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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Sunday 14 February 2016

पद्य - ‍१५‍५ - सिल्ली (बाल कविता)

सिल्ली (बाल कविता)





झुण्डक - झुण्ड आबै छै, उतरए पोखरि - डबरा - खत्ता ।
सर्वेक्षण कऽ  पहिने  देखैछ,  कत्तऽ  मनुक्ख  निपत्ता ।।*

जाहि ठाम  मनुखक सञ्चर,  ने उतड़ए ओ ताहि ठाम ।
आबादीसँ   दूर   जलाशय,   ठण्ढी - सिल्ली - धाम ।।

उतड़ए  शान्त जलाशय,  खेलए - कूदए - भूख मेटाबए ।
कनिञे कालमे  उड़ए झुण्ड,  ताकए फेर नऽव जलाशय ।।

बत्तख सनि  लागए धरती पर,  दूर - गगन पानिकौआ ।
सिल्ली  हेंजक-हेंज आबैछ,  एकसरि प्रायः  पानिकौआ ।।*

मिथिलामे  बुझले अछि सभकेँ,  जीहक  बड़  चटकार ।
मांसु लेल  सिल्ली केर होइतछि,  गामे - गाम शिकार ।।




संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - पानिकौआ आ सिल्ली दुहु चिड़ै पानिमे उतड़बासँ पहिने पूरा क्षेत्र केर आकाशीय सर्वेक्षण करैत अछि आ मनुक्खसँ सुरक्षित दूरी देखलाक बादे पानिमे उतरैत अछि । ई सर्वेक्षण एक वा एकाधिक बेर ताहि क्षेत्रविशेषक चक्कर काटि कऽ कएल जाइत अछि । पानिकौआ ई सर्वेक्षण प्रायः एकल स्वरूपमे करैत अछि जखनि कि सिल्ली सामुहिक रूपसँ ।

* - पानिमे हेलैत काल सिल्ली बत्तख सनि लागैत अछि जखनि कि आकाशमे उड़ैत काल पानिकौआ सनि । पर बत्तख एतेक ऊँच कखनहु नञि उड़ैत अछि आ पानिकौआ एतेक पैघ झुण्डमे कहियो नञि देखाई दैत अछि ।





मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍195म अंक (‍01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक ‍154) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।

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