धिया – पुता जनकक वंशज हम
(बालगीत)
चलितहि रहब अछि काज हमर, लगातार अविराम ।
जा धरि भेटय ने लक्ष्य जीवनक, चाही ने विश्राम ।।
प्रगतिक पथ पर बढ़ैत रहब हम, हरैत विघ्न - बाधा सभ केँ ।
चलितहि रहब जीवनक पथ पर, नाँघैत सरिता गिरि गह्वर केँ ।
सहैत चलब हम सुख – दुःख सभटा, कनिञो नञि घबड़ायब ।
माए मैथिलीक आँचर पर नहि, कोनहु कलंक लगायब ।
कनक रेख सञो लिखब भारतक विश्व पटल पर नाँव ।
जा धरि भेटय ने लक्ष्य जीवनक, चाही ने विश्राम ।।
चलैत रहब हम अडिग सुपथ पर, नव - नव लय जिज्ञासा ।
प्रेम – स्वतंत्रता - ज्ञानक भूखल, रत्नक नञि अभिलाषा ।
धिया – पुता जनकक वंशज हम, स्वर्णिम भविष्य केर आशा ।
अथक परिश्रम काज हमर, बिनु स्वार्थक कोनहु पिपासा।
विश्व पटल पर फेर बनायब मिथिला केर नव पहिचान ।
जा धरि भेटय ने लक्ष्य जीवनक, चाही ने विश्राम ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४६, अंक – ९१, दिनांक - ०१ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।
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