भूकम्प - ३
दौगि  रहल अछि,
भागि  रहल अछि,
लोक काटए
हड़कम्प ।
आहि रौ  दैबा !
ई  की   भेलै !
भऽ  रहलै  भूकम्प ।।
भागै  जो   खरिहानहिमे,
जे  पड़ती  आस - पास ।
एहेन दशामे  की कहियौ,  छै 
दैबो  केर  ने आश ।
चौंतीस केर खिस्सा सुनने छी, देखल  आइ प्रत्यक्ष ।
सद्यः  धरती  डोलि रहल छै, केहेन  भेलै  अनर्थ ।
एहि  ठाँ  बेशी,
किछु नञि भेलै,
ओहि ठाँ नाश
प्रचण्ड ।
आहि रौ दैबा ! 
ई की भेलै !  भऽ रहलै  भूकम्प ।।
काठमाण्डू तँऽ उजरि गेल, अगनित छै खसल
लहास ।
जे जहिना छल, ताहि रूपमे,  भऽ गेल कालक ग्रास ।
सुनने छलियै,  पढ़ने छलियै, 
देखल  पहिलहि  बेर ।
अति उदास - भयभीत मोन, कहइछ - ने दोसर
बेर ।
आइ मनुक्खक,
आ  विज्ञानक,
टूटल  सकल घमण्ड ।
आहि रौ दैबा ! 
ई की भेलै !  भऽ रहलै  भूकम्प ।।
बाँचल जे,  से राति काटैए,  महल  छोड़ि  पड़तीमे
।
बाँचल,  देखने प्राण रहए ओ,  अपन  खेत
अबटीमे ।
जे देखलक, से बिसरि सकत ने,  ई घटना जिनगीमे ।
कोना कऽ बिसरत, लोक पिअरगर पाटल जे
धरतीमे ।
ओएह 
 बचल,
जक्कर आयुर्दा,
लिखल रहए अखण्ड
।
आहि रौ दैबा ! 
ई की भेलै !  भऽ रहलै  भूकम्प ।।
06 JUNE 2015
कऽ प्रकाशनार्थ “मिथिला दर्पण” केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
 



 
 
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