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Saturday 15 October 2011

पद्य - ‍१३ - आबहु मीता छोड़ू

  आबहु मीता छोड़ू (गीत)





गोल – गोलैसी,  पर – पञ्चैती ।
गप्प   अनेरोक,   कानाफुसकी ।
                         आबहु मीता छोड़ू ।
दुनिञा देखू दौड़ि रहल अछि, अपने घसड़ब छोड़ू ।
                 हे यौ , अपने घसड़ब छोड़ू ।।

कमजोरहा   पर   देखबी   धाही ।
पुस्त - पुस्त  केर  करी  उखाही ।
बात – बात  पर  लट्ठ - लठैती ।
घऽरे    फनफन,   बाहर   लाही ।
बड़ बुत्ता जँ, अहँक देह मे,  नूतन सर्जन कऽरू ।
               हे यौ ,  नूतन सर्जन कऽरू ।।

ओ केलन्हि, से नीक ने कएलन्हि ।
फलना जिनगी व्यर्थ गमओलन्हि ।
मुइलहा   सारा   कोरि  भर्त्सना ।
सकल  अकारथ   हुनक  सर्जना ।
आनक कृत्य अकृत्य अतीते, अहीं नीक नव गऽढ़ू ।
                 हे यौ , अहीं नीक नव गऽढ़ू ।।

ओ जिनगी भरि  कयल ऊकाठी ।
आम  खेलक  आ देलक  आँठी ।
आब  नरक सँ  देखथु  टकटक ।
हम्मर   बोझा , हुनिकर  आँटी ।
रोपल आन बबूड़, गलत छल, अहीँ काँट जुनि रोपू ।
                  हे यौ , अहीँ काँट जुनि रोपू ।।

दऽड़ दड़बज्जा, चौक चौबटिया ।
व्यर्थक  गप्प, अनर्गल  चर्चा ।
एकर फूसि, ओकरा केँ लाड़णि ।
अपन मजा लेऽ अनका चाड़णि ।
अपन समय बहुमुल्य नाश कय, अनका दोष ने मऽढ़ू ।
                    हे यौ , अनका दोष ने मऽढ़ू ।।



विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४६, अंक ९२, ‍दिनांक - १५ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।


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