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Monday, 2 March 2015

पद्य - ‍१०३ - फागुनक पानि (कविता)

फागुनक  पानि (कविता)





फागुनक  पानि, अकालक पानि ।
तइयो लाभ आ किछु छी हानि ।।

गहूम   पुष्ट,  मज्जर  मजगूत ।
मसुरीक छी   सद्यः   यमदूत ।।

धियापुता   लए  मजगर  बात ।
इस्कूल  बन्दी   छै   बरसात ।।

पुरिबा - पछबा   बहए  बसात ।
ठिठुराबै - कँपबै    छै   गात ।।

बीतल  ठण्ढी  पुनि  घुरि  गेल ।
सोएटर - कम्मल  बाहर  भेल ।।

मुरही - कचड़ी - झिल्ली - चौप ।
चाहक   चुस्की   चौके - चौक ।।

गरम   जिलेबी,   लिट्टी  बेस ।
गरम   सिंघारा    खेपे - खेप ।।

नहिञे    गरजय - तरजय   मेघ ।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप् बरिसय मेघ ।।

बरसाती,    छत्ता     की     भेल ?
छोड़ू !  एक  दिनक   छी  खेल ।।



02 MARCH 2015  कऽ प्रकाशनार्थ विदेह - पाक्षिक मैथिली ई पत्रिका केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।



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