Pages

मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

Powered By Blogger

Saturday 6 June 2015

पद्य - ‍१०८ - भूकम्प - २ (कविता)

भूकम्प - ‍२



बूढ़ - पुरैनिञा   कहै    छलथि,
ओ  बड़का  छल  जे  भूकम्प ।
छओ महीना धरि  थीर ने धरती,
रहि - रहि  होइ  छल  कम्प ।।


हम अबोध, ओहि समय युवा जे,
मारए     छलाह     ठहक्का ।
मैञा – बाबा  छथि  भँसिआएल,
फेंकथि       बड़का – बड़का ।।


आइ  बुझै  छी   मैञा – बाबा,
कहए  छलाह   की   तहिया ।
अप्रीलक   बादो  कँपैत  अछि,
धरती      जहिया – जहिया ।।


बड़का   भूकम्पक  कारण  जे,
उपजल    छोटका     भ्रंश ।
से सभ गऽड़ धरए रहि-रहि कऽ,
खन – खन   होइए   कम्प ।।


आइ महीना दिन  बीतल अछि,
आयल     मई     पच्चीस ।
कए बेर धरती डोलि चुकल, आ
एखनहु    मन    भयभीत ।।


बीचमे  सेहो  बारह  मई कऽ,
बड़का       धरती - कम्प ।
निन्न ने एखनो गाढ़ पहिल सनि,
काँपए    मन    हड़कम्प ।।


कहुखन – कहुखन  एना लगैए,
देह      जेना      डोलइए ।
अकचकाइत चहुँदिशि तकैत छी,
कहाँ     किछो     डोलैए ??

  
आस–पास किछु लोक कहल जे,
भ्रम     ओहिना    भेलौए ।
पर किछु लोक कहल पुनि, हमरो
तोरे     सनक     लगैए ।।


किछु  मोनक सन्देह  सेहो, पर
किछु  छल  छोटका  कम्पन ।
चीज – बस्तु  सभ  थीर लगैए,
देह      बुझैए     कम्पन ।।



26 MAY 2015 कऽ प्रकाशनार्थ मैथिली दर्पण केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।

"मैथिली दर्पण" पत्रिकाक जून-सितम्बर 2015 संयुक्तांकमे पृष्ठ 52 पर प्रकाशित ।



डॉ॰ शशिधर कुमर विदेह”,  

No comments:

Post a Comment