लोक एहिना कहैछ,
लोक एहिना कहत
लोक एहिना कहैछ, लोक एहिना
कहत ।
मुदा हम छी अहीं
केर, अहीं केर रहब ।।
नाम अहीं केर जपै छी, हम
आठो पहर ।
ध्यान अहीं केर रहैछ, नञि
केओ दोसर ।
अहाँ मानू ई सत्य, हम अहीं केर रहब ।
लोक एहिना कहैछ, लोक
एहिना कहत ।।
साओन–भादो केर राति वा हो
चैती बसन्त ।
जेठ हो कि अषाढ़ , वा हो
ठिठुरल हेमन्त ।
हाबा बहितहि रहैछ,
हाबा बहितहि रहत ।
लोक एहिना कहैछ, लोक
एहिना कहत ।।
नञि कहियो मिझाइछ, प्रेम
थिक ओ अनल ।
जरि अमृत भऽ जाइछ,
वासना केर गरल ।
अहाँ अन्तऽहि सही,
मन अहीं केर रहत ।
लोक एहिना
कहैछ, लोक एहिना कहत ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५१ , अंक –१०२ , १५ मार्च २०१२ मे “स्तम्भ
३॰७” मे प्रकाशित ।
Bahut sunder ..........
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ।
Deleteभाइ लोकनि, मत प्रदान करबाक लेल बहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteपरञ्च इहि ठाम कहए चाहब कि "पहिने नञि बूझल छल" मत केवल "विज्ञान व इतिहासादि विषयक हमर मैथिली लेख" केर लेल प्रयोज्य थिक । हर ब्लॅग केर लेल पृथक - पृथक ऑप्शन नञि थिक तेँ ओ कविता आ गीत आदिक नीचाँ मे सेहो आबि रहल अछि ।