अहँक नेह केर छोट सनि जे छवि अछि
(गीत)
अहाँ सञो जे भेटल क्षणिक
नेह हमरा,
तकर मुल्य कहियो, चुका ने सकै छी ।
अहँक नेह केर छोट सनि जे
छवि अछि,
ततेक गाढ़ अंकित, मेटा
ने सकै छी ।।
टाकाक जोरेँ बहुत
किछु भेटै छै,
की काया, की मोन –
सब सद्यः बिकै छै ।
एहेन प्रीत निश्छल, बिना
स्वार्थ भावेँ,
छी दुर्लभ वा शायद
कतहु नञि भेटै छै ।।
छी जल तँ धरा पर, प्रति
चारि तीनेँ,
मुदा प्यास, बहुतो मेटा ने सकैत’छि ।
किञ्चित् जँ तृट्नाश
सामर्थ्येँ सक्षम,
तदपि तृप्ति - अमृत - परम ने भेटैत’छि ।।
हरेक राति प्रायः
उगैत’छि चानहु,
पुनमि चान मासेँ
एकहि बेर अबैत’छि ।
पुनमि तँ पुनमि छी, मुदा
स्वच्छ निर्मल,
शरद
राति पुनिमक बहुत कम भेटैत’छि ।।
बहुत छी सरोवर – सरित एहि धरा पर,
ओ मानस – सरोवर एकहि टा एतए अछि ।
जतए जा भेटैत’छि, मनक
शान्ति अनुपम,
ओ कैलास एक्कहि
आ सद्यः एकहि अछि ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली
इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५४ , अंक –१०७ , ०१ जून २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२”
मे प्रकाशित ।
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