गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर (गीत)
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४६, अंक – ९१, दिनांक - ०१ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।
कमल नयन लखि,
मधुर वयन सुनि,
हुलसित मन ई चकोर ।
गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर ।।
हमरा एते तोँ जुनि तरसा गे ।
अपन अधर मधु रस बरिसा दे ।
जुनि बन तोँ एतेक कठोर ।
गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर ।।
बोल - सुबोल हृदय उद्बेधल ।
तोहर सरिस दोसर नञि देखल ।
उर – अन्तर उठय हिलोर ।
गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर ।।
कोयली जदपि सातहु सुर सीखल ।
तदपि सखी , तोहरा नहि जीतल ।
मधु भरल छौ पोरे पोर ।
गे सजनी ! फोल कने फेर ठोर ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४६, अंक – ९१, दिनांक - ०१ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।
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