अरिकोंच
(बाल कविता)
हरियर बड़का – बड़का पात, देखू कत्तेक सुन्नर लाग |
हरियर बड़का -
बड़का पात, देखू
कत्तेक सुन्नर लाग ।
ऊगय अपनहि -
आप, पनिगर खत्ता - बाड़ी - झाड़ी ।।
केओ “अरिकञ्चन”
कहय, हऽम कही “अरिकोंच” ।
अहाँ “अरकान्चू”
बुझू, स्वाद
एक्कहि मनोहारी ।।
पात पिठार संग
बान्हल, सरिसो तेल चक्का
छानल ।
नेबो खूब दए
झोड़ाओल, पड़िसल तीमन सोझाँ थारी ।।
संगहि भात वा
सोहारी, झँसगर अरिकोंचक
तरकारी ।
लागय भकभक तइयो नीक,
एकर महिमा छी भारी ।।
गामक बच्चा - बच्चा
जान, शहरक अलखक
चान ।
जे अछि खएने - सएह बूझय, आन तीमन
पर भारी ।।
लागय किनको जँ
फूसि, वा हो
मनमे जँ झूसि ।
चीखि देखू एक
बेर , लागत मनमे पसारी ।।
पानी ऐब गेल मुंह मे....
ReplyDeleteपुणे मे बैस के अपनेक अरिकोंच कोना याद ऐब गेल .?
विदेह पर गजेन्द्रजी हाइकू,कत्ता,शैनर्यु लिखय लेल देने रहथिन्ह । दू पाँती लिखलाक बाद मोन मे भेल जे किएक नञि पूरा कविते लीखि देल जाय - से लीखि देल ।
ReplyDeleteओना पानि तऽ हमरो आबि गेल छल ।
Well Done...
ReplyDeleteछोट कविता हमरा बेसी नीक लगैय...
ई कविता के 'विषय' थोड़ युनीक रहै... एहिलेल और बेसीए पसन्द आएल
धन्यवाद भाइ ।
Deleteधन्यवाद भाइ ।
ReplyDelete