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Sunday 25 October 2015

पद्य - ‍१‍२‍४ - सहनशीलता (कविता)

सहनशीलता (कविता)





सहबाक  गुण  छी  पुज्य,
जा धरि पार ने सीमा करए ।
तकर  बादो  जे सहए  से,
कायरक   उपमा   पाबए ।।

सहनशील  मनुक्ख  बढ़िञा,
जा  उचित  कारण  रहए ।
जँऽ अकारण आ हो अनुचित,
सहल  तँऽ  पामर  बनए ।।

ओ युधिष्ठिर आ कि  रघुवर,
शास्त्रमे   सुन्नर  लागथि ।
हर धिया केर  माए चाहथि,
जमाए  शिवशंकर बनथि ।।

मिथिलाक बेटी छथि सिया,
तेँ पुज्य भरि मिथिलामे ओ ।
भाग सीता सनि कहए सब,
ने   हमर  ललनाक   हो ।।

देखि  रहलहुँ  मूक - चुप,
मिथिलाक वैभव लुटि रहल ।
सहन  करबा  केर  हद,
कखन धरि सभ चुप रहब ??




मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍193म अंक (‍01 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍193) मे प्रकाशित ।



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