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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Saturday, 8 December 2012

पद्य - ९२ - आइ अहाँ बड़ नीक लगै छी


आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी



जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  दीव  लगै  छी ।।


जकर  राग  युग – युग सञो राजित,
जकर  बोल  दिक् - दिक् मे भाषित,
सरस   सिंगारहि   रस   अनुसिञ्चित,  गीत   लगै   छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।।


जकर  परस  मरु,  उपवन  साजित,
विद्युत - हास - चपल  तव  याचित,
जकर   हृदय    प्रीतक   मोती,   से   सीप   लगै   छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।।


माँझ   जलधि  लघु  द्वीप   समाने,
हीरक - द्युति   जनु  कोयला  खाने,
जार मास निशिभाग अन्हरिया,  राति प्रकाशित दीप लगै छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।।


जकर  प्रतिक्षा  युग – युग  कयलहुँ,
जनम-मरण कत’  छाड़ि कऽ अयलहुँ,
कालक    गति    निर्बाधेँ,    पर   मनमीत   लगै   छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।।





उच्चारण संकेत :-



क्रम संख्या


लिखित शब्द


अभिप्रेत उच्चारण

पानि
पाइन, पइन, पैन
अछि
अइछ
अग्निराशि
अग्निराशि
राति
राइत
अन्हरिया
अन्हरिया, अन्हैरया
पुनमि
पुनैम
गति
गइत
अतिप्रबल
अतिप्रबल, अइतप्रबल
दिशि
दिशि, दिश
१०
जानि
जाइन
११
कत’
कते
१२
छाड़ि
छोइड़
१३
सनि
सइन, सन
१४
अतिशय
अतिशय, अइतशय




डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   


विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष ,  मास ५८ ,  अंक ‍११६, ‍१६ अक्टूबर २०१२ मे प्रकाशित ।





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