सुन्नरि प्रिया
सुन्नरि प्रिया तेँ सुप्रिया, मम् उर बसल तेँ उर्वशी ।
कहबे करत सभ शशिप्रिया,
हम शशि हमर अहँ प्रेयषी ।।
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सुन्नरि प्रिया तेँ सुप्रिया,
मम् उर बसल तेँ उर्वशी ।
कहबे करत सभ शशिप्रिया,
हम शशि हमर अहँ
प्रेयषी ।।
चलैत मरु जिनगीक
निर्मम्,
कत’ मरीचि छकबैत छल ।
निरस एकसरि बाट जिनगीक,
मोन केँ थकबैत छल ।
थाकल - प्यासल ई बटोही,
घाम सञो अपस्याँत
छल ।
पानि मिसियो, छाँह कनिञो,
कतऽ भेटत अज्ञात
छल ।
एक दिन एहिना तँ किछु सनि,
लिखि देलक भाग्यक
मसी ।
जाऽ पढ़ल, देखल –
लिखल छल,
संग आगाँ एक सखी
।।
नीक कि अधलाह ?
पहिने,
पढ़ि कऽ से नञि बुझि
पड़ल ।
मन सशंकित छल अनेरो,
जानि ने विधि
की लिखल ।
की हमर मनोभाव केँ ओ,
अपरिचित सखि बुझि सकत
?
वा अपन छवि
– दर्प – उबडुब,
अपन बाटेँ ओ चलत ।
छलहुँ गुनधुन मे देखल
ता,
संग बैसलि रूपसी ।
एकटक देखैत
हमरा,
ठोर पर मुस्की – हँसी ।।
की दिवस – सपना देखल हम,
पर बूझल, नञि
साँच छी ।
नञि जरए, शीतल लगए जे,
ई तँ तेहने आँच
छी ।
प्यासल पथिक केँ पानि भेटल,
छाँह घनगर प्रेम केर ।
लऽग हीरक स्वच्छ आभा,
के ताकए, मृग हेम केर ।
कविक मन भावक पियासल,
अहीं छी मोर उर्वशी
।
अहीं उर -
अन्तर समाहित,
काव्य – पटलक शोड़षी ।।
क्रम संख्या
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लिखित शब्द
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अभिप्रेत उच्चारण
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१
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सुन्नरि
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सुन्नैर
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२
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उर्वशि
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उर्वैश, उर्वशि
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उर्वशी
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उर्वशी
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३
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एकसरि
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एकसरि, एकसैर, असगर
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४
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शशि
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शशि, शशि
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५
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प्रेयषी
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प्रेयषी
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प्रेयषि
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प्रेयैष
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६
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पानि
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पानि, पाइन, पैन (पानी = गलत उच्चरण)
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७
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सनि
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सैन, सन
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८
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बुझि
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बुइझ, बुझि
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९
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जानि
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जाइन, जैन, जानि (जानी = गलत उच्चारण)
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१०
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छवि
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छैव, छवि
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११
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बैसलि
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बैसैल बैसलि (स्त्रीलिङ्ग)
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बैसल
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बैसल (पुलिङ्ग)
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१२
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कवि
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कैव, कवि (सामान्य प्रयोग)
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कवी
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कवी (शब्दविशेष पर जोर देबाक लेल वा पद्य मे मात्रा मेलक हेतु प्रयुज्य)
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डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा
कॉलेज ऑफ
आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी – प्राधिकरण, पूणा
(महाराष्ट्र) – ४११०४४,
“विदेह” पाक्षिक मैथिली
इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५५, अंक –११० , १५ जुलाई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२”
मे प्रकाशनार्थ ।