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Friday, 6 July 2012

पद्य - ८४ - बर्खा रानी - ‍१ (बाल कविता)


बर्खा रानी - ‍१



बर्खा    रानी !  आऽ  गे  आऽ ।
राति   अएबेँ,  से  एखने  आऽ ।
इस्कूल  जा - जा  रोजे  थकलहुँ,
आइ  अपन   तोँ   खेल  देखा ।।

(बर्खाक पानि मे भीजि कऽ इस्कूलक आधा रस्ता सँ घऽर आपिस जाइत धिया लोकनि) 



बर्खा    रानी !  आऽ  गे  आऽ ।
राति   अएबेँ,  से  एखने  आऽ ।
इस्कूल  जा - जा  रोजे  थकलहुँ,
आइ  अपन  तोँ   खेल  देखा ।।

एखने  आ,  गए   एखने  आऽ ।
आइ  अपन  नञि  भाओ  बढ़ा ।
एतेक बरस तोँ झमकि झमकि कऽ,
रस्तेँ – पएरेँ   हो   नञि  थाह ।।

बर्खा   रानी !  एहि  ठाँ  आऽ ।
अप्पन  रिमझिम  गीत   सुना ।
दुपहरिया  धरि   खूब   बरसिहेँ,
फेर   कने    लीहेँ    सुस्ता ।।

बर्खा  रानी !  आब  ने  आऽ ।
दम्म   धरै,  तोँ  ले   सुस्ता ।
संगी – साथी     शोर    करैए,
खेलब - कूदब – करब   मजा ।।




उच्चारण संकेत :-




क्रम संख्या


लिखित शब्द


अभिप्रेत उच्चारण

अएबेँ
अएबेँ, ऐबेँ, एबेँ,
थकलहुँ
थकलहुँ, थकलौं
गए
गए, गै, गे
झमकि
झमकि, झमैक
धरि
धरि, धैर
बरसिहेँ
बरसिहेँ, बरैसहेँ
रस्तेँ – पएरेँ
रस्तेँ – पेरेँ



डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                              

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका,   वर्ष , मास ५५,  अंक ‍१०९,  ‍दिनांक - १५ जुलाई २०१२ , स्तम्भ – बालानां कृते, मे प्रकाशित । 


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