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Sunday 14 February 2016

पद्य - ‍१५‍४ - चकबा या चकेबा (बाल कविता)

चकबा या चकेबा (बाल कविता)



साम - चक, साम - चक, चक माने की ? *
चकसँ  चकेबा − से  बुझही ।।

चकबा - चकेबा एक्कहि बात ।
संस्कृतमे  कहबए  चक्रवाक ।।*

एकरे नाम छी ब्राह्मिणी हंस ।
कर अबाज जेना करइछ हंस ।।*

चक्रबद्ध निकसए छै अबाज ।
तेँ   कहबैछ  ओ  चक्रवाक ।।*

सामा दाइकेँ  पड़लन्हि  श्राप ।
तेँ ओ भए गेलीह  चक्रवाक ।।*

ई छी एकटा  चिड़ै केर नाम ।
बसए  चिड़ै जे  दोसर ठाम ।।*

उत्तर - भर  ठण्ढा  जे प्रदेश ।
ततहिसँ आबए  अपना  देश ।।*

ठण्ढीमे  आबए  एहि   ठाम ।
शान्त जलाशय  कर विश्राम ।।

कोशीक कछेड़,  कोशी  बैराज ।
एकर  प्रिय - स्थली - प्रवास ।।*

कहुखन  बड़का  पोखरि बीच ।
पानिमे  बत्तख सनि  ई जीव ।।*

रातिमे   विचरए    सर्वाहारी ।
लोल पछलुका पाँखि छै कारी ।।*

स्वर्णिम बिचला देह आ पाँखि ।
उज्जर  गर्दनि  कारी  आँखि ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - संदर्भ पाँती − साम-चक, साम-चक अबिहऽ हे − मिथिलाक विशिष्ट पाबनि सामा - चकेबासँ । एहि पाबनिक कथामे सामा दाइ श्रापक कारण चकेबा चिड़ै भऽ गेल छलीह ।

* - तत्सम चक्रवाक केर तद्भव रूप अछि चकबा या चकेबा

* - हंस सनि आबाज निकालबक कारण एकरा संस्कृत साहित्यमे ब्राम्हिणी हंस सेहो कहल गेल अछि ।

* - चकेबाक ई हंसवत आबाज चक्रबद्ध रूपमे नकलैत अछि (A SERIES OF LOUD NASAL HONKING NOTES/CALL) तेँ संस्कृतमे एकर नाम पड़ल चक्रवाक (चक्र = चक्रबद्ध तथा वाक् = बोल/आवाज) ।

*- मिथिला सहित सम्पुर्ण भारतवर्षमे चकेबा प्रवासी पक्षी (MIGRATORY BIRD) केर रूपमे आबैत अछि । एकर मूल स्थान उतरबारी एशिया (रूसक साइबेरिया क्षेत्र) आ दच्छिन-पूब यूरोप अछि जाहि ठाम सालहु भरि भारतक अपेक्षा मौसिम ढण्ढा रहैत अछि । ठण्ढीक समयमे ओहि क्षेत्रसभमे असहनीय ढण्ढी पड़बाक कारण ई चिड़ै पड़ाए कऽ वा प्रवास कऽ हिमालय केँ नाँघि भारतीय उपमहाद्वीपमे आबैत अछि आ एहि ठामक पैघ ओ मीठ पानिक जलाशयसभमे, वा शान्त बहैत नदीक कछेड़ वा बाढ़िक पानिसँ बनल दलदली क्षेत्रसभमे देखल जा सकैत अछि । नेपाल स्थित कोशी-बैराजमे कोनहु एक समयमे एहि चिड़ै केर उपस्थिति चारि हजार (4000) धरि देखल गेल अछि ।

*- पानिमे हेलैत काल ई स्वर्णाभ-पीयर पाँखियुक्त बत्तख सनि लागैत अछि । कहुखन - कहुखन सिल्ली जेकाँ सेहो लागैत अछि पर चकेबा आ सिल्ली दुहु दू चिड़ै केर नाम थिक ।

*- एकर लोल आ पछिला नाङ्गरि परहक पाँखि कारी होइत अछि । शेष पाँखि ऊपर सँ स्वर्णाभ-पीयर आ भीतरसँ उज्जर होइत अछि । वक्ष तथा उदर सेहो स्वर्णाभ-पीयर रहैत अछि । माथ, गर्दनि आ मुख्य पंखक पछिला हिस्सा प्रायः उज्जर सनि रहैत अछि ।
नाङ्गरि/लाङ्गरि आ नाङ्गर मैथिलीमे श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द अछि -

·        नाङ्गरि/लाङ्गरि - पूँछ (TAIL)

·        नाङ्गर - प्रायः एक पएरसँ विकलाङ्ग (HEMIPARESIS / HEMIPARALYSIS / HEMIPLEGIC); दुहु पएरसँ विगलाङ्ग तथा चलबा वा ठाढ़ हएबामे असमर्थ लोथ (PARAPARESIS / PARAPARALYSIS / PARAPLEGIC) कहल जाइत अछि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍195म अंक (‍01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक ‍154) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


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