फागुनक पानि (कविता)
फागुनक पानि, अकालक
पानि ।
तइयो लाभ आ किछु छी हानि ।।
गहूम पुष्ट, मज्जर मजगूत
।
मसुरीक छी सद्यः यमदूत
।।
धियापुता लए मजगर बात ।
इस्कूल बन्दी छै बरसात ।।
पुरिबा - पछबा बहए बसात ।
ठिठुराबै - कँपबै छै
गात ।।
बीतल ठण्ढी पुनि घुरि गेल ।
सोएटर - कम्मल बाहर भेल ।।
मुरही - कचड़ी - झिल्ली - चौप
।
चाहक चुस्की चौके - चौक ।।
गरम जिलेबी, लिट्टी बेस
।
गरम सिंघारा खेपे - खेप ।।
नहिञे गरजय - तरजय मेघ ।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप् बरिसय मेघ ।।
बरसाती, छत्ता की भेल
?
छोड़ू ! एक दिनक छी खेल
।।
02 MARCH
2015 कऽ प्रकाशनार्थ “विदेह - पाक्षिक मैथिली ई पत्रिका” केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
No comments:
Post a Comment