चन्दाक
धन्धा
धियापुता सभ दूइर भऽ रहल, अपने ठोकि रहल छी पीठ ।
पढ़बा - लिखबा केर उमेरमे, चन्दा माँगि रहल अछि ढीठ ।।
सरस्वतीपूजा केर अवसरि, हाथमे कलम
आ पोथी नीक ।
पढ़बा - लिखबा छाड़ि कऽ देखू, चन्दा माँगि रहल निर्भीक ।।
नान्हि – नान्हि टा छौंड़ा – छौंड़ी, बाँस आ बत्ती हाथ नेने ।
सड़क जाम कऽ चन्दा माँगए, अपन भविष्यकेँ कात केने ।।
ई घटना दृष्टान्त
मात्र छी, बैसल छी हम माथ धेने ।
पूजा हो वा ईद –
मोहर्रम, चन्दा केर सभ साथ धेने ।।
पूजा – पाठ आ धर्म – संस्कृति, हमरा नञि तकरासँ विरोध ।
उचित हरेक संस्कार – संस्कृति, जाधरि ने करइछ गतिरोध ।।
उत्सव – पाबनि – परब – तिहार, जिनगी केर छी रंग हजार ।
बिनु एकरा एकरस जिनगी, से हमहूँ मानै छी सरकार !!
पर स्वरूप ई कतेक उचित छी, अपनहिसभ कने करू विचार ।
धियापुता देशक भविष्य
छी, कतेक उचित एहेन बेबहार ।।
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