मिलनोत्सुका गीत
कहुखन एहि चार पर, कहुखन ओहि चार पर ।
कखनहु दुआरि पर, कखनहु ईनार पर ।
किए
कुचरै अछि कौआ,
एना जोर – जोर ।
आई लगइत अछि अओथिन्ह हमर चितचोर ।।
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सखी !
कुचरल अछि वायस,
किए अहल भोर ।
आई लगइत अछि
अओथिन्ह हमर चितचोर ।।
आइ अओथिन्ह जँ पिया, हम
रूसि रहबै ।
घोघ तानि, मूँह फेरि, हऽम बैसि रहबै ।
मुदा,
रोकबै कोना सखी !
मोनक हिलोर ।
आई लगइत
अछि अओथिन्ह हमर चितचोर ।।
कहुखन एहि चार पर, कहुखन
ओहि चार पर ।
कखनहु दुआरि पर, कखनहु
ईनार पर ।
किए
कुचरै अछि कौआ,
एना जोर – जोर ।
आई लगइत
अछि अओथिन्ह हमर चितचोर ।।
पिया कतबहु मनओथिन्ह, ने
हऽम बजबै ।
हास कतबहु हँसओथिन्ह, ने हऽम हँसबै ।
हाल
हम्मर कहत सखी !
नयनक ई नोर ।
आई लगइत
अछि अओथिन्ह हमर चितचोर ।।
घोघ उठबैत सखी, लऽग अओताह
पिया ।
स्नेह हाथेँ पकड़ि, लगा लेताह हिया ।
नोर
नयनक पोछैत,
चूमि लेताह ओ ठोर ।
आई लगइत
अछि अओथिन्ह हमर चितचोर ।।
हम लाजहि ओतहि, गड़ि जयबै
सखी ।
हम लाजहि तँ मरि – मरि जयबै
सखी ।
कोना पुछबै,
किए
भेलाह,
एहेन कठोर
।
आई लगइत
अछि अओथिन्ह हमर चितचोर ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५३ , अंक –१०६, १५ मई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।
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