(गीत)
तीन तिरहुतिया,
तेरह पाक ।
अप्पन ढोलक, अपनहि
थाप ।
चेतह आबहु, नञि तँ फेरहु,
होयतह ओएह, ढाकक तीन
पात ।
तीन तिरहुतिया, तेरह पाक ।।
एक दोसरा सँ छकि कऽ लड़लह,
खूब परस्पर टाँग तोँ झिकलह ।
सोति असोति आ बड़का छोटका,
जानि ने की की आओरो बँटलह ।
उत्तराहा दक्षिणाहा
कएलह,
आओर पुबरिया
पछबरिया ।
जाहि बाट
पर रोज चलै छह,
खानि लेलह ओएह पर खधिया ।
कालीदास सत्तहि
पुरखा,
की काटि रहल छह, नञि छह भाख ।
तीन तिरहुतिया,
तेरह पाक ।।
अपना बीच
तेहल्ला पैसलह,
कमजोरी तोर भाँपि ओ गेलह ।
परिकल भेदिया, कयल हिसाब,
तेरह, छब्बीस
हो बड़ भाग ।
नऽव - नऽव परिभाषा गढ़लक,
साँच युधिष्ठिर सन ओ बजलक ।
अंग - बज्जि - मिथिला मे
भेद,
तिरहुत – कोसी – सीमा देश ।
कहलक कान लऽ कौआ भागल,
कान के
देखए ? कौआ ताक !
तीन तिरहुतिया,
तेरह पाक ।।
मैथिल फोरलक, मिथिला डाहलक,
मैथिलीक सेहो चिता सजओलक ।
भाँग पिया, भकुअओलक सभ केँ,
सभ मैथिल केर बुद्धि हेरओलक
।
अपनहि “ओ” अदृश्य बनल छल,
मुरूख मैथिलहि ऊक उठओलक ।
भाँग पीबि
बेमत्त नचए छल,
नीक – बेजाए, ने बूझि सकै
छल।
एतबा मे
किछु मैथिलजन केँ,
षडयण्त्रक भेलन्हि आभास ।*
तीन तिरहुतिया,
तेरह पाक ।।
किछु मैथिलजन सजग भेलाह, *
जरबाक गन्ध चीन्हए लगलाह ।
टीनही चश्मा
जे फेकलन्हि तँ,
अपनहि महल
जरैत देखलाह ।
मैथिल अपनहि फानि रहल छल,
अपनहि अपनहि ठानि रहल छल ।
पानि के लाओत, आगि मेझाओत ?
भेदियेक बात गुदानि रहल छल ।
तइयो सजग – सचेत – धीरमति, *
मानल नञि
भेदिया सँ हारि ।
तीन तिरहुतिया,
तेरह पाक ।।
अपना घऽर मे
शेर बनथि,
आ बाहर डऽरेँ
लंक धरथि ।
मैथिल केँ भेटल छल
श्राप,
पर कहिया धरि तकर प्रताप ?
हरेक चीज केर होइतछि अन्त,
की एहि श्रापक नञि अवश्रंस
?
बाट ने ताकू - अओताह राम,
अपनहि हाथ, अपन सम्मान ।
मुट्ठी भरि ओहि सजग पूत
केर, **
व्यर्थ ने
जायत अथक प्रयास ।
तीन तिरहुतिया,
तेरह पाक ।।
* मिथिलाक ओ सपूत लोकनि से मिथिला, मैथिली ओ
मैथिलक उत्थान हेतु कोनहु प्रकारक सार्थक प्रयास कएलन्हि वा योगदान देलन्हि – चाहे
ओ कोनहु जाति, धर्म वा वर्ग विशेषक होथि । संगहि ओहो सपूत लोकनि जे मैथिल नहिञो
रहैत मिथिला आ मैथिलीक विकास मे अपन सार्थक योगदान देलन्हि ।
** ओना नाँव लिखल जाए तँ एहि सपूत लोकनिक संख्या
बहुत बुझना जायत पर समस्त मैथिलगण केर संख्याक अनुपात मे ई नाँव सभ मात्र “मुट्ठी
भरि” गनल जाएत ।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५२ , अंक –१०३ , ०१ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित
।
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