आबहु
मीता छोड़ू (गीत)
गोल – गोलैसी, पर – पञ्चैती ।
गप्प
अनेरोक, कानाफुसकी ।
आबहु मीता छोड़ू ।
दुनिञा देखू दौड़ि रहल अछि, अपने घसड़ब
छोड़ू ।
हे यौ , अपने घसड़ब छोड़ू ।।
कमजोरहा पर देखबी धाही ।
पुस्त - पुस्त केर करी
उखाही ।
बात – बात पर लट्ठ - लठैती ।
घऽरे
फनफन, बाहर
लाही ।
बड़ बुत्ता जँ, अहँक देह मे, नूतन सर्जन कऽरू ।
हे यौ , नूतन सर्जन कऽरू ।।
ओ केलन्हि, से नीक ने कएलन्हि ।
फलना जिनगी व्यर्थ गमओलन्हि ।
मुइलहा सारा
कोरि भर्त्सना ।
सकल
अकारथ हुनक सर्जना ।
आनक कृत्य अकृत्य अतीते, अहीं नीक नव
गऽढ़ू ।
हे यौ , अहीं नीक नव गऽढ़ू ।।
ओ जिनगी भरि कयल ऊकाठी ।
आम
खेलक आ देलक आँठी ।
आब
नरक सँ देखथु टकटक ।
हम्मर
बोझा , हुनिकर आँटी ।
रोपल आन बबूड़, गलत छल, अहीँ काँट जुनि
रोपू ।
हे यौ , अहीँ काँट जुनि रोपू
।।
दऽड़ दड़बज्जा, चौक चौबटिया ।
व्यर्थक गप्प, अनर्गल
चर्चा ।
एकर फूसि, ओकरा केँ लाड़णि ।
अपन मजा लेऽ अनका चाड़णि ।
अपन समय बहुमुल्य नाश कय, अनका दोष ने
मऽढ़ू ।
हे यौ , अनका दोष ने मऽढ़ू
।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४६, अंक – ९२, दिनांक - १५ अक्टूबर २०११ मे प्रकाशित ।
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