Pages

मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

Powered By Blogger

Friday 6 April 2012

पद्य - ५७ - नञि पत्र एकहु टा लीखल


नञि पत्र एकहु टा लीखल
(गीत)


दिन  मे  हुनिकहि  याद  अबैतछि,
राति मे  हुनिकहि सपना ।




पहु   गेलाह   परदेश  सखी !
दिन - मास  कतेकहु  बीतल ।
नञि  पत्र  एकहु टा लीखल ।*
नञि  पत्र  एकहु टा लीखल ।।



सगर  पहर  हुनिकहि  छवि  मनमे,
हुनिकहि  पर  जी  टाँगल ।
पर नञि सखि  हुनिका सुधि कनिञो,
हम  छी  केहेन  अभागलि ।
विरह  बेदना  केहेन  सखी,
से  हऽम  एही  बेर  सीखल ।
नञि  पत्र  एकहु टा लीखल ।।



दिन  मे  हुनिकहि  याद  अबैतछि,
राति मे  हुनिकहि सपना ।
कौआ   कुचरय   अहल  भोर  सँ,
तदपि ने  आबथि सजना ।
भेल बसन्त  सखी पतझड़,
नित  नैन   रहैतछि  तीतल ।
नञि  पत्र  एकहु टा लीखल ।।



प्रियतम    जञो    दूरहि    रहताह,
की होयत रहि भरि अङ्गना ?
ककरा     लए     शिंगार    करब,
ककरा लए  पहिरब कङ्गना ?
चान  कठोर  रहैछ  मुदा,
लगइत अछि अतिशय शीतल ।
नञि  पत्र  एकहु टा लीखल ।।




* ई गीत आइ सँ ‍१० - ‍१५ साल पहिनुक सन्दर्भ मे लिखल गेल छल, जखन कि पूरा गाँव या परोपट्टा मे कतहु – कतहु कोनो एक गोट टेलीफोन बूथ होइत छलै । आ ओहि टेलीफोन बूथ पर राति मे अमुक समय सँ अमुक समय धरि STD कॉल केर पाइ आधा, अमुक समय सँ अमुक समय धरि तेहाइ आ अमुक समय सँ अमुक समय धरि चौथाइ पाइ लगैत छलै । एहिना स्थिति मे कनिञा – बहुरिया लोकनि केँ परदेश मे काज कएनिहार अपन - अपन प्रियतम सँ सीधा बात करब सम्भव नञि होइत छलन्हि ।


ओना मोबाइल केर चलती सँ बहुधा आब ई स्थिति नञि अछि तथापि मिथिला मे एखनहु एहि गीतक सन्दर्भ किछु हद तक प्रासंगिक अछि । 



डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५२ , अंक ‍१०३ , ‍०१ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशनार्थ ।



No comments:

Post a Comment