी चिड़ै (शुतुर्मुर्गक बाद) आ ऊँचाई मे तेसर सभसँ पैघ चिड़ै (शुतुर्मुर्ग आ एमूक बाद) अछि ।  एकर कलगी केँ कैस्क्यू (Casque) कहल जाइत छै, जे कि सम्भवतः अवाज ग्रहण (sound reception & acoustic communication) करबाक काज करैत अछि ।  ओना तऽ ई सर्वभक्षी (Omnivorous) अछि पर विशेष रूप  सञो फलभक्षी (Frugivorous) अछि । जखन गाछ सँ फऽल पाकि कऽ खसए लागैत अछि तऽ हरेक कैसोवरी एक - एक टा गाछ चुनि कऽ ओकरा नीचा मे बैसि जाइत अछि आ खसल फऽल सभ खा कऽ गुजर करैत अछि । सेब आ केरा सन पैघ फऽल सभ केँ सेहो बीया सहिते सौंसे भकसि जाइत अछि । फऽल खसब समाप्त भेला पर ओतय सञो आन गाछक नीचा या अनतऽ चलि जाइत अछि । नवजात कैसोवरी मैलछौंह रंगक आ भूरा रंगक धारीयुक्त (brown-striped) होइत अछि ।  एकर आयु प्रायः 40 सँ 50 वर्षक मानल जाइत अछि । एकर माँसु सीझबा मे आ पचबा मे बहुत कठिन होइछ, तेँ प्रायः उपयोग नञि कयल जाइत अछि ।



बब्बन – यौ, ईहो पानि मे हेलि सकय हए की ?
हम – बेस पूछल बब्बनजी अपने । ई पानि मे हेलए मे माहिर अछि – हेलि कऽ पैघ – पैघ नदी केँ पार कऽ सकैत अछि आ समुद्रहु मे आराम सँ हेलि सकैत अछि । एतबहि नञि घनगर जंगल – झाड़ मे सेहो करीब 50 कि॰ मी॰ प्रति घण्टा केर गति सँ दौड़ि सकैत अछि आ 1.5 मीटर ( करीब 5 फीट) धरि कूदि सकैत अछि वा छड़पि (jump) सकैत अछि ।
बब्बन – बेज्जोर ।
सोनी – एकर बाद आब कक्कर बारी छै ?
पवन – तोहर । ...................ई सुनितहि सभ धिया – पुता भभा कऽ हँसि पड़ल ।
हम – सुनह आब राति बहुत भऽ गेल छैक तेँ अजुका खिस्सा आइ बीचहि मे रोकैत छी । काल्हि खन साँझ मे आगा कहबह ।
सोनी – नञि आइए पूरा करए पड़त ।
हम – हमरा कोनो दिक्कति नञि पर अहाँ सभक माए – बाबू अहाँ सभ केँ डँटताह । ओना सूतब सेहो जरूरी थिक शरीरक लेल । जँ भरि राति खिस्से सुनैत रहब तऽ सूतब कखन ? आ से नञि तऽ काल्हि भोरे फेर इस्कूल कोना जायब ?
प्रिया – ठीके कहय छी अहाँ । हम सभ जाइत छी ।
सोनी – पर हम सभ अहाँ केँ छोड़ब नञि, काल्हि पूरा करइए टा पड़त खिस्सा ।
हम – जरूर । 


............................................................................................... (खिस्सा केर शेष भाग अगिला अंक मे)






"विदेह पाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४९, अंक ९८, स्तम्भ – बालानां कृते,  दिनांक १५।०१।२०१२ मे प्रकाशित ।



पद्य - ३५ - मैथिलक प्रति बाबा विद्यापतिक उक्ति


बाबा विद्यापतिक कथन





रौ  मैथिल ! मैथिली  तोँ  बाज ।
केहेन  चिन्ता ? कथी केर लाज ?
हमहूँ  संस्कृतक  पण्डित, पर मैथिली  हम्मर माथक पाग ।।

मीठ  गीत, बहुते तोँ  सुनलह,
आइ सुनह मोर बोल कटाह ।
रोष ने  करिहऽ हमरा पर, जँ
हमर बोल,  लागह अधलाह ।
हमरो समय, बहुत पोंगा सभ,
बहुतहि थू – थू  कएने छल ।
मिथिलाभाषा लिखय छलहुँ तेँ,
हमरा, सभ धकिअओने छल ।
मिथिलाभाषा जेँ लिखलहुँ, तेँ तोँ सभ आइ करय छह याद ।
हमहूँ  संस्कृतक पण्डित, पर मैथिली  हम्मर माथक पाग ।।

हे मैथिल ! किछु ज्ञान सुनह,
हमर बात,  किछु कान धरह ।
अनका  सञो  हमरा नञि  द्वेष,
पर निज भाषा  किए  कलेश ।
पढ़ह – लिखह, जे मोन होअह,
पर निज भाषा  जुनि बिसरह ।
अनका लग भले किछु डाकह,
अपना   मे    मैथिली    बाजह ।
धिया – पुता केँ हीन ग्रस्त भऽ, वा मद मे जुनि देखबह लाथ ।
हमहूँ   संस्कृतक   पण्डित,  पर   मैथिली  हम्मर  माथक  पाग ।।

बाजह  सदिखन, सुनह मैथिली,
गुनह   मैथिली,  रटह मैथिली ।
रचह  मैथिली,  लीखह  मैथिली,
कीनि कऽ पोथी पढ़ह मैथिली ।
सृजन मैथिली, च्यवन मैथिली,
नाचह मैथिली, गाबह मैथिली ।
बाट   मैथिली,    घाट    मैथिली,
घर- बाहर, सभ ठाम मैथिली ।
तजि निज भाषा, कुकुरक गति हो, नञि घर केर, नञि धोबी घाट ।
हमहूँ  संस्कृतक  पण्डित,  पर   मैथिली  हम्मर  माथक  पाग ।।


"विदेह पाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४९, अंक ९८, स्तम्भ – ३॰७,  दिनांक १५।०१।२०१२ मे प्रकाशित ।

Sunday, 1 January 2012

दक्षिणी ध्रुव पर मनुक्खक पएरक सए वर्ष अर्थात् खिस्सा अण्टार्कटिका केर





विज्ञान विषयक लेख सभक लेल नित नऽव पारिभाषिक शब्द सभक आवश्यकता पड़ैछ । एहि प्रकारक पारिभाषिक शब्द सभ कोनहु भाषा मे ओकर मातृक मूल भाषा (Parent / Source language) सँ बनाओल जाइछ, यथा अंग्रेजी मे लैटिन सँ  मैथिली मे संस्कृत सँ 



दक्षिणी ध्रुव पर मनुक्खक पएरक सए वर्ष
अर्थात्
खिस्सा अण्टार्कटिका केर



                         आइ धिया – पुता सभ सोचैत होयताह कि विदेहजी फेर अहू बेर कोनो उपदेश वला कविता वा गीत लऽ कऽ अओताह आ अनेरो हमर सभक दिमाग खएताह । तऽ से नञि, एहि बेर कोनो उपदेश नञि । एहि बेर हम अहाँ सभ केँ एकटा दूर देशक यात्रा पर लऽ चलैत छी – देश नञि महादेश थिक ओ । चारू कात पानि सँ (समुद्र सँ) घेड़ायल अछि – तेँ महाद्वीप थिक ओ । अहूँ सभ सोचैत होयब कि एहि ठिठुरल जार मे के घऽर छोड़ि कऽ घूमय लेल निकलत । पर जतऽ जयबाक विचार अछि ओहि ठाम तत्तेक ने जार पड़ैत अछि कि अपना ओहि ठामक माघ मास आ तीला संक्राँतिक जार सेहो गर्मी सनि बुझि पड़त । अहाँ सभक मोन मे होइत होयत जे कहीं हम कनाडा या स्विटजरलैण्ड केर बात तऽ नञि कऽ रहल छी । नञि – कथमपि नञि -  स्विटजरलैण्ड वा कनाडा तऽ देश थिक आ हम महादेशक बात कऽ रहल छी । ओ महादेश जत्तऽ प्राकृतिक रूप सँ मनुक्ख नञि रहैत अछि । ............... सही सोचि रहल छी अहाँ सभ, ओकर नाम थिक “अण्टार्कटिका” । अप्पन धरती केर दक्षिणी ध्रुव केर चारू कात बसल महादेश अण्टार्कटिका । अण्टार्कटिका ग्रीक शब्दक रोमण संस्करण थिक, जकर अर्थ होइत अछि “आर्कटिक केर विपरीत”  (Anti - Arctic) अर्थात् “उत्तर केर उनटा” , माने कि “दक्षिण” ।


  
      चित्र सं॰ - 1  – धरतीक ग्लोब पर अण्टार्कटिकाक स्थिति
  

                     अहाँ सभ केँ ई तऽ बुझले होयत कि धरती गोल अछि आ एकर दुनु ध्रुव समतोला सन थोड़ेक धँसल आ सपाट अछि । उत्तरी ध्रुव केँ 90° उत्तरी अक्षांश रेखा आ दक्षिणी ध्रुव केँ 90° दक्षिणी अक्षांश रेखा कहल जाइत अछि । रेखा नाम रहितहु ई दुनु रेखा नञि भऽ कऽ एकटा विन्दुक सदृश थिक । एकर दुनुक आस पासक क्षेत्र केँ क्रमशः “आर्कटिक क्षेत्र”“अण्टार्कटिक क्षेत्र” कहल जाइत अछि । संसार मे सात टा महादेश थिक जाहि मे सँ एक थिक  “अण्टार्कटिका” । ओहि ठाम चारू कात केवल बर्फे - बर्फ अछि, सौंसे धरती बर्फक तऽर मे नुकायल रहैत अछि । ओ दुनियाक सभसँ बेशी निर्जन, ठण्ढा, हवा - बिहाड़ि युक्त आ शुष्क क्षेत्र अछि । सामान्य भाषा मे शुष्क माने सुखायल । अहाँ सभक मोन मे प्रश्न उठल होयत कि एक तरफ तऽ हम कहि रहल छी जे  चारू कात केवल बर्फे - बर्फ अछि आ दोसर तरफ कहैत छी दुनिञाक सभ सँ सुखायल क्षेत्र – से कोना ? ओहि ठामक न्यूनतम् तापमान 89.2°C (-128.6°F) नापल गेल अछि (रूसी अण्टार्कटिक  केन्द्र “वोस्तोक” द्वारा) । तेँ पानि जमि कऽ ठोस आ कठोर (पाथरहु सँ बेशी कठोर) बर्फ भऽ जाइत अछि – हवा सँ पानिक अंश वा आर्द्रता (moisture / humidity) पुर्ण रूपेँ निपत्ता भऽ जाइत अछि, परिणामस्वरूप हवा अत्यन्त शुष्क भऽ जाइत अछि । संगहि ओहि ठाम सतह पर कोनो ऊँच पहाड़, गाछ - वृक्ष वा आन अवरोध नञि होयबाक कारणेँ ई हवा बिना रोक – टोक केर बहैत रहैत अछि आ बिहाड़िक रूप लऽ लैत अछि । एहि ठाम हवा केर अधिकतम् गति 320 कि॰मि॰ प्रति घण्टा नापल गेल अछि । दक्षिणी ध्रुव केर नज़दीक बर्फक अधिकतम् मोटाई 4.776 कि॰मि॰ पाओल गेल अछि – जाहि सँ ओहि ठामक ठण्ढीक अन्दाज आसानी सँ लगाओल जा सकैत अछि । विश्वक स्वच्छ पानि (fresh water)  केर लगभग 70% अण्टार्कटिकाक हिम – आवरणक रूप मे जमल अछि जखन कि विश्वक सम्पुर्ण बर्फक 90%  भाग एकसरि अण्टार्कटिका मे अछि ।

        अण्टार्कटिका केर क्षेत्रफल ‍लगभग
1 करोड़ 40 लाख वर्ग कि॰मि॰ (14.00 million km2) थिक आ ओ एशिया, अफ्रिका, उ॰ अमेरिका आ द॰ अमेरिकाक बाद विश्वक पाँचम सबसँ पैघ महादेश अछि । ई चारू कात सँ दक्षिणी हिम महासागर (अण्टार्कटिक महासागर) सँ घेड़ायल अछि । एहि महासागरक ऊपरुका भाग ठण्ढी मे जमि जाइत अछि, जाहि सँ एहि समय मे महाद्वीपक आकार प्रायः दूना बुझि पड़ैछ । एहि ठाम लगभग 6  महीना केर दिन आ 6  महीना केर राति होइत अछि तेँ अपना घड़ीक अनुसार 6 महीना धरि रातियो मे आकाश मे सूर्य देखाइ पड़ैत अछि – थिक ने आश्चर्यक गप्प ! पर गर्मी केर दिन मे सेहो अधिकतम् तापमान  मात्र - 26°C  (- 15°F) नापल गेल अछि । अपना सभ दिशि माघ मासक शीतलहरी मे सेहो औसत तापमान 4°C सँ  10°C  केर बीचे मे रहैत अछि ।  आब अहीं कहू  - छै ने बहुत ठण्ढा जगह ? पड़ाए गेल ने अहाँ सभक जार ?


चित्र सं॰ - 2ठीक दक्षिणी ध्रुव केर ऊपर सँ देखला पर अण्टार्कटिका केर स्वरूपक रेखाचित्र

        अण्टार्कटिका केर धरती पर मनुक्खक पहुँचब एक समय मे ओहिना छल जेना कि बाद मे चान पर पहुँचब – ओहिना कठिन आ ओतबहि महत्त्वपुर्ण ।  लोक सभ अप्पन – अप्पन प्राणक बाजी लगा कऽ ओतए पहुँचबाक प्रयास मे लागल छलाह । किछु लोक अप्पन – अप्पन उद्देश्य वा लक्ष्य प्राप्त करबा मे सफल भेलाह आ आपिस सेहो आबि सकलाह, जखन कि किछु लोक अप्पन प्राण गमाए बैसलाह ।  ओहि समय मे पाल वला पनिया जहाज अण्टार्कटिका तक पहुँचबाक एक मात्र साधन छल । रस्ता मे “समुद्री बिहाड़ि” (Cyclone) मे घेड़एबाक वा “प्लवित / दहाइत हिमखण्ड” (Iceberg) तथा “प्रवाहित समुद्री हिमखण्ड” (Pancake ice, Polynya etc.) सँ टकड़एबाक वा हिमनद” (Glacier) तथा “हिमीभूत समूद्री सतह” (Pack ice, Fast ice etc.) मे फँसि जएबाक सम्भावना रहैत अछि । प्लवित / दहाइत हिमखण्ड कतेक विनाशक भऽ सकैत अछि तकर सभ सँ नीक उदाहरण “टाइटेनिक” नामक पनिया जहाजक विश्वप्रशिद्ध दुर्घटना सँ लगाओल जा सकैत अछि । ई जहाज साउथेम्पटन (ब्रिटेन) सँ न्युयॉर्क (अमेरिका) जएबा काल, 10 अप्रील 1912 कऽ एकटा एहने “प्लवित / दहाइत हिमखण्ड” (Iceberg) सँ टकड़एबाक कारणेँ दुर्घटनाग्रस्त भेल छल । जएबा व अएबा दुनु कालक लेल खएबा – पिउबाक चीज – बस्तु पहिने सँ संग मे ओरिआ कए राखए पड़ैत छैक ।  ज्यों – ज्यों वातावरणक तापमान कम होइत जाइत छैक आ हवाक शुष्कता एवम् गति बढ़ैत छैक, त्यों – त्यों शरीर सुन्न होमए लगैत छैक, शरीरक कोशिका (Cells) सभ मरए लागैत छैक जकरा चिकित्सकिय भाषा मे “हिम – दाह  / हिम – दग्ध” (Frost bite) कहल जाइत अछि । एहि “हिम - दाह” सँ किछुए काल मे मनुक्खक प्राण तक जा सकैत अछि । तेँ एहि जानमारुक ठण्ढी सँ बचबाक पूरा ओरिआओन संग मे लऽ कऽ चलए पड़ैत छै ।

          अण्टार्कटिका केर बीचो – बीच मध्य अण्टार्कटिक पर्वतश्रेणी
(Trans Antarctic Maountains) थिक जे बर्फ सँ आच्छादित रहैत अछि । ई पर्वतश्रेणी अण्टार्कटिका केँ दू भाग मे बाँटैत अछि – पैघ “मुख्य भाग” (Main land) आ दोसर छोट “प्रायद्विपीय भाग” (Antarctic peninsula) । एकर अतिरिक्त ओहि ठाम किछु सुप्त ज्वालामुखी पहाड़ सेहो थिक जे कखनो कखनो सक्रिय भऽ उठैत अछि । ओहि ठाम लगभग 70  टा स्वच्छ / मीठ पानिक झील (Fresh water lakes) सेहो अछि । ओहि ठाम मनुक्ख तऽ नञि अछि, पर प्राणीविहीन जगह नञि थिक ओ । चिड़ै मे पेंग्वीन (Penguin) (जे उड़ि नञि सकैत अछि पर पानि मे नीक जेकाँ डुबकी लगा कऽ हेलि सकैत अछि आ बर्फ पर अपन दू पएर सँ मनुक्ख जेकाँ चलि सकैत अछि), स्क्युआ (Skua)एल्बेट्रॉस (Albatross) (एकर दुनु पंखक पसार संसार मे आन सभ चिड़ै सँ बेशी होइत अछि) आदि ओहि ठामक मूल निवासी थिक । समुद्र मे सील (Seal), वालरस (Walrus) , क्रील (Krill), मिंक ह्वेल (Mink Whale) आदि पाओल जाइत अछि ।


             चित्र सं॰ - 3 -  अण्टार्कटिकाक जैव धरोहरि

         कैप्टन जेम्स कुक
(Captain James Cook)  पहिल मनुक्ख छलाह जे “अण्टार्कटिक वृत्त” केँ 17 जनवरी 1773 ई॰ कऽ पार कयलन्हि – एकर बाद ओ साले भरि मे दू बेर आओरो प्रयास कयलन्हि पर वातावरणीय विषमताक कारण अण्टार्कटिका धरि नञि पहुँचि सकलाह । 27 जनवरी 1820 ई॰ कऽ रूसी अण्वेषक बेल्लिंगहुसेन (Fabian Gottlieb von Bellingshausen) अण्टार्कटिकाक हिमाच्छादित धरती केँ पहिल बेर दूरहि सँ देखि सकलाह – पर हुनिकहु ओहि ठाम पएर रखबाक सौभाग्य नञि भेटलन्हि । तकरा बाद बहुतो लोक प्रयास कयलन्हि पर ओहि ठाम पएर रखबा मे असफल रहलाह ।

          
उपलब्ध साक्ष्यक अनुसार अण्टार्कटिकाक हिमाच्छादित धरती पर पहिल बेर पएर रखनिहार व्यक्ति छलाह जॉन डेविस (John Davis) – यद्यपि एहि सँ पहिने किछु आओरो लोक सभ एहि तरहक दावा कएने छलाह पर हनिकर सन्दर्भ मे पुष्टि कएनिहार कोनो साक्ष्य उपलब्ध नञि थिक । ओ सील नामक समुद्री प्राणिक शिकारक उद्देश्य सँ 7 फरवरी 1821 ई॰ कऽ पच्छिमी अण्टार्कटिका मे उतरलाह । परञ्च ओ ओहि ठाम किछुए काल ठहरि कऽ आपिस आबि गेलाह, किएक तऽ ओ शिकारी छलाह , वैज्ञानिक नञि । किछु लोक एकरहु विवादिते मानैत छथि ।


                       
चित्र सं॰ - 4 -  दक्षिणी ध्रुव पर पहिल बेर पएर रखनिहार मनुक्ख, नॉर्वे निवासी “रॉएल्ड अमुण्डसेन”



             अण्टार्कटिका आ ओकर बाद दक्षिणी ध्रुव धरि पहुँचबाक प्रतियोगिता निरन्तर चलैत रहल । एहि बेर बाजी मारलन्हि नॉर्वे वासी रॉएल्ड अमुण्डसेन (Roald Amundsen) । ओ ‍14 दिसम्बर 1911 ई॰  कऽ भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव (Geographical south pole i.e. 90°S latitude) पर पहुँचबा मे सफल रहलाह । ओ अपन दलक सदस्य सभक संग ओहिठाम नॉर्वे केर झण्डा फहरओलन्हि आ अपन पहुँचबाक साक्ष्य ओतय सुरक्षित राखि आपिस चलि अयलाह । पहुँचबा सँ पहिने ओ अपन यात्रा केर जानकारी दुनिञा सँ नुकाए कऽ रखलन्हि – तेँ हुनक प्रतियोगी सभ केँ एहि बातक मिसियो खबड़ि नञि रहन्हि । अमुण्डसेन केर जन्म 16 जुलाई 1872 ई॰ मे नॉर्वे (यूरोप महादेशक एक टा देश) केर शहर ओस्लो (Oslo)  केर नजदीक क्रिस्चिनिया (Christinia) मे भेल छलन्हि । एहि अभियान मे हुनक जहाजक नाँव छल फ्रॅम (Fram) । हुनक नजदीकी प्रतियोगी इंग्लैण्ड केर कैप्टन राबर्ट फॉल्कन सकॉट (Captain Robert Falcon Scott) अमुण्डसेनक 33 दिनक बाद 17 जनवरी 1912 ई॰ कऽ भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचि सकलाह आ पहुँचलाक बाद पहिने सँ नॉर्वे केर झण्डा देखि हुनिका बहुत दुख आ तामस सेहो भेलन्हि । आपिस लौटैत काल दुर्घटना मे स्कॉट अप्पन पूरा दल केर संग मारल गेलाह । ‍14 दिसम्बर 2011 ई॰ कऽ अमुण्डसेनक दक्षिणी ध्रुव पर विजयक 100 वर्ष पूरा भेल ।  2011 ई॰ केँ नार्वे “अमुण्डसेन वर्ष” आ यूनेस्को (UNESCO) “दक्षिण ध्रुव पर पहिल मनुक्खक शताब्दी वर्ष” केर रूप मे मनओलक अछि ।



चित्र सं॰ - 5 -  अण्टार्कटिका केर भूगोल आ ओहिठाम भारतीय अनुसंधान केन्द्र दर्शक मानचित्र


        डॉ॰ सय्यद जहूर कासिम (Dr Sayyed Zahoor Qasim) केर नेतृत्व मे 9 जनवरी 1982 ई॰ कऽ 21 सदस्यीय पहिल भारतीय अण्टार्कटिक अभियान दल अण्टार्कटिका केर हिमाच्छादित धरती पर पएर रखलक आ भारतक लेल इतिहास लिखलक । ई दल 1981 कऽ गोआ सँ अपन गण्तव्यक लेल चलल छल । डॉ॰ हर्ष गुप्ता (Dr. Harsha Gupta) केर नेतृत्व मे तेसर भारतीय अण्टार्कटिक अभियान दल द्वारा 1983 – 84 ई॰ मे एकटा स्थायी संशोधन केन्द्रक स्थापना कयल गेल – जकर नाँव राखल गेल “दक्षिण गंगोत्री” । एहि मे एकटा भू - चुम्बकीय प्रयोगशाला (Geomagnetic laboratory) बनाओल गेल । ई एकटा “हिम छज्जी” (Ice shelf) पर स्थापित छल, जे बाद मे बर्फ मे धँसि गेल आ नऽव अनुसन्धान केन्द्र स्थापित करबाक आवस्यकता पड़ल ।

         भारत अण्टार्कटिका मे अपन दोसर स्थायी संशोधन केन्द्रक स्थापना 1989 ई॰ मे कयलक आ 1990 ई॰ सँ “दक्षिण गंगोत्री” केँ पुर्णतया बन्न कऽ देल गेल । नऽव अनुसन्धान केन्द्रक नाम राखल गेल “मैत्री” जे कि बर्फ रहित स्थान पर अवस्थित अछि । अण्टार्कटिकाक 98 प्रतिशत भाग हिमाच्छादित अछि जखन कि मात्र 2 प्रतिशत भाग बर्फ रहित अछि । मैत्रीक स्थान द॰ गंगोत्री सँ लगभग 90 कि॰ मि॰ दूर अछि । भारतक तेसर स्थायी संशोधन केन्द्र निर्माणाधीन थिक जकर नाम होयत “भारती” । भारती केर स्थापना मैत्री सँ लगभग 3000 कि॰ मि॰ दूर अण्टार्कटिका केर आन भाग मे भऽ रहल अछि जाहि सँ एहि विस्तृत महादेशक विस्तृत अध्ययन कयल जा सकय । ई केन्द्र मार्च – अप्रील  2012 ई॰ धरि प्रारम्भ भऽ जायत । 25 मई 1998 ई॰ कऽ राष्ट्रिय अण्टार्कटिक एवं समुद्री अनुसन्धान केन्द्र (National Centre for Antarctic and Ocean Research; NCAOR) केर स्थापना गोआ मे भेल । 14 अक्टूबर 2010 धरि भारत 30 गोट वैज्ञानिक अनुसन्धान दल अण्टार्कटिका पठाए चुकल अछि ।



चित्र सं॰ - 6अण्टार्कटिका मे भारतक पहिल (दक्षिण गंगोत्री) आ दोसर (मैत्री) अनुसंधान केन्द्र आ तेसर (भारती) अनुसन्धान केन्द्रक प्रस्तावित प्रारूप (मॉडेल)

           अण्टार्कटिका
 दुनिञाक सभसँ पैघ प्राकृतिक प्रयोगशाला (Largest Natural Laboratory) अछि । ओहि ठाम भू – चुम्बकत्व, भूगर्भ विज्ञान, पृथ्वी आ सौरमण्डलक उत्पत्ति व विकाश, समुद्री जीव – जन्तु, वायुमण्डल (विशेषतः ओजोन स्तर) पर प्रदूषणक प्रभाव, चिकित्सा, मनोविज्ञान आदिक अध्ययन आ ओहि सँ सम्बद्ध अनुसन्धान काज आदि कयल जाइत अछि ।

             तऽ केहेन लागल नऽव वर्षक अवसरि पर नऽव ठामक यात्रा ? फेर कहियो जखन समय भेटत तऽ आन ठाम घुमबा – फिरबा लेल चलब । आइ बस एतबहि । आब अप्पन – अप्पन घऽर आपिस चलल जाए ।






विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४९, अंक ९७, ‍दिनांक - १ जनवरी २०१२, “बालानां कृतेमे प्रकाशित ।



प्रकाशनक हेतु श्री गजेन्द्र ठाकुरजी, श्री उमेश मण्डलजी आ समस्त "विदेह परिवार" केँ बहुत बहुत धन्यवाद । संगहि सभ पाठक लोकनि केँ नऽव वर्षक शुभकामना ।