आयल होली केर तिहार
(गीत)
नेने आयल छी संगहि, रंग – अबीर – गुलाल |
आयल होली केर तिहार
।
संग बसन्त
बहार ।
नेने आयल
अछि संगहि, नव
उमंग - उल्लास ।।
कतहु लोक सभ झूमि – झूमि
कऽ,
घोड़ि रहल
छथि भांग ।
कतहु करैतछि
बालबृन्द सभ,
रंग घोड़बाक
ओरिआओन ।
बहय मदहोश बसात ।
संगे सुरभित सुवास ।
नेने आयल
अछि संगहि, नव
जीवनक उसास ।।
भोरे –
भोरे नबकी भौजी,
कएलन्हि बन्न केबाड़ आ
खिड़की ।
मोन खड़ाबक
बहाना बना कऽ,
बड़की भौजी
खाट पकड़लीह ।
लेकिन दियऽर बड़
चलाक ।
चलतन्हि किनकहु ने
कोनो बात ।
नेने आयल
ओ संगहि, रंग हरियर आ लाल
।।
भौजी कतबहु
होथि लजबिज्जी,
होथि पुरनकी, नवकी – जुअनकी ।
चाहे कोनहु
बहाना बनओती,
लेकिन रंग
सँ आइ ने बचती ।
रंगबनि हिनकर दुहु
गाल ।
करबनि ठोर
दुहु लाल ।
नेने आयल
छी संगहि, रंग – अबीर – गुलाल ।।
दियऽर भाउज केर बीच होइछ ई,
निर्मल प्रेमक धार ।
ई पुणीत अवसरि आयल अछि,
एक बरख
केर बाद ।
जुनि करू
आइ लाज ।
नहिञे आन
कोनहु लाथ ।
करू स्वागत
बसन्तक, रंग – अबीर लए
हाथ ।।
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