मिलन गीत
सखी !
की हम कहू,
फुजय लाजेँ ने ठोर ।
हम बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै भोर ।।
सखी धक् – धक् करैत छल हमर
जिया ।
ता बजलाह, सुनू हे
ऐ प्राण – प्रिया !
आउ !
पहिरायब हऽम आई,
अहाँ केँ पटोर ।
हम बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै भोर ।।
हाथ धयलन्हि पिया, गेलहुँ हम
तँ लजाय ।
पुनः लेलन्हि
मोरा, अपन छाती सटाय ।
चूमि लेलन्हि,
ओ चट दऽ,
हमर दुहु ठोर ।
हम बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै भोर ।।
मेरु पर
सँ देलन्हि पिया अम्बर हटाय ।
पुनः लेलन्हि
सखी, निज अंक बैसाय ।
सखी !
लाजेँ सिहरि उठल,
हमर पोर – पोर ।
हम बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै भोर ।।
आँखि मुनने
छलहुँ, जेना छुई – मुई ।
पिया अचकहि मे सखी, फोलि
देलन्हि नीबी ।
आ कि,
एतबहि मे सखी,
मिझा गेलै ईजोत ।
हम बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै भोर ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५३ , अंक –१०६, १५ मई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।
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