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Saturday, 15 October 2011

पद्य - ‍१५ - अरिकोंच (कविता)

      अरिकोंच (बाल कविता)




हरियर  बड़का – बड़का पात,  देखू  कत्तेक सुन्नर लाग





हरियर  बड़का - बड़का पात,   देखू  कत्तेक सुन्नर लाग ।
ऊगय  अपनहि - आप,  पनिगर  खत्ता - बाड़ी - झाड़ी ।।

केओ  अरिकञ्चन  कहय,  हऽम   कही  अरिकोंच
अहाँ   अरकान्चू   बुझू,   स्वाद  एक्कहि  मनोहारी ।।

पात  पिठार संग बान्हल,  सरिसो तेल  चक्का  छानल ।
नेबो  खूब दए झोड़ाओल,  पड़िसल तीमन  सोझाँ थारी ।।

संगहि  भात वा सोहारी,  झँसगर  अरिकोंचक  तरकारी ।
लागय  भकभक  तइयो नीक,  एकर  महिमा छी भारी ।।

गामक  बच्चा - बच्चा जान,  शहरक  अलखक   चान ।
जे अछि खएने - सएह बूझय,  आन  तीमन पर  भारी ।।


लागय  किनको  जँ  फूसि,  वा  हो  मनमे जँ  झूसि ।
चीखि   देखू   एक   बेर ,  लागत   मनमे   पसारी ।।


विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४६, अंक ९२, ‍दिनांक - १५ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।




5 comments:

  1. पानी ऐब गेल मुंह मे....
    पुणे मे बैस के अपनेक अरिकोंच कोना याद ऐब गेल .?

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  2. विदेह पर गजेन्द्रजी हाइकू,कत्ता,शैनर्यु लिखय लेल देने रहथिन्ह । दू पाँती लिखलाक बाद मोन मे भेल जे किएक नञि पूरा कविते लीखि देल जाय - से लीखि देल ।

    ओना पानि तऽ हमरो आबि गेल छल ।

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  3. Well Done...
    छोट कविता हमरा बेसी नीक लगैय...
    ई कविता के 'विषय' थोड़ युनीक रहै... एहिलेल और बेसीए पसन्द आएल

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