श्री ए॰
पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम
(कविता)
(कविता)
जाति - धर्म नञि, कर्म महान ।
गीतामे कहलन्हि
भगवान ।
ताहि आदर्शक
एक उदाहरण,
श्री ए॰ पी॰ जे अब्दुल कलाम ।।
जिनगी जनिकर छल विज्ञान ।
देश जनिक करइछ सम्मान ।
कोना कऽ भारत बिसरि सकत,
रक्षाक क्षेत्र हुनिकर अवदान ।।
जा जिउलन्हि पूजल बस ज्ञान ।
क्षण भरि ने कएलन्हि विश्राम ।
राष्ट्रपतिक पद पाबि कऽ जनिका,
धन्य भेल, पाओल सम्मान ।।
प्रतिभा - पद, नञि लेश गुमान ।
ज्ञानक अर्जन, ज्ञानहि
दान ।
कथनी - करनी अन्तर नञि छल,
हुनिकर छल व्यक्तित्व महान ।।
मुक्त हाथ बाँटल
ओ ज्ञान ।
भेदभाव बिनु रहथि सुजान
।
एहि सुन्नर व्यक्तित्वक कारण,
विश्व हुनिक करइछ गुणगान ।।
माटिक देह माटिमे
लीन ।
मुदा हुनक नञि कृत्य मलीन ।
“श्री”सँ युक्त छलाह - रहताह ओ,
काया भेल पञ्चतत्त्व विलीन ।।
विश्वकेँ दए अन्तिम
सलाम ।
ओ कएलन्हि भूतलसँ प्रस्थान ।
ओहि दिव्य-पुरुषकेँ छी
करैत,
नञि एक बेर, शत्-शत् प्रणाम ।।
07 AUG. 2015 कऽ प्रकाशनार्थ “मिथिला दर्पण” केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
07 AUG. 2015 कऽ प्रकाशनार्थ “मिथिला दर्पण” केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
No comments:
Post a Comment