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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Friday, 6 April 2012

पद्य - ५६ - तीन तिरहुतिया, तेरह पाक


तीन तिरहुतिया, तेरह पाक
(गीत)


तीन   तिरहुतिया,  तेरह   पाक ।
अप्पन   ढोलक,  अपनहि  थाप ।



तीन   तिरहुतिया,  तेरह   पाक ।
अप्पन   ढोलक,  अपनहि  थाप ।
चेतह   आबहु,  नञि   तँ   फेरहु,
होयतह  ओएह,  ढाकक  तीन  पात ।
तीन    तिरहुतिया,   तेरह    पाक ।।



एक दोसरा सँ छकि कऽ लड़लह,
खूब परस्पर  टाँग तोँ झिकलह ।
सोति असोति आ बड़का छोटका,
जानि ने की की आओरो बँटलह ।
उत्तराहा    दक्षिणाहा    कएलह,
आओर   पुबरिया   पछबरिया ।
जाहि  बाट  पर  रोज चलै छह,
खानि लेलह ओएह पर खधिया ।
कालीदास    सत्तहि      पुरखा,
की काटि रहल छह,  नञि छह भाख ।
तीन    तिरहुतिया,   तेरह    पाक ।।



अपना  बीच  तेहल्ला  पैसलह,
कमजोरी तोर भाँपि ओ गेलह ।
परिकल भेदिया,  कयल हिसाब,
तेरह,  छब्बीस  हो  बड़ भाग ।
नऽव - नऽव  परिभाषा गढ़लक,
साँच युधिष्ठिर सन ओ बजलक ।
अंग - बज्जि - मिथिला मे भेद,
तिरहुत – कोसी – सीमा   देश ।
कहलक  कान लऽ कौआ भागल,
कान   के  देखए ?   कौआ   ताक !
तीन    तिरहुतिया,   तेरह    पाक ।।



मैथिल फोरलक, मिथिला डाहलक,
मैथिलीक सेहो चिता सजओलक ।
भाँग पिया, भकुअओलक सभ केँ,
सभ मैथिल केर बुद्धि हेरओलक ।
अपनहि “ओ” अदृश्य  बनल छल,
मुरूख मैथिलहि ऊक उठओलक ।
भाँग  पीबि  बेमत्त  नचए  छल,
नीक – बेजाए, ने बूझि सकै छल।
एतबा  मे  किछु  मैथिलजन  केँ,
षडयण्त्रक     भेलन्हि      आभास ।*
तीन    तिरहुतिया,   तेरह    पाक ।।



किछु  मैथिलजन  सजग भेलाह, *
जरबाक गन्ध  चीन्हए लगलाह ।
टीनही  चश्मा  जे  फेकलन्हि तँ,
अपनहि  महल  जरैत  देखलाह ।
मैथिल अपनहि  फानि रहल छल,
अपनहि अपनहि ठानि रहल छल ।
पानि के लाओत, आगि मेझाओत ?
भेदियेक बात  गुदानि रहल छल ।
तइयो   सजग – सचेत – धीरमति, *
मानल   नञि   भेदिया   सँ   हारि ।
तीन    तिरहुतिया,   तेरह    पाक ।।



अपना  घऽर  मे  शेर  बनथि,
आ  बाहर  डऽरेँ लंक धरथि ।
मैथिल केँ  भेटल  छल  श्राप,
पर कहिया धरि तकर प्रताप ?
हरेक चीज केर होइतछि अन्त,
की एहि श्रापक नञि अवश्रंस ?
बाट ने ताकू - अओताह  राम,
अपनहि हाथ,  अपन सम्मान ।
मुट्ठी भरि ओहि सजग पूत केर, **
व्यर्थ   ने   जायत   अथक  प्रयास ।
तीन    तिरहुतिया,   तेरह    पाक ।।




* मिथिलाक ओ सपूत लोकनि से मिथिला, मैथिली ओ मैथिलक उत्थान हेतु कोनहु प्रकारक सार्थक प्रयास कएलन्हि वा योगदान देलन्हि – चाहे ओ कोनहु जाति, धर्म वा वर्ग विशेषक होथि । संगहि ओहो सपूत लोकनि जे मैथिल नहिञो रहैत मिथिला आ मैथिलीक विकास मे अपन सार्थक योगदान देलन्हि ।

** ओना नाँव लिखल जाए तँ एहि सपूत लोकनिक संख्या बहुत बुझना जायत पर समस्त मैथिलगण केर संख्याक अनुपात मे ई नाँव सभ मात्र “मुट्ठी भरि” गनल जाएत ।





डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                

एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५२ , अंक ‍१०३ , ‍०१ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।




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