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Tuesday, 25 April 2017

पद्य - २३६ - छोट माँछ, पैघ माँछ (बाल कविता)

छोट माँछ, पैघ माँछ (बाल कविता)






छोट माँछ,  पैघ माँछ,  ताहूसँ  पैघ  माँछ,
कक्कर आहार के ? – बुझिते छी भाइ यौ ।
दुनिञाक  इएह  नियम,  सदिखनसँ आबैए,
बेसी हम की कहू - बुझिते छी  भाइ यौ ।।

जिनगी  संघर्ष  छिऐ,  सएह  आदर्श  छी,
विश्वक  विचित्र  संकल्पना छी  भाइ यौ ।
हर  कण  निर्जीव जे,  वा  हो  सजीव जे,
करइछ संघर्ष नित, अस्तित्वक, भाइ यौ ।।

मानी  ने  मानी अहँ,  संघर्षे  सत्य  छी,
शान्तिक विचार  बस सपना छी भाइ यौ ।
जतबा   प्रकृतिकेँ,   हमसब  जनैत  छी,
अस्तित्वक इएह  संकल्पना छी भाइ यौ ।।

जल थल बसात नभ, अस्तित्व लेल निज,
करइछ प्रयत्न नित, बुझले छी भाइ यौ ।
अपना अस्तित्वकेँ जञो नञि बचाए सकी,
सहअस्तित्व तखन सपना छी भाइ यौ ।।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍224म अंक (‍15 अप्रील 2017) (वर्ष 10, मास 112, अंक ‍224) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।





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