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Friday, 6 July 2012

पद्य - ८५ - बर्खा रानी - ‍२ (बाल कविता)


बर्खा रानी - ‍२


दुष्कर     सौंसे     आबाजाही,
कतेक  लोक   करतै   बैसार ?
जतहि सञो अएलेँ ततहि पड़ा जो,  आब ने अप्पन मूँह देखा ।
  बर्खा रानी ! आब ने आऽ ।।



बर्खा  रानी !  आब ने आऽ ।
दम्म  धरै  तोँ  ले सुस्ता ।
हाथ – पएर सभ ठिठुरि गेल अछि, आब तोँ रौदक दरस देखा ।
     बर्खा रानी ! आब ने आऽ ।।


खेल – कूद सभ बन्न पड़ल अछि,
संगी – साथी    पड़ल   बेमार ।
सर्दी–खाँसी,   ढों–ढों,  खिच–खिच,
ककरो  धएने   अछि  बोखार ।
सभठाँ  एहने सनि  किछु  चर्चा,
एहने सनि किछु  दुखद समाद ।
पसरल  कए ठाँ  रोग  मलेरिया,
हैजा      डेंगू      कालाजार ।
आङ्गन  सगरो  चाली  सह – सह,  आब ने एहेन रूप देखा ।
    बर्खा रानी ! आब ने आऽ ।।


बाट – घाट   कादो – किचकाँही,
डूबल    सौंसे   खेत - पथार ।
माल–जाल सभ ठिठुरि मरै अछि,
मच्छर – माछीक  बढ़ल पसार ।
लेन कटल अछि, फेज उड़ल अछि,
देखब  टी॰ भी॰  तोहर  कपार ।
दुष्कर     सौंसे     आबाजाही,
कतेक  लोक   करतै   बैसार ?
जतहि सञो अएलेँ ततहि पड़ा जो,  आब ने अप्पन मूँह देखा ।
     बर्खा रानी ! आब ने आऽ ।।






उच्चारण संकेत :-



क्रम संख्या


लिखित शब्द


अभिप्रेत उच्चारण

पएर
पएर, पैर
ठिठुरि
ठिठुइर
अछि
अछि, अइछ, ऐछ
धएने
धएने, धेने
सनि
सैन, सन
जतहि
जतैह, जतहि, जतइ
ततहि
ततैह, ततहि, ततइ




डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                              

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका,   वर्ष , मास ५५,  अंक ‍१०९,  ‍दिनांक - १५ जुलाई २०१२ , स्तम्भ – बालानां कृते, मे प्रकाशित ।

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