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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Saturday 1 October 2011

पद्य - ‍१‍१ - हम नञि कहब कि .........

      हम नञि कहब कि ......... (गीत)


हम नञि  कहब कि  फूल  मे गुलाब  छी अहाँ,


हम नञि  कहब कि  फूल  मे गुलाब  छी अहाँ,
हमर जिनगी केर  स्वप्न ओ “ताज”  छी अहाँ ।
मुदा  जिनगीक एकसरि  अन्हरिया मे विकसित,
सुन्नर   ओ   सुमधुर   प्रभात   छी  अहाँ ।।

हम नञि  कहब  कि “सुष्मिता” सँ नीक छी अहाँ,
“ऐश्वर्या”  केर   जेरॉक्स   प्रतीप   छी   अहाँ ।
अहाँ  नञि   चाही  हमरा,  ई   इच्छा   अहँक,
मुदा  अहीं  हमर  अन्तरा , ओ गीत छी अहाँ ।।

किछु   अन्यथा  ने    सोचब,  से  आग्रह  हमर,
एक  कवि  केर   दुस्साहस  केँ  कऽ  देब क्षमा ।
अहाँ    अँऽही    रहब,   हऽम    हमही   रहब,
अहँक   चाहत     रखबाक     हमर   हस्ती    कहाँ  !!


हम नञि  कहब  कि “सुष्मिता” सँ नीक छी अहाँ,
“ऐश्वर्या”  केर   जेरॉक्स   प्रतीप   छी   अहाँ ।



विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४६, अंक ९१, ‍दिनांक - ०१ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।

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