आइ
अहाँ बड़ नीक
लगै छी
जानि किए नञि,
आइ अहाँ बड़
नीक लगै छी ।
जानि किए नञि,
आइ अहाँ बड़
दीव लगै छी ।।
जकर राग युग – युग सञो राजित,
जकर बोल दिक् - दिक् मे भाषित,
सरस सिंगारहि
रस अनुसिञ्चित, गीत लगै छी
।
जानि किए नञि,
आइ अहाँ बड़
नीक लगै छी ।।
जकर परस मरु, उपवन
साजित,
विद्युत - हास - चपल तव याचित,
जकर हृदय प्रीतक मोती, से
सीप लगै छी ।
जानि किए नञि,
आइ अहाँ बड़
नीक लगै छी ।।
माँझ जलधि लघु द्वीप समाने,
हीरक - द्युति जनु कोयला खाने,
जार मास निशिभाग अन्हरिया, राति
प्रकाशित दीप लगै छी ।
जानि किए नञि,
आइ अहाँ बड़
नीक लगै छी ।।
जकर प्रतिक्षा युग – युग कयलहुँ,
जनम-मरण कत’ छाड़ि कऽ अयलहुँ,
कालक गति निर्बाधेँ, पर मनमीत लगै छी
।
जानि किए नञि,
आइ अहाँ बड़
नीक लगै छी ।।
उच्चारण संकेत :-
क्रम संख्या
|
लिखित शब्द
|
अभिप्रेत उच्चारण
|
१
|
पानि
|
पाइन, पइन, पैन
|
२
|
अछि
|
अइछ
|
३
|
अग्निराशि
|
अग्निराशि
|
४
|
राति
|
राइत
|
५
|
अन्हरिया
|
अन्हरिया,
अन्हैरया
|
६
|
पुनमि
|
पुनैम
|
७
|
गति
|
गइत
|
८
|
अतिप्रबल
|
अतिप्रबल,
अइतप्रबल
|
९
|
दिशि
|
दिशि, दिश
|
१०
|
जानि
|
जाइन
|
११
|
कत’
|
कते
|
१२
|
छाड़ि
|
छोइड़
|
१३
|
सनि
|
सइन, सन
|
१४
|
अतिशय
|
अतिशय, अइतशय
|
डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५८ , अंक –११६, १६ अक्टूबर २०१२ मे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment