परिवर्तन
परिवर्तन जिनगीक नियम
छी, परिवर्तन होएबे करतै ।
वर्तमान जे घटित भऽ रहल, से अतीत
होएबे करतै ।।
परिवर्तन नहि रोकि
सकै छी, परिवर्तन तँऽ शाश्वत छै ।
एकर सिवा सबकिछु
धरतीपर, अजर-अमर नञि, नश्वर छै ।।
परिवर्तन केर नियम
सृष्टि केर, एकमात्र उत्प्रेरक छी ।
आदि – अन्त,
निर्माण – ध्वंश केर, इएहमात्र सम्प्रेरक छी ।।
काल बुझू वा समय कहू, एकरहि
रूपेँ परिलक्षित अछि ।
जगत नचाबए इएह
नियम, अपने तँऽ अतिसंरक्षित अछि ।।
अनुकूलेँ हो वा प्रतिकूलेँ, परिवर्तन नहिञे रुकतै ।
परमेश्वर केर परमशक्ति ई, अपन राह
चलबे करतै ।।
मानव जे
प्रतिकूलहुमे, अनुकूल बाट एक
बना सकए ।
सएह जीवनक चित्रपटक,
सर्वोत्तम अभिनेता कहबए ।।
28 DEC. 2014 कऽ प्रकाशनार्थ “पुर्वोत्तर मैथिल
(समाज)” केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
मैथिली पाक्षिक
इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 193म अंक (01 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक 193) मे प्रकाशित ।