सिनुरदानक गीत
सखी हे ! चलू आजु मिथिलाधाम ।
होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।
मड़बा अछि चारू दिशि साजल,
केरा गाछ सञो
द्वारि बनाओल ।
भाँति - भाँति केर चित्र लिखल अछि,*
साजल बहुविधि फूल आ
पल्लव ।
गाबय सखि सभ
मंगल – गान ।
होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।
सकल महीप पराभव जखने,
शिवक महाधनु तोड़ल रघुवर ।
कतेक विघ्न केर बाद आयल अछि,
ई पुणीत शुभदिवस
सुअवसरि ।
लागल मिथिला शोभा
महान ।
होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।
माथ उघाड़ि सिया
छथि बैसलि,
दर्शन दिव्य, देवगण
उमरल ।
वरण कयल मन, वर सम्मुख छथि,
धनि शिव-गौड़ मनोरथ
पूरल ।**
देथिन्ह सिऊँथेँ सिनूर
श्रीराम ।
होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।
* प्राचीन मैथिली मे “चित्र लिखब” शब्द थिक ”चित्र
बनायब” या “चित्र पाड़ब” शब्द आधुनिक मैथिलीक देन अछि ।
** पुष्पवाटिका मे देल गेल माए पार्वतीक आशिर्वाद ।
उच्चारण संकेत :-
अंग्रेजी आदिक पोथी सभ मे “आन
भाषा – भाषी”क लेल वा “नवसिखिया” सभक लेल कोष्ठ मे “उच्चारण संकेत” (Pronunciations
/ Phœnetic symbols) देल रहैत छै । मैथिली मे
ई परिपाटी नहि, तथापि हमरा लगैत अछि जे देबाक चाही, तेँ एहि बेर सञो शुरू कए रहल
छी ।
मैथिली मे बहुधा “साहित्यिक
शब्द लेखन” ओ “शब्दोच्चारण”क बीच थोड़ेक अन्तर देखल जाइछ, जकरा “आन भाषा – भाषी मैथिली
शिक्षणार्थी” लोकनि वा “नवसिखिया” लोकनि ठीक सँ नञि बूझि पबैत छथि आ “हिन्दी
व्याकरण” केर आधार पर उच्चारण करैत छथि ।
बहुत बेर “मैथिल” लोकनि “सर्व – साधारण गप्प – शप” मे तँ सही उच्चारण करैत छथि परञ्च जञो “लिखित मैथिली” केँ पढ़ि कऽ उच्चारण करबाक हो तँ ओ “हिन्दी” व्याकरणक आधार पर उच्चारण करैत पाओल जाइत छथि ।
एहि सभ कारण सँ कए बेर लिखल
कविता वा गीत वा गजल सभक उच्चारण, लय, ताल, मात्रा आदि बदलि जाइत अछि । ओना तँ एहि
बदलाव सभ केँ रोकब पुर्णतः सम्भव नञि आ पाठक ओ गायक लोकनिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता
सेहो । पर कएक बेर ई बदलाव एहि स्वरूपक होइछ जे अभिप्रेत लय, ताल पुर्णतया बदलि
जाइत अछि । नचारी, डिस्को भऽ जाइत अछि आ सुगम संगीत पॉप या रैप ।
तेँ उपरोक्त कारण सभक
द्वारेँ, हम अप्पन रचना मे प्रयुक्त किछु शब्द सभक उच्चारण संकेत एहि बेर सँ देअब
शुरू कएल अछि ।
क्रम संख्या
|
लिखित शब्द
|
अभिप्रेत उच्चारण
|
१
|
भाँति
|
भाँइत,भाँति
|
२
|
सखी
|
सखी
|
सखि
|
सखि, सइख, सैख
|
|
३
|
होयतन्हि
|
होयतन्हि, हेतन्हि,
हेतैन्ह, हेतैन
|
४
|
दिशि
|
दिशि, दिश
|
५
|
द्वारि
|
द्वारि, द्वाइर, दुआइर
|
६
|
अवसरि
|
अवसइर, अवसैर
|
७
|
उघाड़ि
|
उघाइड़, उघाइर
|
८
|
धनि
|
धनि, धैन
|
९
|
सिऊँथ
|
स्यूँथ, सीथ
|
१०
|
केर
(सम्बन्ध कारक
विभक्ति)
|
केर (।।, एकमात्रक दू आखर/अक्षर),
के (ऽ, द्विमात्रिक एक आखर/अक्षर )
|
११
|
केँ
(कर्म ओ सम्प्रदान
कारक विभ॰)
|
केँ (ऽ, द्विमात्रिक),
के
(ऽ, द्विमात्रिक)
|
१२
|
के
(प्रश्नवाचक सर्वनाम
वा प्रश्नवाचक सार्वनामिक सम्बोधन)
|
के
(एक-, द्वि- या
त्रिमात्रिक)
|
१२
|
अछि
|
अछि, अइछ, ऐछ, अइ
|
१३
|
छन्हि
|
छन्हि, छैन्ह, छैन
|
१४
|
छथि
|
छथि, छैथ
|
डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”
“विदेह” पाक्षिक मैथिली
इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५५, अंक –१०९ , ०१ जुलाई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२”
मे प्रकाशित ।
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